ICSE Hindi Question Paper Solved for Class 10

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ICSE Class 10 Hindi Question Paper 2012 Solved

Section – A
(Attempt all questions)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics :- [15]

निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए:
:-
(i) ज्ञान प्राप्त करने के बहुत से साधन हैं। यात्रा पर जाना भी किसी पाठशाला में जाकर शिक्षा प्राप्त करने से कम नहीं है। ऐसी ही किसी यात्रा का वर्णन कीजिए। बताइए कि उस यात्रा से आपने क्या-क्या सीखा?
(ii) कल्पना कीजिए कि आपको किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का साक्षात्कार (Interview) लेने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है । बताइए कि वे प्रसिद्ध व्यक्ति कौन हैं और आप उनसे कौन-कौन से तीन प्रश्न पूछेंगे व क्यों ?
(iii) ‘ऊँचे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए माता-पिता तथा अध्यापकों द्वारा बच्चों पर डाला जाने वाला दबाव अनुचित है । ‘ – विषय के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार दीजिए।
(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो :-
‘जान बची तो लाखों पाये’
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र से होना चाहिए।
ICSE 2012 Hindi Question Paper Solved for Class 10 1
Answer :
(i) यह कथन सत्य है कि यात्रा पर जाना किसी पाठशाला में जाकर शिक्षा प्राप्त करने से कम नहीं है। इसका अनुभव मुझे तब हुआ जब मैं अपने विद्यालय की ओर से अपने सहपाठियों के साथ नैनीताल घूमने के लिए गया ।

मैं उन दिनों कक्षा दस में अध्ययन कर रहा था। हमारे प्रभारी अध्यापक हमारे लिए रेलवे में आरक्षण करवा चुके थे । निश्चित तिथि और समय पर सभी छात्रों को रेलवे स्टेशन पहुँचना था। स्टेशन पहुँचते ही पता चला कि हमारी गाड़ी तीन घंटे देरी से चल रही थी। यह समाचार सुनते ही कई छात्र अधीर हो गए। वे तरह-तरह से अपना-अपना क्षोभ व्यक्त करने लगे। तभी एक बुजुर्ग महिला ने हमें समझाया कि यात्रा में इस प्रकार धैर्य नहीं खोना चाहिए। हमें हर स्थिति से निपटने का सूत्र सीखना चाहिए । गाड़ियों का देरी से चलना आम बात है । अतः हमें जल-भुनकर अपने को दुखी करना छोड़कर भ्रमण के इस प्रथम अनुभव का आनंद लेना चाहिए। यह सीख हमारे लिए अपार धैर्य का कारण बनी। जीवन में कठिन परिस्थिति आने पर धैर्य ही काम आता है।

दूसरी स्थिति तब पैदा हुई जब हमारे आरक्षित स्थानों पर कुछ यात्री युवक पहले से ही बैठे हुए थे। हम सभी को क्रोध आने लगा। कुछ छात्र तो गाली-गलौच पर उतर आए। तभी उन यात्रियों ने हमें समझाया कि वे अगले स्टेशन पर उतर जाएँगे। अच्छा होगा, यदि तब तक उनके साथ ताल-मेल बनाकर यात्रा को असुखद होने से बचाया जाए। वे सभी दैनिक यात्री थे, जो अपने-अपने घरों को लौट रहे थे । उन्होंने कहा कि यह सत्य है कि स्थान आरक्षित हैं, परंतु गाड़ी देरी से चलने के कारण भीड़ बढ़ती जा रही है। अतः भाईचारे के नाते उन्हें अगले स्टेशन तक साथ बैठा लिया जाए। हमारे लिए यह एक और नया अनुभव था कि असुविधा की दशा में भी सुविधा की खोज की जानी चाहिए ।

तीसरा अनुभव हमें नैनीताल जाकर होटल में रहते हुए प्राप्त हुआ । हम सभी अलग-अलग घरों, धर्मों, जातियों व संस्कृतियों से संबंध रखते थे। खान-पान में सबसे बड़ी असुविधा शाकाहारी और माँसाहारी की थी। शाकाहारी छात्रों की भावना थी कि सभी लोग शुद्ध शाकाहारी आहार लें जबकि माँसाहारी लोगों का तर्क था कि भ्रमण में मनपसंद न खाया तो भ्रमण का अर्थ ही क्या ? अंततः आपसी मेलजोल और समझदारी से काम लिया गया। प्रभारी महोदय के हस्तक्षेप से यह समस्या भी सुलझ गई। इस प्रकार सभी छात्रों ने अनुभव किया कि यात्रा हमें धैर्य, सहनशीलता, सहयोग और सहिष्णु बनकर जीने जैसी कई शिक्षाएँ देती है।

ICSE 2012 Hindi Question Paper Solved for Class 10

(ii) मैं प्रतिदिन दूरदर्शन के माध्यम से कई महापुरुषों के साक्षात्कार का आनंद लेता हूँ। इस प्रकार के साक्षात्कार प्राय: संपादित लगते हैं क्योंकि उनमें प्रश्न पूछने वाला सामने वाले की रुचि और शुचि को ध्यान में रखकर प्रश्न पूछता हैं। मैं कल्पना करता हूँ कि यदि मुझे सुप्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेव से साक्षात्कार करना पड़े तो मुझे उनसे कौन-से तीन प्रश्न पूछने चाहिए ।

मैंने स्वामी जी के कई शिविरों में भाग लिया है। इन शिविरों में देखा गया है कि सबसे आगे की पंक्तियों में बैठने वाले लोग उस नगर के प्रतिष्ठित धनपति, राजनेता और संभ्रांत वर्ग से संबंधित होते हैं । अत: मैं पहला प्रश्न यही करना चाहूँगा कि यदि शिविर का अर्थ सच्चे योग से है तो योग सीखने और सिखाने में इस

प्रकार का वर्ग-भेद का परिवेश क्यों पैदा हो रहा है। जो लोग निश्चित समय से कई-कई घंटे पहले आकर सबसे आगे जगह पाने का अधिकार रखते हैं, उन्हें तो अंदर घुसने ही नहीं दिया जाता। वे अंतिम पंक्तियों में बड़े संघर्ष से जगह पाते हैं । ऐसा क्यों ?

मैं दूसरा प्रश्न यह करना चाहूँगा कि स्वामी जी के पास अपार संपत्ति है। ट्रस्ट के नाम से अनेक संस्थाएँ संचालित हैं । परंतु सर्वहारा या निर्धन वर्ग के लिए मुफ़्त चिकित्सा सुविधाएँ क्यों नहीं उपलब्ध कराई जातीं। सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय का अभियान चलाने वाले ऐसे योग गुरु निर्धनों के प्रति इतने कठोर क्यों हैं ? जिन पर 60-60 करोड़ के टैक्स चोरी का आरोप है। तीसरा प्रश्न यह होगा कि शिविर में जो लोग सचमुच अपनी समस्या पर आधारित प्रश्न पूछना चाहते हैं, उन्हें तो पूछने ही नहीं दिया जाता। जो प्रश्न पूछते हैं, वे प्रायोजित दिखाई देते हैं । ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जाती कि सभी पीड़ित लोग अपनी- अपनी समस्या के समाधान के लिए प्रश्न पूछ सकें ? तभी योग गुरु का उद्देश्य सार्थक माना जाएगा।

(iii) आज का युग प्रतियोगिता का युग है । इस युग में हर कोई एक दूसरे से आगे निकलकर अपना स्थान विशिष्ट बनाने में लगा हुआ है। ऐसे में माता-पिता और अध्यापक – दो ऐसे वर्ग हैं, जो बच्चों पर अतिरिक्त दवाब बनाने से परहेज़ नहीं करते। वे भूल जाते हैं कि इस प्रकार के दबाब से बच्चे के व्यक्तित्व का समुचित विकास संभव नहीं । एकतरफा विकास कभी – कभी त्रासदी भी बन जाता है।

इस बात को सभी मानते हैं कि बाल्यावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें बच्चे को उचित – अनुचित या हित अनहित के बीच भेद करने का विवेक नहीं होता। अतः माता-पिता और अध्यापक द्वारा बच्चों को भविष्य बनाने, योग्यता निखारने या विशिष्ट बनने के उपदेश दिए जाते हैं। इन उपदेशों का आधार प्रेरणा के रूप में हो तो उत्तम रहेगा। यदि प्रेरणा की जगह दवाब ने ले ली, तो समझिए कि बच्चे का समग्र व सर्वांगीण विकास रुक गया। कोरा किताबी कीड़ा बनना कोई अच्छी बात नहीं। ऐसे में बच्चे को तन, मन और मेधा की पुष्टि के लिए प्रेरित करना कोई अहितकर कार्य नहीं। अनुशासन, नियमबद्धता और सदाचार के साथ-साथ अंकों में गुणवत्ता पर बल देना लाभदायक होता है । ऐसा दवाब सकारात्मक होगा ।

