CBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् प्रकृति-प्रत्यय-विभाग

CBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् प्रकृति-प्रत्यय-विभाग

धातु या शब्द के पीछे जुड़ने वाले अंश को प्रत्यय कहते हैं। धातु के बाद जुड़ने वाले प्रत्यय को कृत् तथा संज्ञा, विशेषण, क्रिया, अव्यय के पीछे जुड़नेवाले अंश को तद्धित प्रत्यय कहते हैं।

(i) कृत्-प्रत्यय –
इसमें क्त, क्तवतु, क्त्वा, ल्यप् , तुमुन्, शतृ, शानच्, क्तिन्, तव्यत्, अनीयर् आदि प्रत्यय आते हैं।
1. क्त प्रत्यय – यह भूतकालिक कृत् प्रत्यय है। अधिकतर कर्मवाच्य में प्रयुक्त होता है।
उदाहरण –
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2. क्तवतु- यह भी भूतकालिक कृत् प्रत्यय है। अधिकतर कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है।
उदाहरण –
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3. क्त्वा- वाक्य में दो क्रियाओं के होने पर जो पहले समाप्त होती है उस क्रिया को बतानेवाली धातु से ‘क्त्वा’ प्रत्यय (त्वा) लगता है।
उदाहरण –
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4. ल्यप् – धातु से पूर्व उपसर्ग होने पर धातु के बाद ‘ल्यप् ‘ (य) का प्रयोग होता है।
उदाहरण –
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5. अनीयर् – ‘विधिलिङ् लकार’ के अर्थ में विधि कृदन्त अर्थात् तव्यत्, अनीयर् का प्रयोग होता है। ‘अनीयर् का ‘अनीय’ शेष रहता है।
उदाहरण –
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6. तव्यत् – ‘विधिलिङ् लकार’ के अर्थ में विधि कृदन्त अर्थात् तव्यत्, अनीयर् का प्रयोग होता है। ‘तव्यत्’ का ‘तव्य’ शेष रहता है।
उदाहरण –
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7. तुमुन्- जिस क्रिया के लिए कोई अन्य क्रिया की जाती है उसकी धातु से भविष्यत् काल के अर्थ को प्रकट करने के लिए ‘तुमुन्’ का प्रयोग होता है। ‘तुम’ का ‘तुम्’ शेष रह जाता है।
उदाहरण –
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8. क्तिन् प्रत्यय – स्त्रीलिङ्ग में भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए धातु के साथ ‘क्तिन्’ प्रत्यय लगता है। ‘क्तिन्’ का ‘तिः’ शेष रहता है।
उदाहरण –
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9. शतृ प्रत्यय – परस्मैपदी धातुओं से ‘शतृ’ का अपूर्णकाल में प्रयोग होता है। ‘शतृ का’ ‘अत्’ शेष रह जाता है। पुं० में ‘त्’ को ‘न्’ हो जाता है।
उदाहरण –
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10. शानच् प्रत्यय – आत्मनेपद की धातुओं के साथ ‘शतृ’ (अत्/अन्) के स्थान पर ‘शान’ (आन, मान) प्रत्यय लगता है।
उदाहरण –
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(ii) तद्धित प्रत्यय
(मतुप्, इन्, ठक्, ठञ्, त्व, तल्)
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रियाविशेषण तथा अव्यय में ( = क्रियाओं से भिन्न शब्दों में) प्रत्यय लगाकर जो नए शब्द बनते हैं वे ‘तद्धित प्रत्ययान्त’ शब्द कहलाते हैं तथा उन प्रत्ययों को ‘तद्धित’ प्रत्यय कहते हैं। तद्धित प्रत्यय लगने पर नए शब्दों के अर्थ भी मूल शब्दों से भिन्न हो जाते हैं। जैसे- ‘दशरथ’ में इञ् (इ) तद्धित प्रत्यय लगाकर ‘दाशरथिः’ शब्द बना तथा ‘दाशरथिः’ शब्द का अर्थ ‘दशरथ की सन्तान’ होता है। इञ्’ (इ) प्रत्यय के लगने से उसकी सन्तान’ ऐसा अर्थ निकलता है अतः वह अपत्यार्थक तद्धित प्रत्यय है। इस तरह सभी तद्धित प्रत्ययों को कुल मिलाकर अपत्यार्थक, देवार्थक, समूहार्थक, अध्ययनार्थक, शैषिक, विकारार्थक, मतुबर्थक, स्वार्थक तथा अनेकार्थक- इनको, नौ भागों में बाँटा गया है। प्रत्ययों की संख्या भी बहुत अधिक है, किन्तु पाठ्यक्रम में मतुप्, इन्, ठक्, ठ, त्व, तल् इन सात तद्धित प्रत्ययों को ही रखा गया है। अत: निम्न पंक्तियों में केवल इन प्रत्ययों का ही सोदाहरण परिचय दिया जा रहा है।

(क) मतुप् प्रत्यय
‘वह इसका है’ (तत् अस्य अस्ति) या ‘वह इसमें है’ (तत् अस्मिन् अस्ति) इन अर्थों में प्रथमान्त शब्द से मतुप् (मत्) प्रत्यय हो जाता है। इस प्रत्यय का प्रयोग किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु में होना सूचित करने के लिए होता है। ‘मतुप्’ प्रत्यय का केवल ‘मत्’ ही शेष रह जाता है।

नियम –
1. जिन शब्दों के अन्त में अ, आ के अतिरिक्त कोई स्वर होता है। उनसे यह जैसे को तैसा जुड़ जाता है। जैसे – गो + मत् = गोमत् (= जिसकी गौएँ हैं- गावः अस्य सन्ति, इति)। यहाँ ‘गो’ ओकारान्त शब्द है अतः इसके साथ मतुप् प्रत्यय का ‘मत्’ जुड़ जाने से ‘गोमत्’ रूप बना।

इकारान्त शब्दों के उदाहरण –
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इकारान्त शब्दों के उदाहरण –
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उकारान्त शब्दों के उदाहरण –
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ऊकारान्त शब्द –
वधू + मतुप् = वधूमत् (वधू युक्त), वधूमान् (पुं॰)