जो माता – पिता या प्राध्यापक अपने बच्चों पर शीर्ष पर बने रहने के लिए अतिरिक्त दवाब बनाते हैं, वे अपने हाथों उन बच्चों का भविष्य नष्ट करते हैं। ऐसे बच्चे लोक और लोकाचार से कट जाते हैं। उनका जीवन पुस्तकों और पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित हो जाता है । वे संस्कृति, समाज और मानव-सुलभ आचार-विचार से परे होते जाते हैं। कई बार अपेक्षित अंक या स्थान न पाने पर विद्यार्थी आत्महत्या कर लेते हैं । इस प्रकार की आत्महत्याओं के पीछे यही अतिरिक्त व अनुचित दवाब क्रियाशील रहता है। अतः सकारात्मक व प्रेरणादायक दवाब से ही काम लेना चाहिए ताकि बच्चे तनावमुक्त जीवन जी सकें।

(iv) मानव जीवन बड़ा विचित्र है । हमारे जीवन में कई विचित्रताएँ होती रहती हैं। कभी-कभी हम किसी बड़ी मुसीबत से बच निकलते हैं तो हमारे मुँह से अनायास ही निकल जाता है – ” जान बची तो लाखों पाये।” ऐसी ही एक बड़ी मुसीबत से उस रात बचा था, जब राजकीय स्कूल लुधियाना से कविता – पाठ प्रतियोगिता में ट्रॉफी जीत कर जालंधर लौट रहा था।

लुधियाना का राजकीय स्कूल बस अड्डे से दूर पड़ता है और रेलवे स्टेशन अत्यंत निकट स्थित है । अतः मैं और मेरी सहपाठिन ने ट्रेन से जालंधर लौटने का सोचा था । विजयोपहार जीतकर कुछ जलपान किया और तुरंत रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए । गाड़ी को पाँच चालीस पर आना था परंतु आई छह पचास पर। भारतीय रेल की स्थिति पर हम दोनों के बीच चर्चा चल रही थी कि सामने वाली सीट पर बैठे एक यात्री का मोबाइल बजा । उसके मोबाइल ने हमारे दिलों में खलबली मचा दी। उसके किसी मित्र ने फ़ोन करके बाताया कि जालंधर में हालात बहुत खराब हो चुके हैं। चारों ओर तोड़फोड़, लूटपाट और आगजनी हो रही है ।

हमने कारण पूछा तो उस यात्री ने कहा कि कारण किसी को भी पता नहीं। मैंने सोचा कि आजकल के लोग बात बेबात अफवाहें फैलाने लगते हैं। राई का पर्वत बनाना कुछ लोगों का काम ही है । छिटपुट घटना को भी इतने विकराल रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि सुनने वाला दहल जाए।

गाड़ी सरपट भाग रही थी । यह गाड़ी सर्वोत्तम गाड़ी मानी जाती है । लुधियाना से चलकर जालंधर कैंट रुकेगी। मार्ग के सभी स्टेशन छोड़ देती है। मैं और रंजना फिर कविता-पाठ की यादें ताज़ा करने लगे। फगवाड़ा गुज़र रहा था । उस यात्री का फ़ोन फिर टनटना उठा। वह दो-तीन मिनट तक बातें करता रहा । हर बार उसके मुँह से भय और विस्मय के सूचक शब्द निकलते- “हैंऽ…, अच्छा…? जला डाला…! वह भी तोड़ दिया । वहाँ तो पुलिस थाना है… हाय राम !… आदि।”

फ़ोन कटा तो उसने रंजना की ओर संकेत करके पूछा – “यह तुम्हारी क्या लगती है ?” मैंने बता दिया तो वह बोला – ” इसे कैंट में ही किसी रिश्तेदार के यहाँ ठहरा सकते हो ?” इस पर मैंने साहस बटोर कर पूछा – ” हुआ क्या है अंकल ?” तब उसने बताया कि जालंधर के पास एक डेरा है जिसके देशभर में लाखों अनुयायी हैं। उनके संत, महात्मा परमानंद जी विदेश में धर्म-प्रचार के लिए गए हुए थे कि किसी ने उन पर गोलियाँ बरसा दीं। उन्हें मृत अवस्था में अस्पताल ले जाया गया जबकि उनके साथी संत की हालत गंभीर बताई जा रही है । इसकी प्रतिक्रिया में उनके अनुयायी सड़कों पर निकल पड़े और जगह-जगह तोड़फोड़ और मारा-मारी कर रहे हैं। पुलिस मूक दर्शक बनी हुई है। लड़की का मामला है, बाकी तुम समझदार हो । रंजना रो पड़ी। रोते-रोते उसने कहा- -“मैं कैंट में उतर जाती हूँ। वहाँ मिलटरी एरिया में मेरी भाभी का मायका है।”

तभी जालंधर कैंट आ गया। मैंने रंजना को ऑटो रिक्शा करके तुरंत चले जाने के लिए कहा क्योंकि जालंधर शहर की आग कभी भी कैंट तक पहुँच सकती थी । जालंधर उतरे तो लगा जैसे सब कुछ सामान्य था । लगा जैसे किसी ने अफवाह फैला दी थी। बेचारी रंजना के चालीस रुपये व्यर्थ में ही ऑटो रिक्शा में उड़ गए होंगे।

स्टेशन से बाहर निकलते ही मिनी बस मिल गई। अभी नेहरू गार्डन रोड़ तक आए थे कि तभी लोहे की छड़ें, हॉकियाँ, बेसबॉल के बैट आदि लेकर एक झुंड सड़क पर आ गया। जैसे ही वह झुंड हमारी बस की ओर बढ़ा, दो युवकों ने बस रुकवा ली और उस पर तेल छिड़कना शुरू कर दिया । हमें समझ आ गया कि आगे क्या होने वाला है। तभी ड्राइवर चिल्लाया – ” भागो, उतरकर भागो, गलियों में घुस जाओ…बचो… हम सब मर जाएँगे।”

मुझे नहीं मालूम, कि मैं उतर कर किस ओर भागा था । जब होश आया तो स्वयं को वृंदा देवी के मंदिर में पाया। तभी मुझे सुनाई दिया—“ भाग्यशाली हो पुत्र ! जान बची तो लाखों पाये।” मैंने देखा कि मंदिर के पुजारी मुझे सुरक्षित देखकर ऐसा कह रहे थे।

(v) प्रस्तुत चित्र का संबंध एक ऐसी नारी के जीवन से है जो सर्वहारा वर्ग का जीवन जीने को विवश है। उसके पास जीवन-यापन के पर्याप्त साधन नहीं हैं। वह प्राकृतिक परिवेश में बने चूल्हे के पास बैठी अपने कठिन व कठोर भाग्य का प्रहार सहती हुई चाय बना रही है। सुविधा के नाम पर उसके पास गिने-चुने बरतन हैं, लकड़ियों से जलने वाला चूल्हा है और धुएँ का कसैला स्वाद है। बिजली की चकाचौंध नहीं अपितु धुँआता टिमटिमाता-सा दीपक है।

भारत को स्वतंत्र हुए कई दशक बीत गए। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारतवासियों को स्वप्न दिखाया जाता था कि स्वतंत्र भारत में कोई नर-नारी अभावग्रस्त जीवन नहीं जीएगा। हर घर में खुशहाली होगी। परंतु चित्र में दिखाई देने वाली नारी इस प्रकार के स्वप्न के झूठा होने का सशक्त प्रमाण है कि आज भी हमारे देश में ऐसी करोड़ों नारियाँ हैं, जो जीवन के आधुनिक तौर-तरीकों और सुख-सुविधाओं से वंचित हैं ।

यह कहना भ्रामक नहीं होगा कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा दोष यही है कि अमीर और अधिक अमीर होता जा रहा है तथा गरीब और गरीब । चित्र में दिखाई देने वाली नारी उन करोड़ों नारियों का प्रतिनिधित्व करती है, जो चूल्हे की दिनचर्या से लेकर दिनभर हाड़-तोड़ परिश्रम के दौर से गुज़रती हुई रात की पाकक्रिया व गृह-व्यवस्था की ज़िम्मेदारियाँ निभाती हुई अपने यौवन में ही बुढ़ापा झेलती रहती हैं।

प्रायः हमारे घरों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था का घिनौना रूप दिखाई देता है । अधिकांश घरों में पुरुष / पति और बच्चे इस बात का बिलकुल भी ध्यान नहीं करते कि उस घर की स्त्री को भी कुछ सहायता या सहयोग की आवश्यकता है। वे काम पर जाते हैं तो स्त्री पर दवाब बनाते हैं । काम से लौटते हैं, तो भी गृहिणी पर ही दवाब बढ़ता है। घर- बार से जुड़े अनेक काम निपटाती हुई ऐसी स्त्रियाँ किसी से सहानुभूति की आशा नहीं रखतीं । जब कभी इन नारियों को मातृत्व की ज़िम्मेदारी निभानी होती है, तब तो और भी बड़ी असुविधा आ खड़ी होती है। ऐसी अवस्था में भी उन्हें गृह-व्यवस्था से मुक्ति नहीं मिलती । कहना अत्युक्ति नहीं होगी कि अबला का जीवन ममता और करुणा तक सीमित हो जाता है। ऐसे में उसके व्यक्तित्व के विकास व अधिकारों के प्रति सजगता से जुड़े नारों की क्या सार्थकता होगी ? इस पर विचार होना अनिवार्य है ।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below- [7]

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए:-
(i) छात्रावास में रहने वाली अपनी छोटी बहन को फैशन की ओर अधिक रुझान न रख, ध्यानपूर्वक पढ़ाई करने की सीख देते हुए पत्र लिखिए ।
(ii) आपके नगर में एक ‘विज्ञान – कार्यशाला’ का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला के संयोजक को पत्र लिखकर बताइए कि आप भी इसमें सम्मिलित होना चाहते हैं।
Answer:
(i) परीक्षा भवन
मेरठ।
2 नवंबर, 20…
प्रिय बहन गौरांगी,
स्नेहाशीष ।

कल ही तुम्हारी सखी प्रियभाषिनी के पिताजी हमारे घर आए थे और बता रहे थे कि वे तुम्हारे विद्यालय और छात्रावास में होकर आए हैं। मन को संतोष हुआ कि तुम छात्रावास में रहकर स्वस्थ एवं प्रसन्न अनुभव कर रही हो ।

प्रिय बहन, एक बात से मेरा मन अत्यंत दुखी हुआ कि तुम महानगर की दूषित हवा में बहकर फैशन करने लगी हो । मैं मानता हूँ कि मनुष्य का जीवन आधुनिकता की दौड़ में बहना चाहता है। मैं यह भी समझता हूँ कि सजना-सँवरना या फैशन से रहना आज के दौर की सबसे बड़ी जरूरत है । परंतु फैशन के नाम पर अमर्यादित जीवन जीने लगना या अंग-प्रदर्शन कोई उचित बात नहीं। ‘फैशन का अर्थ है स्वयं को आकर्षक बनाना न कि मर्यादाहीन बन जाना ।

मैं समझता हूँ कि तुम मेधाविनी हो और मेरा संकेत समझकर स्वयं को संयम में ढालना सीखोगी और नियमित रूप से अध्ययन को दिनचर्या बनाओगी। तुम जानती हो कि बनने और बिगड़ने के दिन यही हैं । यदि तुम अभी संभलकर पढ़ाई को जीवन का अंग बना लोगी तो बड़े से बड़ा उद्देश्य भी तुम्हारे आगे नतमस्तक होगा ।

शेष शुभ। कोई आवश्यकता हो, तो निस्संकोच कहना। मम्मी- पापा की ओर से तुम्हें और प्रियभाषिनी को स्नेह |
तुम्हारा अग्रज,
क. ख. ग.

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(ii) सेवा में,
संयोजक महोदय,
विज्ञान कार्यशाला,
अभिनव विज्ञान व तकनीकी संस्थान,
नई दिल्ली।
विषय – ‘विज्ञान – कार्यशाला’ में प्रतिभागिता संबंधी ।
मान्य महोदय,

मैंने कल के समाचार पत्र में विज्ञापन देखा कि आपके संस्थान में दिनांक 2 अगस्त से 4 अगस्त तक विज्ञान – कार्यशाला का आयोजन हो रहा है। अपने नगर में इस प्रकार की कार्यशाला का होना मेरे लिए ऐसा सुअवसर है जो गर्व की अनुभूति प्रदान कर रहा है। मैं इस कार्यशाला में भाग लेने के लिए अति उत्साहित हो रहा हूँ।

महोदय, मैं इस कार्यशाला में बहुत कुछ सीखने के साथ-साथ अपनी विज्ञान- प्रतिभा का प्रदर्शन भी कर सकता हूँ। मैंने कई अद्भुत मॉडल भी बना रखे हैं। मैं अपनी संस्था का प्रतिनिधित्व करना चाहता हूँ। कृपया मेरा नाम सम्मिलित करके मेरा उत्साहवर्धन कीजिए ताकि मैं आत्मविश्वास के पथ पर और आगे बढ़ सकूँ ।
सधन्यवाद ।
विनीत,
क. ख. ग.
कक्षा-दस ‘अ’
ग्रामदेव उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
नई दिल्ली।
दिनांक : 6 जुलाई, 20…

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :- [10]

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए:- [10]

एक चोर किसी मंदिर का घंटा चुराकर ले गया था । वन में जाते हुए उसका सामना बाघ से हो गया और चोर बाघ के द्वारा मारा गया। उसी वन में वह घंटा बंदरों के हाथ में पड़ गया । वन बहुत घना था । बंदर झाड़ियों के अंदर रहते थे। जब उनकी मौज होती, वे घंटा बजाते । घंटे की आवाज सुनकर समीप के नगर में यह अफवाह फैल गयी कि जंगल में भूत रहता है और उसका नाम घंटाकरण है। उसके कान घंटे के समान हैं, जब वह हिलता है, तो कानों से घंटे की आवाज आती । इस अफवाह से लोग ऐसे भयभीत हुए कि जंगल की ओर भूलकर भी कोई न जाता था । सब जंगल से दूर-दूर ही रहते थे । जंगल से लकड़हारे लकड़ियाँ न लाते थे, चरवाहे जंगल में पशुओं को चराने न जाते थे। किसी में इतना हौंसला न था कि जंगल में जाने का प्रयत्न कर पाता ।

इस प्रकार सारे का सारा जंगल किसी भी काम में न आकर कल्पित घंटाकरण भूत की राजधानी बन गया। अब तो राजा को भी बड़ी चिंता हुई। उसने सयानों और जादूगरों को इकट्ठा किया और कहा कि भाई इस भूत को जंगल से निकालो, वरना सारा जंगल और हज़ारों रुपये की सालाना आमदनी बेकार हाथ से जा रही है।

सब लोगों ने अपने-अपने उपाय करने प्रारंभ किए। पंडितों ने चंडी का जाप किया, हनुमान चालीसा का पाठ किया। मुल्लाओं ने कुरान का पाठ आरंभ किया। किसी ने भैरों को याद किया, किसी ने काली माता की मन्नत की, किसी ने पीर पैगंबर को मनाया, किसी ने जादू-टोना किया। इस पर भी घंटाकरण किसी के काबू में न आया। घंटे का शब्द सदा की भाँति सुनाई देता रहा और लोग समझते रहे कि घंटाकरण घंटा बजा रहा है।

तभी एक चतुर मनुष्य उधर कहीं से आ निकला । वह भूत-प्रेत, चंडी- मुंडी, पीर पैगंबर, जादू टोने आदि कपोल-कल्पित मिथ्या बातों पर विश्वास नहीं करता था । उसने विचारा कि वन में हो न हो कोई विशेष बात होगी। संभव है कि वन में डाकू रहते होंगे और उन्होंने वन को अपने रहने के लिए सुरक्षित बनाने को यह पाखंड रचा हो या कहीं बंदरों के हाथ में घंटा न पड़ गया हो। ऐसा दृढ़ निश्चय कर वह चतुर मनुष्य साधु का वेश धर कर जंगल में घुसा। अंदर जाकर देखा तो उसने अपने अनुमान को सही पाया । लौटकर उसने नगर निवासियों से कहा, “भाइयो! मैंने भूत को पकड़ने का उपाय विचार लिया है। आप लोग मुझे एक गाड़ी भुने चने दें, तो मैं कल ही भूत को पकड़ लेता हूँ।”

नगर के निवासी और राजा भूत के नाश के लिए सब कुछ करने को तैयार थे, झटपट सब सामान इकट्ठा कर दिया। चतुर मनुष्य ने जंगल में जाकर चने बंदरों के आगे डाल दिए। इधर सब बंदर चने खाने में लगे, उधर उसने घंटा उठाकर नगर की राह ली। अब क्या था, सारे नगर में और राजसभा में उस चतुर मनुष्य को बड़ा आदर मिला, फिर उसने सब भेद खोलकर लोगों के मिथ्या विश्वास को तोड़ा। उन्हें भ्रम से मुक्ति दिलाई।