ओकारान्त शब्द –
गो , + मतुप् = गोमत्। (गौओं वाला), गोमान् (पुं॰)

हलन्त शब्द –
कुछ हलन्त शब्दों के बाद भी मतुप् के ‘मत्’ का प्रयोग होता है; जैसे –
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2. जिन शब्दों के अन्त में तथा उपधा में ‘म्’ हो अथवा ‘अ’ या ‘आ’ हो, तो उनके पश्चात् ‘मतुप्’ के ‘म्’ को ‘व्’ होकर ‘मत्’ के स्थान पर “वत्’ का प्रयोग होता है; जैसे –

अकारान्त शब्द –
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आकारान्त शब्द –
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हलन्त शब्द –
निम्न हलन्त शब्दों में भी मतुपु के ‘म’ को ‘व’ होकर ‘वत्’ का प्रयोग होता है, क्योंकि इनकी उपधा (अन्तिम वर्ण से पूर्व) में ‘अ’ विद्यमान है; जैसे –
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अपवाद –

विशेष – ‘मतुप्’ लगने से बने हुए सभी शब्द विशेषण रूप में प्रयुक्त होते हैं। अतः इनके रूप विशेष्य के अनुसार तीनों लिंगों में अलग-अलग बनते हैं; जैसे –
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(ख) इनि (इन्) प्रत्यय
अकारान्त शब्दों के अनन्तर ‘मतुप्’ के अर्थ में अर्थात् किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु में होना सूचित करने के लिए (‘तद् अस्य अस्ति’ अथवा ‘तद् अस्मिन् अस्ति’) इनि (इन्) का प्रयोग किया जाता है; जैसे –

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‘ज्ञानिन्’ या ‘ज्ञानी’ की व्याख्या होगी ‘ज्ञानम् अस्य अस्ति इति’ अर्थात् ज्ञानवान्। इसी प्रकार सभी ‘इन्’ प्रत्ययान्त शब्दों की व्याख्या समझनी चाहिए।

(ग) ठक् (इक) प्रत्यय
ठक् प्रत्यय का प्रयोग विभिन्न शब्दों के साथ निम्नलिखित पृथक्-पृथक् अर्थों में होता है (ठक्, ठन्, ठञ् आदि प्रत्ययों के स्थान पर इक हो जाता है) – ठक् प्रत्यय परे होने पर शब्द के प्रथम स्वर की वृद्धि (अ को आ, इ, ई, ए, को ऐ, उ, ऊ, ओ को औ) हो जाती है; जैसे- दिन + ठक् (इक) = दैनिकः; दैनिकम्। वर्ष + ठक् = वार्षिक:; वार्षिकम्। मूल + ठक् = मौलिकम्। देव + ठक् = दैविकः। भूत + ठक् = भौतिकः। देह + ठक् = दैहिकः। अध्यात्मक + ठक् = अध्यात्मिकः। अधिभूत + ठक् = आधिभौतिकः। अधिदेच + ठक् = आधिदैविकः। लक्ष + ठक् = लाक्षिकः इत्यादि।

1. अपत्य (सन्तान) अर्थ में –
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2. संस्कृतम् अर्थ में –
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3. चरति (जाता है, खाता है) अर्थ में –
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4. रक्षति (रक्षा करता है) के अर्थ में –

समाज + ठक् (इक) = । सामाजिकः (समाज की रक्षा करने वाला)

5. करोति (करता है) के अर्थ में –
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6. हन्ति (मारता है) के अर्थ में –
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7. ‘मतिः यस्य’ (जिसकी मान्यता है) के अर्थ में –
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8. नियुक्त अर्थ में –
आकर + ठक् (इक) = आकरिकः (आकर में नियुक्त)

9. गच्छति (गमन करना) अर्थ में –
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10. ‘अधीते’ या ‘वेद’ (पढ़ता है या जानता है) के अर्थ में –
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(घ) ठञ् ( इक) प्रत्यय

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(ङ) “त्व’ प्रत्यय
भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए ‘त्व’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। ‘त्व’ प्रत्ययान्त पद नपुंसकलिंग में होता है।
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(च) तल् (ता) प्रत्यय
भाववाचक संज्ञा (स्त्रीलिंग) बनाने के लिए तल् प्रत्यय भी लगाया जाता है। तल् के स्थान पर ‘ता’ हो जाता है; जैसे –
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तल् प्रत्यय ग्राम, जन, बन्धु, गज तथा सहाय शब्दों के साथ समूह के अर्थ में भी किया जाता है; जैसे –
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(iii) स्त्री प्रत्यय

(क) टाप् प्रत्ययः
अजादिगण में परिगणित पुंल्लिग शब्दों को तथा अकारान्त आदि पुंल्लिग शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के लिए प्रायः टाप् प्रत्यय का प्रयोग होता है। टाप् प्रत्यय के ट् और प् का लोप होकर केवल ‘आ’ रूप शेष बच जाता है।

1. अजादिगण शब्द –
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2. अकारान्त शब्द –
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विशेष – कुछ शब्द अजादिगण में न होने पर भी उनके साथ टाप् प्रत्यय लगता है; जैसे –

आचार्य + टाप् (आ) = आचार्या उपाध्याय + टाप् (आ) = उपाध्याया

3. जिन शब्दों के अन्त में ‘अक’ होता है उनको स्त्रीलिंग बनाते समय भी ‘आ’ प्रत्यय लगता है, किन्तु शब्द के अन्तिम ‘क’ से पूर्व ‘इ’ लगाई जाती है; जैसे –
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(ख) ङीप् प्रत्ययः
ङीप् प्रत्यय में व प् का लोप होकर केवल ‘ई’ शेष रहता है। ङीप् प्रत्यय का प्रयोग निम्नलिखित स्थानों पर किया जाता है