इस कहानी के समान अनेक बातों के भ्रम में पड़कर मनुष्य ने भूत- प्रेत, जादू-टोना आदि अनेक प्रकार की कल्पनाएँ कर ली हैं। लोग भय और मिथ्या विश्वास के कारण वास्तविकता का पता नहीं लगाते हैं और झूठे उपाय कर-करके थकते हैं । वास्तव में भूत-प्रेत आदि यह सब ठग-लीला है। जादू-टोने सब लूटने-खाने के बहाने हैं। इनमें सदा बचने में ही मानव की भलाई है ।

मिथ्या विश्वास से ही मनुष्य तरह-तरह के कष्टों में पड़ जाता है। अतः यथासंभव मिथ्या विश्वास दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए ।

(i) नगर में क्या अफवाह फैल गई थी और इस अफवाह का क्या कारण था ? [2]
(ii) जंगल किसकी राजधानी बन गया था ? इससे नगर निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा ? [2]
(iii) राजा की चिंता का क्या कारण था? भूत को जंगल से निकालने के क्या-क्या उपाय किए गए ? [2]
(iv) चतुर मनुष्य का क्या अनुमान था ? उसने नगर निवासियों को भूत से किस प्रकार मुक्ति दिलाई ? [2]
(v) प्रस्तुत गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिली ? [2]
Answer:
(i) नगर में यह अफवाह फैल गई थी कि जंगल में एक भूत रहता है जिसका नाम घंटाकरण है । इस अफवाह का कारण यह था कि चोरी किया हुआ घंटा बंदरों के हाथ लग गया था। बंदर झाड़ियों में रहते थे । वे अपनी मनमर्जी से घंटा बजाते थे। घंटे की इस आवाज से लोगों में अफवाह फैल गई कि जंगल में भूत रहता है जिसके घंटे जैसे कान हैं ।

(ii) जंगल उस कल्पित घंटाकरण भूत की राजधानी बन गया था। इसका प्रभाव यह हुआ कि लोग भूलकर भी जंगल की ओर जाने से डरने लगे । लकड़हारे जंगल से लकड़ी लाने से डरने लगे । चरवाहे अपने पशुओं को चराने न ले जाते थे । राजा की हज़ारों रुपयों की वार्षिक आय बेकार में हाथ से जा रही थी ।

(iii) राजा ने सयानों और जादूगरों को ‘इकट्ठा करके भूत भगाने का आदेश दिया । कल्पित भूत को जंगल से निकालने के लिए पंडितों द्वारा चंडी का जाप करवाया गया। हनुमान चालीसा का पाठ करवाया गया। मुल्लाओं ने कुरान शरीफ़ का पाठ आरंभ किया। किसी ने भैरों को याद किया, किसी ने काली माता की मन्नत की, किसी ने पीर पैगंबर को मनाया और किसी ने जादू टोना किया।

(iv) चतुर मनुष्य का अनुमान था कि वन में डाकू अपना निवास सुरक्षित बनाने के लिए पाखंड रच रहे हैं या फिर बंदरों के हाथ में कोई घंटा आ चुका है। चतुर मनुष्य साधु का वेश धारण कर जंगल में गया तो उसका अनुमान सच निकला कि बंदरों के हाथ घंटा लग चुका है। उसने जंगल से लौटकर लोगों से कहा कि भूत को पकड़ने के लिए एक गाड़ी भुने हुए चने दिए जाएँ तो वह भूत को कल ही पकड़ लाएगा।

बंदरों ने भुने चने खाने शुरू किए तो चतुर मनुष्य घंटा लेकर चुपके से जंगल से बाहर आ गया। इसके बाद घंटा कभी नहीं बजा ।

(v) इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि भूत-प्रेत और जादू-टोने सब अंधविश्वास है । मनुष्य को तर्क और विवेक से काम लेना चाहिए। सुनी-सुनाई अफवाहें कायरता और भ्रम पैदा करती हैं ।

ICSE 2012 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 4.
Answer the following according to the instructions given:-
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए:
(i) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए :-
अनुभव, पूजा । [1]
(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :-
पुत्री, घमंड । [1]
(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए :-
अपमान, अमावस्या, उत्थान, निन्दा | [1]
(iv) निम्नलिखत मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए :-
मुँह में पानी भर आना, टाँग अड़ाना। [1]
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए :-
सेवक, बच्चा। [1]
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए :

(a) वह दुश्मन की सेना पर टूट पड़ा। [1]
(‘टूट पड़ा’ के स्थान पर ‘ हमला किया’ का प्रयोग कीजिए)
(b) विद्यार्थी पुस्तक पढ़ रहा है।
(बहुवचन में बदलिए) [1]
(c) अन्ना हजारे ने सरकार का लोकपाल बिल मानने से इंकार कर दिया। [1]
(रेखांकित शब्द का विपरीतार्थक शब्द लिखिए। ध्यान रहे वाक्य का अर्थ न बदले ।)
Answer :
(i) अनुभव – अनुभवी, पूजा – पूजनीय ।
(ii) पुत्री – तनुजा, दुहिता, कन्या; घमंड – अभिमान, अहंकार, दर्प ।
(iii) सम्मान, पूर्णिमा, पतन, स्तुति ।
(iv) मुँह में पानी भर आना – दानी के हाथ में रोटियाँ देखकर सभी भिखारियों के मुँह में पानी भर आया ।
टाँग अड़ाना – दुष्ट लोग समाज के हर अच्छे काम में टाँग अड़ाना अपना कर्तव्य समझते हैं ।
(v) सेवक – सेवा, बच्चा – बचपन ।
(vi)

(a) उसने दुश्मन की सेना पर हमला किया।
(b) विद्यार्थी पुस्तकें पढ़ रहे हैं ।
(c) अन्ना हजारे ने सरकार का लोकपाल बिल मानने का इकरार नहीं किया ।

Section-B (40 Marks)
(Attempt four questions from this Section.)

You must answer at least one question from each of the two books you have studied and any two other questions.

गद्य-संकलन

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:
“जिस दिन तुम्हें यह पत्र मिलेगा उसके ठीक सवेरे मैं, बाल अरुण के किरण रथ पर चढ़कर, उस ओर चला जाऊँगा। मैं चाहता तो अंत समय तुमसे मिल सकता था, मगर इससे क्या फायदा ? मुझे विश्वास है, तुम मेरी जन्म-जन्मान्तर की जननी हो, रहोगी ! मैं तुमसे दूर कहाँ जा सकता हूँ ? माँ, जब तक पवन साँस लेता है, सूर्य चमकता है, समुद्र लहराता है, तब तक कौन मुझे तुम्हारी करुणामयी गोद से दूर खींच सकता है।”
-उसकी माँ-
लेखक – पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’
(i) यह पत्र किसने, किस अवसर पर लिखा था ? [2]
(ii) ‘मैं, बाल अरुण के किरण रथ पर चढ़कर, उस ओर चला जाऊँगा ।’– प्रस्तुत पंक्ति की व्याख्या कीजिए । बताइए कि वह ऐसा क्यों कह रहा है ? [2]
(iii) पत्र में लिखे गए शब्दों का वहाँ उपस्थित लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा ? [3]
(iv) प्रस्तुत पाठ के नायक के जीवन-चरित से आपने क्या प्रेरणा प्राप्त की है ? क्या आज हमारे देश को ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है ? तर्कसहित उत्तर दीजिए । [3]
Answer :
(i) यह पत्र क्रांतिकारी लाल ने अपनी माँ जानकी को उस अवसर पर लिखा जब उसे तथा उसके साथी क्रांतिकारी बंगड़ को फाँसी होने वाली थी ।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति में क्रांतिकारी लाल अपनी माँ से कह रहा है कि प्रात: होते ही उसे फाँसी हो जाएगी। वह अपनी बूढ़ी माँ जानकी के साथ रहता था। वे दोनों एक-दूसरे का सहारा थे । अब लाल इस दुनिया से जा रहा था । अतः वह सोचता है कि उसकी माँ की सब आशाएँ भी समाप्त हो रही होंगी । इसीलिए वह अपनी दूसरी दुनिया में आमंत्रित कर रहा है ।

(iii) पत्र सुनते ही लेखक की पत्नी की विकलता हिचकियों पर चढ़कर उस कमरे को करुणा से कँपाने लगी, लेखक शून्य – सा होकर कुर्सी पर गिर पड़ा और लाल की माँ, जानकी ज्यों की त्यों, लकड़ी पर झुकी पूरी खुली और भावहीन आँखों से लेखक की ओर देखती रही और फिर, मौन भाषा में उसने लेखक से पत्र माँगा और कमरे के बाहर चली गई ।