1. ऋकारान्त शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के लिए डीप् प्रत्यय का प्रयोग होता है; जैसे –
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2. नकारात्मक शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के लिए ङीप् प्रत्यय का प्रयोग होता है; जैसे –
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3. प्रथम वय के वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है; जैसे –
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4. ईयसुन् प्रत्यय वाले शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है; जैसे –
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5. मतुप् प्रत्यय वाले शब्दों में स्त्रीलिंग में ङीपू (ई) प्रत्यय होता है; जैसे –
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6. वतुषु (वत्) प्रत्यय वाले शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय लगता है; जैसे –
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7. क्वस् (वस्) प्रत्यय वाले शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है; जैसे –
विद्वस् + ङीप् (ई) = विदुषी  जग्मिवस् + ङीप् (ई) = जामुषी

8. शतृ (अत्) प्रत्यय वाले शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय लगता है और न् का आगम होता है; जैसे –
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9. गुणवाचक उकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में विकल्प से ङीप् (ई) लगती है; जैसे –
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10. पतिबोधक अकारान्त शब्दों से पत्नीबोधक शब्द बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय लगता है; जैसे –
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11. निम्नलिखित अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय लगता है; जैसे –
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12. निम्नलिखित अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय से पूर्व आन् का आगम होता है; जैसे –
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कुछ विशेष प्रत्ययः
ऊपर लिखे गए प्रत्ययों के अलावा कुछ विशेष महत्त्वपूर्ण प्रत्यय भी दिए जा रहे हैं जो कि पाठ्यक्रम में निर्धारित नहीं है।
1. ल्युट् (अनम्) 2. क्तिन् (ति:) 3. तृच् (तृ) 4. तसिल् (त:)

1. ल्युट् प्रत्यय- यह प्रत्यय धातु के पीछे लगाकर उन्हें भाववाचक नपुंसकलिंग एकवचन शब्द रूप में परिवर्तित कर देता है। यथा –
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2. क्तिन् प्रत्यय- यह प्रत्यय से धातु को स्त्रीलिंग (भाववाचक) एकवचन इकारांत वाले शब्द बनाए जाते है; यथा –
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3. तृच् प्रत्यय- इस प्रत्यय का प्रयोग धातु से ऋकारान्त शब्दों (करने वाला) का निर्माण करने के लिए किया जाता है; जैसे –
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4. तसिल् प्रत्यय- ये प्रत्यय शब्दों से पञ्चमी विभक्ति के रूप में उसी अर्थ को प्रकट करने के लिए लगाए जाते हैं। ये शब्द अव्यय के रूप में बने हैं; जैसे –
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प्रत्यय-प्रयोग

(क) कृत्प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग

1. क्तान्त पदों का प्रयोग
(क) श्रीकृष्णस्य मधुराधिपते: ………………. (हस् + क्त) मधुरम् अस्ति।
(ख) तेन जलं ……………… (पा + क्त)।

2. क्तवतु-अन्त पदों का प्रयोग
(क) सः दीनान् …………… (पीड् + क्तवतु)।
(ख) सा याचकेभ्य: वस्त्राणि ……………… (दा + क्तवतु)।

3. क्त्वा-अन्त पदों का प्रयोग
(क) पुष्पं भूमि …………… (पत् + क्त्वा) अनश्यत्।
(ख) वयं नदी ……………. (गम् + क्त्वा) शीघ्रम् आयास्यामः।

4. तुमुन्-अन्त पदों का प्रयोग
(क) अहं …………… (जीव् + तुमुन्) खादामि।
(ख) स …………. (खाद् + तुमुन्) जीवति।

5. ल्यप् प्रत्ययान्त पदों को प्रयोग
(क) आचार्य: ………………… (वि + हस् + ल्यप्) अवदत्-राम! त्वं धन्योऽसि।
(ख) शङ्करः नदीं :……………. (प्र + विज्ञ + ल्यप्) मातरम् अवदत् – नक्र: मां न मुञ्चति, मातः! किं करवाणि।

6. तव्यत्-प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) भारतीयैः वीराणां सम्मान …………… (कृ + तव्यत्)।
(ख) अस्माभिः एतानि पत्राणि ………….. (लिखु + तव्यत्)।

7. अनीयर् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) त्वया धर्म: ……………. (आ + चर् + अनीयर्)।
(ख) मया सत्कर्म …………… (कृ + अनीयर्)।

8. क्तिन् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) सः ………….. (मुच् + क्तिन्) वाञ्छति।
(ख) विषयेषु ……………. (रम् + क्तिन्) परित्यजत।

9. शतृ प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) स…………… (नृत् + शतृ) मूर्च्छितोऽभवत्।
(ख) लेखका: ……………… (लिख् + शतृ) उत्साहं प्रादर्शयन्।

10. शानच् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) …………… (सेव् + शानच्) जनः स्वार्थं न गणयेत्।
(ख) ……………….. (वृध् + शानच्) वृक्षाः छायावन्तः सन्ति।

(ख) तद्धित प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग

1. मतुप् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) ………… (बुद्धि + मतुप्) बालिका परीक्षायां सफला अभवत्।।
(ख) ……….. (विद्या + मतुप्) भव।

2. इन् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) ते ………….. (ज्ञान + इन्) सन्ति।
(ख) वयं ………… (सुख + इन्) स्याम।

3. ठक् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) श्रीपाद दामोदर सातवलेकरमहोदयः ” (वेद + ठक्) विद्वान् आसीत्।
(ख) किं त्वम् …………… (अस्ति + ठक्) ने असि?

4. ठञ् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) इदं वस्त्रं साप्ततिकम् (सप्तति + ठञ्) अस्ति।
(ख) इदम् अन्नं प्रास्थिकम् (प्रस्थ + ठञ्) अस्ति।
(ग) इदम् अध्यायः आह्निकः (अहन् + ठञ्) अस्ति।
(घ) स राजा श्वेतच्छत्रिकः (श्वेतच्छत्र + ठञ्) अस्ति।

5. त्व-प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) सः गुणै: …………. (देव + त्व) प्राप्तवान्।
(ख) फलस्य ………… (मृदु + त्व)पश्यत।

6. तल् प्रत्ययान्त पदों का प्रयोग
(क) तस्य गायने ………….. (मधुर + तल्) न आसीत्।
(ख) तस्य प्रश्नपत्रे …………….. (सरल + तल्) न आसीत्।

अभ्यासार्थ :

निम्नलिखित वाकयेषु रेखाकितानां पदेषु प्रकृति-प्रत्ययानां संयोजनं विभाजनं वा कुरुत

1. …………….. च …………… वाकू। (चतुर्थी + ङीप्), (सुनृत + टाप्)
उत्तर:
चतुर्थी, सुनृता

2. सत्येन पन्थाः ………….. देवयानः। (वि + तन् + क्त)
उत्तर:
विततः

3. उत्तिष्ठत, जाग्रत, …………….. वरान् निबोधत। (प्र + आप् + ल्पय्)
उत्तर:
प्राप्य

4. क्षुरस्य धारा ……………. दुरत्यया। (निशित + टाप्)
उत्तर:
निशिता

5. सूर्यः एव ……………. आधारः। (प्र + कृ + क्तिन्)
उत्तर:
प्रकृतेः

6. अस्माकं ………….. आधारः कः? (सृष् + क्तिन्)
उत्तर:
सृष्टेः

7. सूर्योदयस्य ……………… अद्भूतं च शिवराजविजये वर्णनम् उपलभ्यते। (रम् + यत्)
उत्तर:
रम्यम्।

8. निजपर्णकुटीरात् …………… गुरुसेवन पटुः बटुः उदेष्यन्तं भास्वन्तं ……………… तस्य महिमानं वर्णयति। (निर + गम् + ल्यप्), (प्र + नम् + शतृ)
उत्तर:
निर्गत्य, प्रणमन्

9. एष पूर्वस्यां ……………….. अरुण प्रकाशः। (भग + मतुप्), (मरीचिमाल + इन्)
उत्तर:
भगवतः, मरीचिमालिनः

10. …………… खेचरचक्रस्य। (चक्रवर्ती + इन्)
उत्तर:
चक्रवर्ती

11. ……………. पुण्ड रीक पटलस्य। (प्रिय + ईयसुन्)
उत्तर:
प्रेयान्

12. अनेन एव युगभेदाः (सम् + पद् + णिच् + क्त)
उत्तर:
सम्पादिताः

13. अनेन एव …………. कल्पभेदाः। (कृ + क्त)
उत्तर:
कृताः

14. एनम् एव …………… ……………. परार्द्धसंख्या भवति। (आ + श्रि + ल्यप्), (परमेष्ठ + इन्)
उत्तर:
आश्रित्य, परमेष्ठिनः

15. वेदाः एतस्य एव ………… (वन्द + इन्)
उत्तर:
वन्दिनः

16. ………….. एषः विश्वेषाम्। (प्र + नम् + यत्)
उत्तर:
प्रणम्यः

17. राष्ट्रचिन्ता ……………..। (गुरु + ईयसुन् + ङीन्)
उत्तर:
गरीयसी

18. एषः अंशः ‘मुद्राराक्षस’ इति संस्कृतनाटकात् । (सम् + कल् + क्त)
उत्तर:
सङ्कलित

19. ……………, आकाशम् ………….. । (परि + क्रम् + ल्यप्), (उत् + वि + ईक्ष् + ल्यप्)
उत्तर:
परिक्रम्य, उद्वीक्ष्य

20. कौमुदीमहोत्सव-…………… अतिरमणीयं कुसुम पुरम् …………… इच्छामि। (कारण + तसिल्), (अवलोकयितुम्)
उत्तर:
कारणतः, अव + लोक् + तुमुन्

21. अतः सुगाङ्गप्रासादस्य उपरि …………… प्रदेशाः संस्क्रियन्ताम्। (स्था + क्त)
उत्तर:
स्थिताः

22. कौमुदीमहोत्सव ………….. ? (प्रति + सिध् + क्त)
उत्तर:
प्रतिषिद्धः

23. यथा ………….. , चन्दनवारिणा भूमिं शीघ्र सिञ्चन्तु। (आ + दिश् + क्त)
उत्तर:
आदिष्टः

24. इदम् अनुष्ठीयते देवस्य …………….. इति। (शास् + ल्युट्)
उत्तर:
शासनम्

25. अयम् ……………. एव देव चन्द्रगुप्तः। (आ + गम् + क्त)
उत्तर:
आगतः

26. राज्यं हि नाम धर्म …………….. परकस्य नृपस्य कृते महत् कष्टदायकम्। (वृत् + क्तिन्)
उत्तर:
वृत्ति

27. नाट्येन …………….। (आ + रुह् + ल्यप्)
उत्तर:
आरुह्य

28. तत्कथं कौमुदीमहोत्सवः न ……………….. ? (प्र + आ + रभ् + क्त)
उत्तर:
प्रारब्धः

29. देव! न अतः परं ……………… …………….। (वि + ज्ञाप् + णिच् + तुमुन्), (शक्य:)
उत्तर:
विज्ञापयितुम्, शक् + यत्

30. न खलु आर्यचाणक्येन …………. प्रेक्षकाणाम् अतिशय ………….. चक्षुषो विषय:?(अप + हृ + क्त), (रम् + अनीयर्)
उत्तर:
अपहृतः, रमणीयः

31. आर्य! आचार्यचाणक्यं …………. इच्छामि। (दृश् + तुमुन्)
उत्तर:
द्रष्टुम्

32. ततः स्वभवनगतः आसनस्थः चिन्तां …………….: चाणक्यः प्रविशति। (नट् + शतृ)
उत्तर:
नाट्यन्

33. आकाशे लक्ष्य ……………। (बध् + क्त्वा)
उत्तर:
बद्ध्वा

34. अहो राजाधिराजमन्त्रिणो …………… (वि + + + क्तिन्)
उत्तर:
विभूति:

35. इतः शिष्यैः: ……………. दर्भाणाम् स्तूपः। (आ + नी + क्त)
उत्तर:
आनीतः

36. अत्र ………….. समिभिः अतिनमितः छदिप्रान्तः। (शुष् + शानच्)
उत्तर:
शुष्यमाणैः

37. ………………. भित्तयः। (जीर् + क्त्)
उत्तर:
जीर्णाः

38. अतएव निस्पृह ………….. एतादृशैः जनैः राजा तृणवद् गण्यते। (त्याग + इन्)
उत्तर:
त्यागिभिः

39. भूमौ ……………. । (नि + पत् + ल्यप्)
उत्तर:
निपत्य

40. देव: आर्यचन्द्रगुप्तः आर्य शिरसा ……………… विज्ञापयति। (प्र + नम् + ल्यप्)
उत्तर:
प्रणम्य

41. तर्हि आर्य …………. इच्छामि। (दृश् + तुमुन्)
उत्तर:
द्रष्टुम्

42. किं ……………. कौमुदीमहोत्सव-प्रतिषेधः?। (ज्ञा + क्त)
उत्तर:
ज्ञातः

43. स्वयमेव देवेन ……………. । (अव + लोक् + क्त)
उत्तर:
अवलोकितम्

44. आः …………….. भवद्भिः एव …………….. बृषलः। (ज्ञा + क्त), (प्र + उत् + सह् + णिच् + ल्यप्) (कोपित:)
उत्तर:
ज्ञातम्, प्रोत्साह्य, कुप् +णिच् + क्त

45. भयं …………….। (नट् + शतृ)
उत्तर:
नटायन्

46. आर्य, देवेन एव अहम् आर्यस्य चरणयो ………………. । (प्र + इष् + क्त)
उत्तर:
प्रेषित:

47, नाट्येन …………………. अवलोक्य च। (आ + रुढ् + ल्यप्)
उत्तर:
आरुह्य

48. ……………….. विजयताम् वृषलः। (उप + सृ + ल्यप्)
उत्तर:
उपसृत्य

49. वृषल! किमर्थं वयं ……………. ? (आ + ह् + क्त)
उत्तर:
आहूताः

50. आर्यस्य दर्शनेन आत्मानम् ……………… । (अनु + ग्रह् + तुमुन्)
उत्तर:
अनुग्रहीतुम्

51. (स्मितं कृत्वा ) …………………. तर्हि वयम् आहूताः। (उप + आ + लभ् + तुमुन्)
उत्तर:
उपालब्धुम्

52. नहि, नहि, ……………….. (विज्ञापयितुम्)
उत्तर:
वि + ज्ञाप् + णिच् + तुमुन्

53. यदि एवं तर्हि शिष्येण गुरोः आज्ञा ………… (पाल् + अनीयर् + टाप्)
उत्तर:
पालनीया

54. किन्तु न कदाचित् आर्यस्य (निस् + प्रयोजन + टाप्), (प्रवृत्तिः)
उत्तर:
निष्प्रयोजना, प्र + वृत् + क्तिन्

55. अतएव ………………. इच्छामि। (श्रु + तुमुन्)
उत्तर:
श्रोतुम्

56. वैहीनरे! तिष्ठ तिष्ठ। न …………… (गम् + तव्यत्)
उत्तर:
गन्तव्यम्

57. आर्येण एव सर्वत्र निरुद्धचेष्टस्य में …………………. इव राज्यं, न राज्यम् इव। (बन्ध् + ल्युट्)
उत्तर:
बन्धनम्

58. पितृवधात् ……………….. राक्षसोपदेशप्रवण ………………. म्लेछबलेन ………………. (क्रुध् + क्त) (महत् + ईयसुन्), (परिवृत:)
उत्तर:
क्रूद्धः, महीयसा, परि+ वृत् + क्त

59. पर्वतक पुत्र: मलयकेतुः अस्मान् ……………. उद्यतः। (अभि + युज् + तुमुन्)
उत्तर:
अभियोक्तुम्

60. अतः इदानीं दुर्गसंस्कारः …………….. (प्र + आ + रभ् + तव्यत्)
उत्तर:
प्रारब्धव्यः

61. अस्मिन् समये किं कौमुदी-महोत्सवेन इति (प्रति + सिध् + क्त)
उत्तर:
प्रतिसिद्ध

62. राष्ट्रचिन्ता ननु ………………. (गुरु + ईयसुन् + ङीप्)
उत्तर:
गरीयसी

63. प्रथम राष्ट्र ……………….. ततः उत्सवाः इति। (सम् + रक्ष् + ल्युट्)
उत्तर:
संरक्षणम्

64. ……………… फलप्रदा भवति। (दूर + दृश् + क्तिन्)
उत्तर:
दूरदृष्टिः

65. जीवने दूरदृष्टिं विना ………………. न लभ्यते। (सफल + तल्)
उत्तर:
सफलता

66. प्रायः वयं ……………… सुखमेव पश्यामः। (तत्काल + ठक्)
उत्तर:
तात्कालिकम्

67. यः जन ……………….. भवति, सः सर्वान् पक्षान् ……………. निर्णयं करोति। (दूरदर्श + इन्), (गण् + क्त्वा)
उत्तर:
दूरदर्शी, गणयित्वा

68. पञ्चतन्त्रे विष्णुशर्मा राजपुत्रान् एतदेव ……………. प्रयत्नं करोति। (शिक्ष + तुमुन्)
उत्तर:
शिक्षयितुम्

69. परन्तु यद्भविष्य: भविष्यम् कथं विनश्यति। (आ + श्रि + ल्यप्)
उत्तर:
आ + श्रि + ल्यप्

70. कस्मिश्चित् जलाशये अनागत ………….. प्रत्युत्पन्न ……….. यद् भविष्यश्च त्र्योमत्स्याः वसन्ति स्म।। (वि + धा + तृच्), (मन् + क्तिन्)
उत्तर:
विधाता, मतिः

71. तं जलाशयं दृष्ट्वा …………… मत्स्य जीविभि. ………. (गम् + शतृ), ( वच् + क्त)
उत्तर:
गच्छभिः , उक्तम्