(iv) ‘उसकी माँ’ के नायक लाल के जीवन-चरित से हमें यह प्रेरणा प्राप्त होती है कि देश व देशहित से बड़ा कुछ नहीं है। देश से ही देशवासियों की पहचान होती है। जो लोग अपने राष्ट्र की दुरावस्था पर चिंतित नहीं होते, वे पशु समान हैं, से दुखी होना प्रत्येक नागरिक का प्रथम कर्तव्य है । अपने देश की गुलामी हम सबके माथे पर कलंक के समान होती है जिससे मुक्ति का हर संभव प्रयास होना चाहिए।

ICSE 2012 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
एक भेड़ चराने वाली और सतोगुण में डूबी हुई युवती कन्या के दिल में जोश आते ही कुल फ्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया । अपने आपको हर घड़ी और हर पल महान् बनाने का नाम वीरता है । वीरता के कारनामे तो एक गौण बात है । असल वीर तो इन कारनामों को अपनी दिनचर्या में लिखते भी नहीं । दरख्त तो ज़मीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है ।
– सच्ची वीरता-
लेखक-सरदार पूर्णसिंह
(i) सच्चे वीरों और दरख्त में क्या समानता होती है ? [2]
(ii) ‘सतोगुण’ से आप क्या समझते हैं ? इस गुण से युक्त व्यक्तियों की क्या विशेषता होती है ? [2]
(iii) भेड़ चराने वाली युवती कौन थी ? उसने वीरता का क्या कार्य किया था ? [3]
(iv) प्रस्तुत पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer :
(i) सच्चे वीरों का मन सबका मन होता है । वह अपने संकल्प को जनता के संकल्प से जोड़ते हैं । उनकी शक्ति सबकी शक्ति हो जाती है। वे अपनी बजाय सबके विषय में सोचते और करते हैं। उनका जीवन उस दरख्त के समान होता है जो जमीन से इसे ग्रहण करने में लगे रहते हैं। पेड़ कभी यह नहीं सोचता कि उसमें कितने फल-फूल लगेंगे और उन्हें कौन खाएगा । वह यह नहीं सोचता कि उसने कितने फल किसे दिए । वह बिना किसी स्वार्थ के अपना कर्म करता जाता है ।

(ii) जीवन की सच्ची वीरता का गुण ही सतोगुण है। इस गुण से युक्त व्यक्ति लोगों के दिलों पर राज करता है। उसका मन सबका मन हो जाता है। वह अपने संकल्प को जनता के संकल्प से जोड़ता है । वीर दुनिया के सामने अचानक ही आकर खड़े हो जाते हैं ।

(iii) भेड़ चराने वाली युवती सतोगुण में डूबी एक फ्रांसीसी लड़की थी। उसके दिल में जोश आते ही सारा फ्रांस एक भारी हार से बच गया था। यही उसकी वीरता का सूचक है।

(iv) प्रस्तुत पाठ का उद्देश्य यह है कि वीरता का संबंध अंदर और बाहर दोनों प्रकार की दृढ़ता से है। सच्चाई, साधुता, दानवीरता और दयावीरता भी उतनी ही प्रशंस्य है जितनी शारीरिक वीरता । वीर, फ़कीर और पीर इसी के अंतर्गत आते हैं । आत्मिक उन्नति भी इसी की सूचक है ।

Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:
” सबको देंगे, भैया, जरा रुको, जरा ठहरो, एक-एक को लेने दो। अभी इतनी जल्दी हम कहीं लौट थोड़े ही जाएँगे । बेचने तो आए e ही हैं और है भी इस समय मेरे पास एक-दो नहीं पूरी सत्तावन ।… हाँ बाबूजी, क्या पूछा था आपने, कितने में दी ?… दी तो वैसे तीन-तीन 5 पैसे के हिसाब से है, पर आपको दो-दो पैसे में ही दे दूँगा । ”
-मिठाईवाला-
लेखक – भगवती प्रसाद वाजपेयी
(i) यहाँ कौनसी वस्तु बेची जा रही है ? इस समय बेचने वाले के मनोभाव कैसे हैं ? [2]
(ii) दाम सुनकर ‘बाबूजी’ ने क्या सोचा और क्या कहा? [2]
(iii) बाबूजी का परिचय दीजिए। बताइए कि उनका कथन, किन लोगों के, किस व्यवहार की ओर संकेत कर रहा है ? [3]
(iv) ‘व्यक्ति विधाता की लीला के समक्ष विवश होता है, तथापि दुःख की घड़ी में विलाप करने के स्थान पर, अन्य माध्यमों से स्वयं को खुश करने के प्रयत्न का नाम ही सच्ची मनुष्यता है । ‘ – मुरलीवाले के चरित्र को ध्यान में रखकर इन पंक्तियों पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए । [3]
Answer:
(i) एक फेरीवारा गली-गली घूमकर रंग-बिरंगी मुरलियाँ बेच रहा है। मुरलीवाला अपने आस-पास नन्हें-मुन्ने बच्चों को पाकर अतीव प्रसन्न है। वह दूसरों के बच्चों में रहकर अपने बच्चों जैसा सुख खोजता रहता है। मिठाई या मुरली बेचना तो एक बहाना है ।

(ii) दाम सुनकर बाबूजी अर्थात् राय विजय बहादुर ने सोचा कि फेरीवाला ठग है और वह सभी को इसी दाम पर मुरली बेचता होगा, परंतु इस समय कम दाम की बात करके एहसान जता रहा है। उसने कहा कि ऐसे लोगों को झूठ बोलने की आदत ही होती है ।

(iii) बाबूजी का नाम राय विजय बहादुर है। उनके दो बच्चे हैं जिनके नाम चुन्नू और मुन्नू हैं । वे रोहिणी के पति हैं । बाबूजी का कथन फेरीवालों के व्यवहार की ओर संकेत करता है जो अपनी वस्तुएँ बेचते तो मनमाने दाम पर हैं परंतु बच्चों को बताते हैं कि उन्हें कम दाम पर वस्तु दी जा रही है। इस प्रकार वे लोगों पर एहसान लादते हैं। उन्हें झूठ बोलने की आदत होती है ।

(iv) मुरलीवाला किसी नगर का एक धनी व्यक्ति था लेकिन ईश्वर की लीला के समक्ष वह विवश हो गया। उसकी पत्नी और बच्चों का देहांत उसके सुखमय जीवन को निराशा में बदल गया। लेकिन वह दूसरों के बच्चों की रुचि की वस्तुएँ सस्ते दामों पर बेचकर अपना मन बहलाता था । वह दूसरों के बच्चों में अपने बच्चों की झलक पाता था। उसके पास पैसे तो बहुत हैं परंतु जिस वस्तु . की कमी है, वह उसे इन बच्चों के साथ हँस बोलकर प्राप्त कर लेता है । मनुष्य को हमेशा स्वयं को खुश रखने का प्रयत्न करते रहना चाहिए क्योंकि यही सच्ची मनुष्यता है । मुरलीवाला यही सब कर रहा था ।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
लेखक-प्रकाश नगायच

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:
“जो आज्ञा, देव !” कहकर वीरसेन ने सम्राट को प्रणाम किया और कक्ष से निकलकर सैनिक शिविर की ओर चल पड़ा।
थोड़ी देर बार ही पाटलिपुत्र का दुर्ग और नगर रणवाद्यों से गूँज उठा । गंगा और सोन नदियों की शांत लहरों में जैसे ज्वार आ गया ।
(i) कितने वर्षों के संघर्ष के बाद चंद्रगुप्त को मगध का राज्य प्राप्त हुआ था ? वह किस उपाधि को धारण कर गुप्त साम्राज्य के राजसिंहासन पर बैठा था ? [2]
(ii) चंद्रगुप्त के राजसिंहासन पर बैठने की प्रजा पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी व क्यों ? [2]
(iii) भारतवर्ष की तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियाँ कैसी थीं? सम्राट ने वीरसेन को क्या आज्ञा दी थी और क्यों ? [3]
(iv) जननी जन्मभूमि के प्रति मनुष्य का क्या कर्तव्य होता है ? प्रस्तुत संदर्भ को ध्यान में रखकर एक अनुच्छेद में उत्तर दीजिए। [3]
Answer:
(i) चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को सात वर्षों के संघर्ष के बाद मगध का राज्य प्राप्त हुआ ।
मगध में आने पर एक शुभ मुहुर्त में चंद्रगुप्त को विक्रमादित्य की उपाधि प्रदान करके उसे मगध के गुप्त साम्राज्य के राजसिंहासन पर बिठाया गया ।

(ii) चंद्रगुप्त के राजसिंहासन संभालने पर मगध की प्रजा की प्रसन्नता की कोई सीमा न थी । सम्राट समुद्रगुप्त एक कुशल पराक्रमी, साहसी, दूरदर्शी व प्रजा – वत्सल शासक थे । उनके देहांत के बाद रामगुप्त के रूप में एक ऐसा शासक मिला जो अन्यायी तथा अत्याचारी होने के साथ कायर व नपुंसक भी था । अब चंद्रगुप्त के रूप में उन्हें एक ऐसा शासक मिला जो गुप्त वंश का सच्चा वंशज तथा गुप्त साम्राज्य का सच्चा उत्तराधिकारी था ।

(iii) गुप्त साम्राज्य की अवस्था के विषय में चंद्रगुप्त का विचार था कि अयोग्य शासक के राजसिंहासन पर बैठने के कारण उसकी जड़ें खोखली होती जा रही है । कायर व अयोग्य शासक से कोई भी भयभीत नहीं होता और न ही ऐसे राजा का कोई सम्मान करता है। रामगुप्त ने अपने पिता सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा स्थापित महान् मूल्यों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। रामगुप्त के अन्याय, शिखर स्वामी और उसके साथियों के अत्याचारों ने गुप्त साम्राज्य की वे मजबूत जड़ें हिला दी हैं, जिसे सम्राट स्वर्गीय समुद्रगुप्त ने अपनी शक्ति, पराक्रम और वीरता से सींचा था। आज गुप्त साम्राज्य पतन और विनाश के कगार पर खड़ा है। सम्राट ने वीरसेन को आज्ञा दी कि वह सैनिक शिविर में जाये क्योंकि अयोध्या से अपनी सेना लेकर रामगुप्त की सहायता करनी थी ।

(iv) कहा जाता है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है । हमारे देश की संस्कृति नारी को सम्मान की दृष्टि से देखती है । प्रस्तुत उपन्यास में महादेवी ध्रुवस्वामिनी का संदर्भ उठाकर लेखक ने इसी सम्मान की रक्षा की प्रतिज्ञा को स्मरण करवाया है। जो लोग अपनी जन्मभूमि और जननी (नारी) का अपमान करते हैं, वे रामगुप्त की तरह पतन के गर्त में जाते हैं । जो लोग इनका सम्मान करते हैं, वे चंद्रगुप्त की तरह महान और विक्रमादित्य बन जाते हैं । नारी को दाँव पर लगाना घोर क्षुद्रता है ।

ICSE 2012 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-

“हमने वचन दिया था ने लापरवाही से कहा – ” पुरोहित जी जो मंत्र पढ़ते गए हम तो उन्हीं को दोहरा रहे थे । पता नहीं उन मंत्रों का अर्थ क्या था ?

(i) रामगुप्त का परिचय दीजिए और बताइए कि उसे कौन-से वचन याद नहीं हैं ? [2]
(ii) रामगुप्त के इस कथन का किसने, क्या उत्तर दिया ? [2]
(iii) रामगुप्त और चंद्रगुप्त के चरित्र में क्या-क्या भिन्नताएँ थीं? [3]
(iv) ‘कुल की रक्षा के लिए एक व्यक्ति का, नगर की रक्षा के लिए कुल का और राष्ट्र की रक्षा के लिए नगर का त्याग कर देना चाहिए।’ आप इस विचार से कहाँ तक सहमत हैं ? तर्कसहित उत्तर दीजिए । [3]
Answer:
(i) रामगुप्त एक छली और अन्यायी शासक है जो अपने पिता सम्राट समुद्रगुप्त की शासन व्यवस्था के विपरीत निरंकुश व व्याभिचारी बनकर शासन चला रहा था। वह छोटे भाई चंद्रगुप्त की अनुपस्थिति में मगध के साम्राज्य पर अधिकार जमा लेता है । रामगुप्त इतना दुश्चरित्र है कि वह अपने छोटे भाई चंद्रगुप्त की मंगेतर ध्रुवस्वामिनी से बलपूर्वक विवाह कर लेता है । वह उसे वचन देता है कि वह उसके मान-सम्मान की रक्षा प्राणों से भी बढ़कर करेगा, परंतु बाद में इस वचन को याद नहीं रखता।

(ii) रामगुप्त के उपर्युक्त कथन के उत्तर में ध्रुवस्वामिनी कहती है कि अच्छा ही हुआ कि सम्राट को उन मंत्रों का अर्थ मालूम नहीं, वर्ना व्यर्थ ही हिंसा का पाप सिर पर लेना पड़ता और मगध सम्राट की ‘वीरता’ सभी जान जाते । ‘वीरता’ शब्द पर जोर देते हुए वह अपने पति की कायरता का संकेत देती है ।

(iii) रामगुप्त चंद्रगुप्त का बड़ा भाई है, परंतु दोनों के चरित्र में जमीन- आसमान का अंतर है। चंद्रगुप्त वीर, साहसी, देशभक्त, दूरदर्शी, दृढ़संकल्पी तथा नारियों का सम्मान करने वाला उच्च चरित्र शूरवीर है। दूसरी ओर रामगुप्त छली, भीरू, स्वार्थी, षड्यंत्रकारी, चापलूसी पसंद करने वाला तथा नारी को वस्तु समझने वाला नीच व्यक्ति है । वह छलपूर्वक अपने अनुज चंद्रगुप्त की मंगेतर ध्रुवस्वामिनी को पत्नी बना लेता है और राजसंकट के समय अपने प्राण बचाने के लिए उसे दाँव पर लगा देना चाहता है । उधर चंद्रगुप्त उसके मान-सम्मान की रक्षा करता है।

(iv) सामान्य परिस्थितियों में राष्ट्रहित सर्वोपरि होता है और उपर्युक्त कथन को एक अच्छी नीति माना जा सकता है, परंतु जहाँ पर नारी-सम्मान का प्रश्न हो, वहाँ इस नीति का पालन करना अनुचित है । प्रस्तुत उपन्यास में यही संकेत दिया गया है कि नारी की मान-मर्यादा की रक्षा करना उतना ही अनिवार्य है जितनी देशरक्षा करना। रामगुप्त और चंद्रगुप्त की नीति में यही मौलिक अंतर है। एक ने देश और अपनी स्वयं की रक्षा के लिए पत्नी को शकराज के आगे समर्पित करने का निश्चय कर लिया जबकि दूसरे ने भारतीय उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा करते हुए उसके मान-सम्मान की रक्षा की।

Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
रुद्रसिंह सम्राट चंद्रगुप्त के इन शब्दों का मर्म न समझ पाए और प्रसन्न होकर बोले – ” मगध सम्राट की इस उदारता और महानता ने शत्रु होते हुए भी मगध सम्राट की प्रशंसा करने पर विवश कर दिया है। नीतिकारों ठीक ही कहा है बुद्धिमान शत्रु भी सौभाग्य से ही मिलते हैं । ”

(i) रुद्रसिंह कौन थे ? वे चंद्रगुप्त के किन शब्दों का मर्म नहीं समझ सके ? [2]
(ii) सम्राट चंद्रगुप्त के इन शब्दों के पीछे क्या गहरा रहस्य छिपा था? [2]
(iii) इस युद्ध में रुद्रसिंह की हार का प्रमुख कारण आप किसे समझते हैं और क्यों ? [3]
(iv) यहाँ बुद्धिमान शत्रु कहकर कौन किसे संबोधित कर रहा है और क्यों ? [3]
Answer :
(i) रुद्रसिंह मालवा के महाराज थे। चंद्रगुप्त ने रुद्रसिंह की प्रशंसा में कहा कि मगध का शत्रु होते हुए भी आज वे मगध सम्राट की प्रशंसा करने पर विवश हैं। इसमें छिपे हुए गहरे रहस्य को रुद्रसिंह समझ न सका कि बुद्धिमान शत्रु भी सौभाग्य से ही मिलते हैं ।

(ii) चंद्रगुप्त ने रुद्रसिंह का सामना होते ही उनका स्वागत किया । चंद्रगुप्त जानते थे कि रुद्रसिंह उनका शत्रु है लेकिन उनका रहस्य था कि दोनों के बीच तलवार युद्ध हो और मैं उसे इसी जगह पराजित कर सकूँ।

(iii) इस युद्ध में रुद्रसिंह की हार का प्रमुख कारण उनका ही सेनापति विशाल देव है ।
इसका कारण था कि विशाल देव आक्रमण की तैयारी करता है जबकि कोई भी सैनिक दुर्ग की चारदीवारी तक पहुँच नहीं पा रहा था क्योंकि चंद्रगुप्त ने सभी गुप्त मार्गों और सुरंगों को बंद करवा दिया था ।