72. बहुमत्स्योऽयं हृदः कदापि न अस्माभिः (अनु + इष् + क्त)
उत्तर:
अन्विष्टः

73. अद्य …………………. (आहारवृत्ति + क्तिन्), (सम् + जन् + क्त + टाप्)
उत्तर:
आहारवृत् + क्तिन्, सञ्जाता

74. सन्धया-समयः अपि । (सम् + वृत् + क्त)
उत्तर:
संवृत्तः

75. ततः प्रभाते अत्र ………………… इति निश्चयः। (आ + गम् + तव्यत्)
उत्तर:
आगन्तव्यम्

76. तेषां तद् वचः ……………. अनागतविधाता सर्वान् : अवदत्। (सम् + आ + कर्ण + ल्यप्), (आ + वे + ल्यप्)
उत्तर:
समाकर्त्य, आहूय

77. अहो! ………….. भवद्भिः यत् मत्स्य जीविभिः ……………? (श्रुतम्), (अभि + धा + क्त्)
उत्तर:
श्रु + क्त्, अभिहितम्

78. ……………… च। (वच् + क्त)
उत्तर:
उक्तम्

79. …………….. ……………… शत्रोः कर्तव्यम् ………………. (अशक् + क्त), (बल + इन्), (प्रपलायनम्)
उत्तर:
अशक्तैः, बलिनः, प्र + पल् + णिच् + ल्युट्

80. ………………… अथवा दुर्ग: नान्या तेषां ……………. भवेत्। (आश्रयितव्यः), (गम् + क्तिन्)
उत्तर:
आ + श्रि + तव्यत्, गतिः

81. प्रभातसमये ………… अत्र ……….. मत्स्यसंक्षयं करिष्यन्ति। (मत्स्यजीविनः), (सम् + आ + गम् + ल्यप्)
उत्तर:
मत्स्यजीव् + इन्, समागम्य

82. तन्न ………………… क्षणम् अपि अत्र ……………………. (युज् + क्त), (अव+ स्था + तुमुन्)
उत्तर:
युक्तं, अवस्थातुम्

83. ………………… गतिः येषाम्। (विद्यमान + टाप्)
उत्तर:
विद्यमाना

84. अहो! सत्यम् ……………… भवता। (अभि + धी + क्त)
उत्तर:
अभिहितम्

85. उच्चैः …………… यद्भविष्यः उवाच। (वि + हस् + ल्यप्)
उत्तर:
विहस्य

86. भवद्भ्यां न सम्यक् …………… (मन्त्र् + क्त)
उत्तर:
मन्त्रितम्

87. किं वाङ्मात्रेण अपि एतत् सर: ……………. युज्यते? (त्यज् + तुमुन्)
उत्तर:
त्यक्तुम्

88. अन्यत्र …………… अपि मृत्युः भविष्यति एव। (गम् + क्त)/गम् + ल्युट्)
उत्तर:
गते/गमनात्

89. अरक्षितं तिष्ठति दैव ………………. (रक्ष् + क्त)
उत्तर:
रक्षितम्

90. सुरक्षितं दैव …………….. विनश्यति। (हन् + क्त)
उत्तर:
हतम्

91. जीवति अनाथोऽपि वने ……………..। (वि + सृज् + क्त)
उत्तर:
विसर्जितः

92. भवद्भ्यां यत् प्रतिभाति, तत् ……………… (कृ + तव्यत्)
उत्तर:
कर्तव्यम्

93. अनागतविधाता प्रत्युत्पन्न मतिश्च परिजनेन सह ……………… (निस् + क्रम् + क्त)
उत्तर:
निष्क्रान्तौ

94. तैः मत्स्य ………………………. जालैस्तं जलाशयम्। …………… यद्भविष्येण सह (जीव + इन्), (आलोड्य)
उत्तर:
जीविभिः, आ + लोड् + ल्यप्

95. तत् सरो …………….: नीतम्। (निर् + मत्स्य + तल्)
उत्तर:
निर्मत्स्यताम्

96. अहो राजते ……………. इयं …………… (कीदृश + ङीप्), (हिमान + ङीप्)
उत्तर:
कीदृशी, हिमानी

97. विद्यालयस्य वार्षिकपत्रिकायां पर्वत …………… ……………… (आ + रोह् + ल्युट्), (कृ + शतृ)
उत्तर:
आरोहणम्, कुर्वताम्

98. छात्राणां चित्राणि ……………… । (प्र + दृश् + णिच् + क्त)
उत्तर:
प्रदर्शितानि

99. सर्वे छात्राः शिक्षिकाम् ………….. तस्याः यात्रायाः ………….. वृत्तान्तं अनुरोधं कुर्वन्ति। (उप + इ + ल्यप्), (ज्ञातुम्)
उत्तर:
उपेत्य, ज्ञा + तुमुन्

100. शिक्षिका तेषाम् आग्रह यात्रायाः …………….. अनुभवं प्रसतौति। (मन् + क्त्वा), (रोमञ्चकारिणम्)
उत्तर:
मत्वा, रोमाञ्चकार + इन्।

101. ……………… किन्नु खलु असाध्यम्। (दृढ़संकल्प + मतुप्)
उत्तर:
दृढ़संकल्पवताम्

102. गतवर्षे द्वादशकक्षायाः छात्रा: मम ……………. लेह-लद्दाखनगर …………….. (सम् + रक्षक + त्व), (प्रयाता:)
उत्तर:
संरक्षकत्वे, प्र + या + क्त

103. चित्राणि ………………… प्रतिभाति यत् अभियानं अतीव ……………… आसीत्। (वि + ईक्ष् + ल्यप्), (साहस + ठक्)
उत्तर:
वीक्ष्य, साहसिकम्

104. तत् सर्वं यात्रावृत्तान्तं यूयं ………………. वाञ्छथ? (दृश् + तुमुन्)
उत्तर:
द्रष्टुम

105. ……………… उपविशत। (शुभ् + ल्युट्)
उत्तर:
शोभनम्

106. एते लद्दाख ………… गिरयः अतीव शोभन्ते। (प्रदेश + ईयसुन्)
उत्तर:
प्रदेशीयाः

107. सा उपत्यका ………….. सिन्धुनदी अस्ति। (वि + भज् + शतृ + ङीप्)
उत्तर:
विभजन्ती

108. बालुका …………. सर्वां भूमिम् आवृणोति। (उत् + डी + ल्यप्)
उत्तर:
उड्डीय

109. चित्रे …………….: कानि एतानि स्थलानि? (दृश् + शानच्)
उत्तर:
दृश्यमानानि

110. सिन्धूनद्या ……………… लेहनगरस्य दक्षिणपूर्वभागे एते …………….. बौद्धमठा: सन्ति। (पूर्व + तसिल्), (प्रख्याताः)
उत्तर:
पूर्वत:, प्र + ख्यै + क्त

111. किं-किम् ………………. ? ज्ञातुम् इच्छामः। (अव + लोक् + क्त), (भवत् + ङीप्)
उत्तर:
अवलोकितम्, भवत्या

112. मठाना ……………. भव्यता च प्रेक्षका आकर्षतः। (विशाल + तल्)
उत्तर:
विशालता

113. …………….. बुद्धस्य विशालकाया मूर्तिः पर्यटकानाम् आकर्षण केन्द्रम्। (भग + मतुप्)
उत्तर:
भगवतः

114. बौद्धानां …………….: जीवनं कीदृशम्? (समाज + ठक्)
उत्तर:
सामाजिक

115. मठेषु ……………. लेखाः तिब्बतशैल्या: परिचायकाः। (उत् + कीर् + क्त)
उत्तर:
उत्कीर्णाः

116. प्राकृतिकस्थलानां विषये किमपि ब्रवीतु ……………। (भवत् + ङीप्)
उत्तर:
भवती

117. भारतीयैः वीरैः यत् शौर्य ……………. यूयं जानीथ एव। (प्र + दृश् + णिच् + क्त)
उत्तर:
प्रदर्शितम्।

118. ग्रीष्मे ………….. स ………….. कृषकाणां भूमि-सेचने …………. उपकरोति। (सम् + आप् + क्त), (द्रवी + भू + ल्यप्), (भूयस् + इष्ठन्)
उत्तर:
समाप्ते, द्रवीभूय, भूयिष्ठम्

119. पर्वत …………….. ‘लिकिर’ ‘स्टाक’ नाम्नी स्थले ……………. स्तः। (आ + रोह + ल्युट्), (उप + युज् + क्त)
उत्तर:
आरोहणाय, उपयुक्ते

120. हिमं न सौभाग्य ……………. ……………..। (वि + लोप + इन्), (जन् + क्त)
उत्तर:
विलोपि, जातम्

121. विपदि …………… मानवाः सुभाषितैः आश्वासनं प्राप्नुवन्ति। (नि + पत् + क्त)
उत्तर:
निपतिताः

122. संस्कृत वाङ्मयं समधुरवचनैः सम्यग् ……………. वर्तते। (अलम् + कृ + क्त)
उत्तर:
अलङ् कृतं

123. केषाञ्चित् ” मधुरवचनानां सङ्कलनं अत्र प्रस्तूयते। (अमृतवर्षा + इन्)
उत्तर:
अमृतवर्षिणाम्।

124. एतादृशमेव सङ्क लनं यूयमपि ……………. शक्नुथ। (कृ + तुमुन्)
उत्तर:
कर्तुम्

125. …………. प्रसाद सदनम्। (वद् + ल्युट्)
उत्तर:
वदनम्।

126. ……………… परोपकरणं येषां केषां न ते ……………. (कृ + ल्युट्), (वन्द् + यत्)
उत्तर:
करणं, वन्द्याः

127. …………… च ……………. च सदैव तिष्ठति। (+ क्त), (दा + क्त)
उत्तर:
हुतं, दत्तं

128. ये मायाविषु ………….. न भवन्ति (माया + इन्)
उत्तर:
मायिनः

129. शठाः हि निशिताः इषवः इव तथाविधान् असंवृत्ताङ्गान् ………………….घ्नन्ति। (प्रविश्य)
उत्तर:
प्र + विश् + ल्यप्

130. यदि …………. अस्ति पातकैः किम्? (पिशुन + तल्)
उत्तर:
पिशुनता

131. यदि …………… गुणैः किम्? (सुजन + ण्यत्)
उत्तर:
सौजन्यम्

132. सः चारुदत्त: उज्जयिनी …………………….. सङ्गीतविद्यायाः च प्रेमी अस्ति। (वास + इन्), (गुण + मतुप्)
उत्तर:
वासी, गुणवान्।

133. किन्नु खलु संविधा ……………. न वेति। (वि + धा + क्त + टाप्)
उत्तर:
विहिता

134. यावत् …………… शब्दापयामि। (आर्य + टाप्)
उत्तर:
आर्याम्

135. एवं …………… भोजनानां ………………… भव। (शुभ + ल्युट्), (दा + तृच् + ङीप्)
उत्तर:
शोभनानां, दात्री

136. अहम् पर्वताद् दूरम्……………. अस्मि। (आ + रोप् + ल्यप्), (पत् + णिच् + क्त)
उत्तर:
आरोप्य, पातितः

137. कञ्चिद् जनं ………………. इच्छामि। (नि + मन्त्र् + तुमुन्)
उत्तर:
निमन्त्रयितुम्

138. आर्य! ……………. असि। (नि + मन्त्र + क्त)
उत्तर:
निमन्त्रितः

139. सम्पन्नम् ……………… भविष्यति इति। (अश् + ल्युट्)
उत्तर:
अशनम्।

140. एष तत्र भवान् आर्यः चारुदत्त: गृहदैवतानि ……….. इत एवागच्छति। (अर्च् + शतृ)
उत्तर:
अर्चयन्