(iv) चंद्रगुप्त बुद्धिमान शत्रु कहकर रुद्रसिंह को संबोधित कर रहा है क्योंकि रुद्रसिंह ने उज्जैन में स्वयं दुर्ग का निर्माण कराया था कि शत्रु किसी भी मार्ग से प्रवेश न कर पाये। उनकी बुद्धिमता में सेंध मारने का मौका चंद्रगुप्त को मिल गया क्योंकि उज्जैन के दुर्ग पर कब्जा करते समय चंद्रगुप्त को राशन और शस्त्र काफी मात्रा में मिल गये थे। चंद्रगुप्त ने सभी गुप्त मार्गों और सुरंगों को बंद कर अपने विजय अभियान में सफलता पाई ।

एकांकी सुमन

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

‘क्या कहता है, रोशन ? ”
‘वह तो बात भी नहीं सुनता, जाने बच्चे की तबीयत बहुत खराब है ।
” एक दिन में ही इतनी क्या खराब हो गयी ! मैं जानता हूँ यह सब बहानेबाज़ी है । ”
– लक्ष्मी का स्वागत-
लेखक – उपेन्द्रनाथ ‘ अश्क’

(i) यह वार्ता किन-किन व्यक्तियों के बीच हो रही है ? वार्ता का संदर्भ स्पष्ट कीजिए । [2]
(ii) यहाँ किस बात को बहानेबाज़ी कहा गया है और क्यों ? [2]
(iii) बहानेबाज़ी का आरोप लगाने के पश्चात् उस व्यक्ति ने क्या किया ? उसके चारित्रिक दोषों का वर्णन करते हुए बताइए कि ऐसे व्यक्ति समाज के लिए कलंक क्यों हैं ?
(iv) प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए ? [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत वार्ता रोशन के माता-पिता के बीच हो रही है। यह प्रसंग रोशन के बेटे अरुण की गंभीर बीमारी के क्षणों में उसके माता- पिता द्वारा उसके नए विवाह के लिए शगुन लेने के संदर्भ में कहा गया है। एक ओर अरुण मृत्यु शैय्या पर पड़ा है तो दूसरी ओर उसी घर में उसी समय रोशन के माता-पिता को शगुन लेने अर्थात् लक्ष्मी का स्वागत करने की जल्दी पड़ी हुई है। रोशन इस कठोर मानसिकता से परेशान होकर मना करता है तो उसकी माँ सुरेंद्र से कहती है कि वह मित्र होने के नाते रोशन को मनाए परंतु रोशन नहीं मानता। उसकी माँ जब अंदर जाकर उसके पिता से कहती है कि अरुण की तबियत बहुत खराब हो गई है तो पिताजी उक्त संवाद कहते हैं ।

(ii) वक्ता रोशन के पिता हैं । वे अपने पुत्र पर अरुण को बीमार बताकर शगुन टालने की बहानेबाज़ी का आरोप लगा रहे हैं । जब माँ के बार-बार मनाने पर रोशन सियालकोट वाले व्यापारी से मिलने अंदर नहीं जाता तो पिताजी आवेश में आ जाते हैं। उन्हें रोशन की बीमारी की गंभीरता एक बहाना लगती है । वे चाहते हैं कि जितनी जल्दी हो सके, लक्ष्मी का स्वागत कर लिया जाए। वे रोशन पर शगुन लेने का दवाब बढ़ा रहे हैं परंतु रोशन की स्थिति इस प्रकार की निर्ममता के अनुकूल नहीं है। पिता सोचते हैं कि वह अपनी पहली पत्नी की यादों से जुड़ा होने के कारण नया विवाह नहीं करना चाहता और अरुण की बीमारी का बहाना बनाकर बचना चाहता है ।

(iii) रोशन के पिता बहानेबाज़ी का आरोप लगाने के पश्चात् कहते हैं कि वे घर आई लक्ष्मी का अपमान नहीं कर सकते। उन्हें न तो रोशन की दिवंगत पत्नी सरला से कुछ लगाव है और न ही उसकी अंतिम निशानी अरुण की मृत्यु से ही कोई दुःख है । वे तो अरुण को रोशन के विवाह के बीच की एक बाधा मानते हैं । वे रोशन की सहमति के बिना ही शगुन के रुपये ले लेते हैं। उनके विचार में रिश्ते तो रिश्ते ही होते हैं वे शगुन देने वालों से अरुण के विषय में अति कठोरता व हृदयहीनता से कह देते हैं कि वह बीमार है, हालत ठीक नहीं रहती, उसका परमात्मा ही मालिक है। इस प्रकार रोशन के पिता की मानसिकता हृदयहीन, स्वार्थी व धन के लोभी व्यक्ति की है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए कलंक है ।

(iv) उपर्युक्त एकांकी का शीर्षक ‘लक्ष्मी का स्वागत’ अत्यंत स्टीक एवं सार्थक है, क्योंकि एकांकी में यह भली-भाँति स्पष्ट किया गया है कि धन पाने की लालसा एवं लोलुपता व्यक्ति को न केवल संवेदनशून्य बना देती है, बल्कि उसे मानवीय संबंधों से भी दूर कर देती है। धन-लोलुप व्यक्ति समय कुसमय का भी ध्यान नहीं रखते। एक तरफ़ तो शिक्षित युवक रोशन अपनी पत्नी की असामयिक मृत्यु से पहले से ही दुखी था कि अचानक उसके बेटे को गंभीर बीमारी ने घेर लिया। ऐसी कठिन परिस्थिति में उसे अपने माता-पिता की संवेदना, सहानुभूति तथा सहारे की आवश्यकता थी, जबकि उसके माता-पिता उसकी वेदना को भुलाकर उस पर दूसरा विवाह करने का दबाव डाल रहे थे।

वे ऐसा इसलिए कर रहे थे कि इस रिश्ते से उन्हें बहुत सा धन मिलने वाला था। अर्थात् वे लक्ष्मी का स्वागत करने को बेचैन थे। इस एकांकी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें लोभ एवं अमानवीय व्यवहार त्यागकर उचित – अनुचित निर्णय लेना चाहिए तथा कोई भी निर्णय लेने से पूर्व मानवीय संवेदनाओं एवं भावनाओं का अवश्य ध्यान रखना चाहिए । धन-लोलुपता व्यक्ति की बुद्धि को नष्ट कर देती है ।

ICSE 2012 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

“हाँ, वह बात तो पूरी ही नहीं की तुमने, भीमा ! शिवाघाट से फिरंगियों कोटलाया कैसे ? ”
” राजा कुँवरसिंह की बुद्धि की क्या तारीफ़ करूँ सरदार, कटार की धार – सी पैनी है । हरकिशन को साधु बनाकर भेजा, जानते हो किसलिए ?”
– विजय की वेला –
लेखक – जगदीश चंद्र माथुर

(i) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ स्पष्ट कीजिए । [2]
(ii) हरकिशुन को कहाँ, किस उद्देश्य से भेजा गया था ? [2]
(iii) राजा कुँवरसिंह कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। [3]
(iv) ‘राष्ट्र विरोधी ताकतों का डटकर विरोध करना ही सच्ची देशभक्ति है । – एकांकी के आधार पर इस पंक्ति की समीक्षा कीजिए। [3]
Answer:
(i) प्रस्तुत कथन शिवाघाट पर मल्लाह भीमा अपने सरदार नाथू से कहता है। सरदार से अभिप्राय मल्लाहों के सरदार ‘नाथ’ से है जो महाराज कुँवरसिंह का समर्थक, वफादार तथा विश्वासपात्र है । भीमा कहता है कि उन्हें जब गंगा नदी पार कर शिवाघाट पर उतरना था तो वहाँ अंग्रेज़ जनरल डगलस और लेगार्ड आ पहुँचे। अतः उन्होंने अपने गुप्तचर हरकिशन को साधु के वेश में भेजकर अफवाह फैलाई थी कि सभी नावें डूब गईं जिसके कारण वे बलिया घाट से हाथियों पर सवार होकर गंगा नदी पार करेंगे।

(ii) कुँवरसिंह के कहने पर साधु वेश बनाए हुए हरकिशन ने यह अफवाह फैला दी कि महाराज को नाव नहीं मिल सकी। जिसके कारण वे हाथियों पर बैठकर बलिया घाट से गंगा पार करेंगे। इस प्रकार अंग्रेज़ों को छकाया गया और डुबोई हुई नावें निकालकर गंगा पार करनी शुरू की गई। इस प्रकार साधु वेश बनाकर हरकिशन को दूत के रूप में शिवाघाट भेजा गया जहाँ अंग्रेज़ों को गलत सूचना देनी थी ताकि नावों द्वारा निर्विघ्न होकर गंगा पार जाया जा सके।