141. चरिका ……………. चेटी प्रविशति। (हस्त + टाप्)
उत्तर:
हस्ता

142. भो …………… खलु …………. पुरुषस्य सोच्छ्वासं …………….. (दरिद्र + ण्यत्), (मनस् + इन्), (मृ + ल्युट्)
उत्तर:
दारिद्र्यम्, मनस्विनः, मरणम्

143. अलम् इदानीं भवान् अतिमात्रं …………….। (सम् + तप् + तुमुन्)
उत्तर:
सन्तप्तुम्

144. न खल्वहं …………… श्रियम् अनुशोचामि। (नश् + क्त + टा)
उत्तर:
नष्टाम्

145. सुखं हि दु:खानि …………… शोभते। (अनु + भू + ल्यप्)
उत्तर:
अनुभूय

146. यथा अन्धकारात् इव दीप …………….. । (दृश् + ल्युट्)
उत्तर:
दर्शनम्

147. सुखात् तु यो याति दशां …………..। (दरिद्र + तल्)
उत्तर:
दरिद्रताम्

148. ‘दानं श्रेयस्करम्’ इति प्रत्ययात् एव ममार्थाः क्षीणाः ………………… (जन् + क्त)
उत्तर:
जाताः

149. धनविनाशदु:खस्य पुनः पुनः …………….. चिन्ताकुराः प्रादुर्भवन्ति। (चिन्त् + शानच्)
उत्तर:
चिन्त्यमानस्य

150. ……………… विज्ञानजगत्। (आश्चर्य + मयट्)
उत्तर:
आश्चर्यमयं

151. विद्यालयस्य सूचनापट्टे (वि + ज्ञाप् + क्तिन्)
उत्तर:
विज्ञप्तिः

152. प्राचीनभारतीय …………… सङ्गोष्ठी भविष्यति। (वि + ज्ञा + ल्युट्), (अधि + कृ + ल्यप्), (एक + टाप्)
उत्तर:
विज्ञानम्, अधिकृत्य, एका

153. अस्माकं छात्रैः यद् विशिष्टाध्ययनं …………… (कृ + क्त)
उत्तर:
कृतम्

154. सभागारस्य …………… इदम् । (दृश् + यत्)
उत्तर:
दृश्यम्

155. अस्माकं मध्ये अद्य सर्वोत्तमान् अङ्ङ्कान्। (लभ् + क्तवतु), (सम् + उप + स्था + क्त)
उत्तर:
लब्धवन्तः, समुपस्थिताः

156. करतलध्वनिना एतेषां स्वागतम् ……………..: च कुर्वन्तु। (अभि + नन्द् + ल्युट्)
उत्तर:
अभिनन्दनम्

157. तृतीयाभागस्सञ्चारस्त्वन्तरिक्षे भवेत् “……………… (स्व + तसिल्)
उत्तर:
स्वतः

158. विमानशास्त्रे एतादृशः लेपः अपि वर्णित: यस्य लेपनेन विमानं …………….. गच्छति। (अदृश्य + तल्)
उत्तर:
अदृश्यताम्

159. करतलध्वनिना अभिनवस्य उत्साह – …………… कुर्वन्तु। (वृध् + ल्युट्)
उत्तर:
वर्धनम्

160. इदानीं …………… सुश्रुतस्य शल्यक्रियाम् …………. अस्माकं ज्ञानवृद्धिं करिष्यति। (शालिन् + ङीप्), (अधि + कृ + ल्यप्)
उत्तर:
शालिनी, अधिकृत्य

161. प्रिय सह ………….. ! यदि वयम् उत्तमचिकित्सका …………….. इच्छामः। (पाठ + इन्), (भू + तुमुन्)
उत्तर:
पठिनः, भवितुम्

162. तर्हि सुश्रुत …………….. सुश्रुतसंहिता अवश्यमेव ……………… (विरचित + टाप्), (पठ् + अनीयर् + टाप्)
उत्तर:
विरचिता, पठनीया

163. तत्र अष्टविधं शल्यकार्यं ……………….. यथा- ………….. ………………. आदयः। (वर्ण + क्त), (छिद् + यत्), (भिद् + यत्)
उत्तर:
वर्णितम्, छेद्यम्, भेद्यम्

164. ……………. खलु ………………. सुश्रुतस्य शल्यक्रिया। (बहुप्रसिद्ध + टाप्), (भग + मतुप्)
उत्तर:
बहुप्रसिद्धा, भगवतः

165. ……………. एव …………….. प्रस्तुतिः । (प्र + शंस् + अनीयर् + टाप्), (भवत् + ङीप्)
उत्तर:
प्रशंसनीया, भवत्याः

166. मिहिरः ………….. भूमेः अध्: कुत्र कुत्र जलं भवति इति सूचनां प्रदास्यति। (बृहत्संहिता + तसिल्)
उत्तर:
बृहत्संहितात:

167. मिहिरेण …………….. सामग्री ……………। (बहुमूल्य + टाप्), (सम् + कल् + क्त + टाप्)
उत्तर:
बहुमूल्या सङ्कलिता

168. भारती आर्यभटीयम् इति ग्रन्थस्य ……………….. वर्णयिष्यति। (विशिष्ट + ण्यत्)
उत्तर:
वैशिष्ट्यं

169. यथा मनुष्यः वृक्षादीन् पृष्ठः प्रति ……………… पश्यति। (गम् + शतृ)
उत्तर:
गच्छतः

170. तथा नक्षत्रादयः नरस्य कृते पश्चिमं प्रति ……………. प्रतीयन्ते। (धाव् + शतृ)
उत्तर:
धावन्तः

171. सः स्तम्भ: ……………. विना तथैव तिष्ठति। (वि + कृ + क्तिन्)
उत्तर:
विकृतिम्

172. अहमदनगरे ……………. स्तम्भा: भारतीयवैज्ञानिकानां गौरवगाथा वर्णयन्ति। (कम्प् + शानच्)
उत्तर:
कम्पमानाः

173. इदानीम् गोष्ठी ………………….. याति। (एतत् + टाप्), (सम् + आप् + क्तिन्)
उत्तर:
एषा, समाप्ति

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