(iii) 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष रूप से योगदान देने वाले व्यक्ति वीर कुँवरसिंह एक महान क्रांतिकारी, साहसी तथा विवेक योद्धा थे। जगदीश माथुर द्वारा लिखित सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक एकांकी ‘विजय की वेला’ के नायक वीर कुँवरसिंह हैं । उन्होंने 80 वर्षों की आयु में अंग्रेज़ों का डटकर मुकाबला किया। उनमें देश प्रेम और स्वतंत्रता प्रेम की भावना अत्यंत प्रबल है। वे साहस, शौर्य, पराक्रम तथा विवेक के साथ अंग्रेज़ी सेना का डटकर मुकाबला करते रहे। उन्होंने देश के सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी चिंता नहीं की। वे गोलियों से घायल भुजा को स्वयं अपनी तलवार से काटकर गंगा के जल में बहा देते हैं और संघर्ष को जारी रखने के लिए आगे बढ़ जाते हैं । एकांकी में उनकी तुलना बूढ़े शेर के साथ की गई है। उनके चरित्र को सावन की झड़ी की तरह निरंतर क्रियाशील रहने वाला बताया गया है। वे नींद व विश्राम की चिंता किए बिना अंग्रेज़ों के विरुद्ध संग्राम करते रहते हैं और अंततः जगदीशपुर के किले पर फिर से अपना राजपूती झंडा फहराकर ‘विजय की वेला’ मानकर प्राण त्यागते हैं ।

(iv) प्रस्तुत एकांकी का केंद्रीय भाव देश-प्रेम व राष्ट्रीय जागरण है । एकांकीकार ने कुँवरसिंह का चरित्र प्रस्तुत करके इसी संदेश को जन तक पहुँचाना चाहा है। उनका चरित्र एक ऐसे सेनानी का है जिसने 80 वर्ष की आयु में भी अपनी वीरता, साहस, पराक्रम व विवेक के आधार पर अंग्रेज़ों को नाकों चने चबवा दिये । एकांकी में स्पष्ट किया गया है कि देश व जन्मभूमि के मान-सम्मान की रक्षा के लिए अपना तन-मन व धन न्यौछावर करना प्रत्येक राष्ट्रभक्त का परम कर्तव्य है । राष्ट्र को हानि पहुँचाने वाली शक्तियों का डटकर विरोध करना ही राष्ट्र भक्ति है ।

Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
” दूसरे लोग पाँच-छः महीने पहले से सारा सामान जुटा लेते हैं और यहाँ रह गए हैं गिनती के बीस दिन ! तुमने तो अपनी घोलकर पी ली है । जाओ, अभी जाओ और शहर जाकर उससे रुपये लेकर आओ, नहीं तो मैं सिर पटक-पटक कर जान दे दूँगी।”
– मेल मिलाप –
लेखक – देवराज ‘दिनेश’

(i) वक्ता कौन है ? वह किस कार्य के लिए बीस दिन बचे होने की बात कह रही है ? [2]
(ii) श्रोता का चरित्र चित्रण कीजिए । [2]
(iii) वक्ता को किस पर, क्या संदेह है ? इस समय उसकी मन:स्थिति कैसी है ? [3]
(iv) ‘स्वस्थ समाज के लिए आपसी मेल-मिलाप के साथ-साथ पुरानी शत्रुता को भुलाना भी आवश्यक होता है । ‘ – इस कथन की व्याख्या एकांकी के संदर्भ में कीजिए । [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत पंक्ति की वक्ता राधा है। मंगल सिंह की पत्नी राधा अपने पति को यह सुझाव दे रही है कि वह अपने मित्र रघुराज सिंह के पास शहर जाकर उससे अपने रुपये वापस माँग लाए क्योंकि बेटी सीता के विवाह को अब केवल बीस दिन रह गए हैं। यह सुझाव वह इसलिए दे रही है क्योंकि अभी तक विवाह की कोई भी तैयारी नहीं हो पाई है। लोगों के घरों में जब बेटियों के विवाह निश्चित होते हैं तभी वे सारी वस्तुएँ घर में लाकर रखना शुरू कर देते हैं । उसे इस बात की चिंता है कि मंगल सिंह को अभी तक कोई भी चिंता नहीं हो रही । वह हाथ पर हाथ धरे बैठा है ।

(ii) प्रस्तुत पंक्ति के श्रोता मंगल सिंह हैं।
मंगल सिंह का औरतों के विषय में विचार अति निम्नस्तर का है । वह समझता है कि औरतें राय देना नहीं जानती और न हीं उसकी राय मानी जानी चाहिए। पत्नी राधा के सुझावों को सुनकर वह उन पर विचार करने के बजाय उसे टाल जाता है।

(iii) वक्ता राधा को रघुराज सिंह के चरित्र के संबंध में पहले से ही पूरी-पूरी जानकारी थी । उसे मंगल सिंह के इस कपटी मित्र की नीयत पर संदेह है। वह जानती है कि अवसर आने पर वह धोखा देगा और रुपया नहीं लौटाएगा। सारा गाँव जानता है कि वह एक बेकार, काइयाँ, मक्कार तथा धूर्त व्यक्ति है जो राधा के विरुद्ध उसके पति को भी भड़काता रहता था।

(iv) पारिवारिक और सामाजिक प्रगति के लिए मेल-मिलाप अत्यंत आवश्यक हैं । मेल-मिलाप और पारस्परिक तालमेल से ही पारिवारिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है । अकेला मनुष्य कभी सफल नहीं हो सकता । परस्पर सहयोग की आवश्यकता सभी को पड़ती है।

काव्य-चंद्रिका

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता ।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता ।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं, नाविक तट पर पछताता है ।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।
– जीवन का झरना-
लेखक – आरसी प्रसाद सिंह

(i) निर्झर के मार्ग में कौन-कौन सी बाधाएँ आती हैं ? वह उनका किस प्रकार सामना करता है ? [2]
(ii) नाविक कब पछताता है और क्यों ? [2]
(iii) झरने को किस बात की लगन है ? कवि ने निर्झर और नाविक में क्या अंतर बताया है ? [3]
(iv) ‘मानव जीवन की सार्थकता झरने के समान गतिशील बने रहने में और बाधाओं का डटकर मुकाबला करने में ही होती है ।’ प्रस्तुत पंक्ति के आधार पर एक अनुच्छेद में अपने विचार दीजिए। [3]
Answer :
(i) झरने के जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं, पहली कठिनाई तो यह है कि वह पर्वत के गर्भ से निकलता है, पर्वत की कठोर परत को चीर कर बाहर आना एक ऐसी बाधा है, जिसे वह अपने जन्म के समय ही पार कर लेता है। इसके बाद वह चलने के लिए मार्ग ढूँढ़ता है तो रास्ते के रोड़े उसे बाधा देते हैं । वन के वृक्ष रुकावटें खड़ी करते हैं । उसके मार्ग में कभी चट्टानें भी आ जाती हैं, पर वह इन सब कठिनाइयों से नहीं घबराता और न ही हार मानकर रुक जाता है । उसमें यौवन की शक्ति होती है जिसमें वेग का संचरण होता है। वह इसी वेग को अपनी जीवन-शक्ति बनाकर इन बाधाओं को चीरता हुआ स्वयं को समतल मैदानों की ओर ले जाता है ।

(ii) कवि ने नाविक की चर्चा करते हुए कहा है कि जब नदी में लहरें उठती और गिरती हैं तब नाविक किनारे पर खड़ा होकर पछताता है। वह जानता है कि नदी में बाढ़ आई हुई है। नदी में ऊँची उठती लहरें नाविक को हतोत्साह करती हैं। वह इस समय नदी में नौका डालने का साहस नहीं करता। ऐसे में उसकी हार हो जाती है । कवि ने संदेश दिया है कि ऊँची-ऊँची लहरों से घबराकर किनारे पर खड़ा रहने वाला नाविक पार जाने का साहस नहीं कर सकता। जो बाधाओं या कठिनाइयों से जूझता है, वही जीवन में आगे बढ़ पाता है ।

(iii) झरने में आगे बढ़ते जाने तथा कठिनाइयों को पार करने की लगन है । कवि ने बताया है कि झरने और नाविक के जीवन में बहुत असमानता है । झरना अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से कभी भी घबराता नहीं है। वह कठिनाइयों की परवाह न करते हुए अपनी गतिशीलता बनाए रखता है । उसकी सफलता का यही रहस्य है। दूसरी ओर नाविक का जीवन इसके विपरीत है । वह सामने बाधाओं को पाकर भयभीत हो जाता है । वह ऊँची उठती लहरों को सबसे बड़ी कठिनाई समझता है, इसीलिए वह नदी में नौका नहीं डालता और किनारे पर खड़ा पछताता रहता है। झरने में गतिशीलता का रहस्य ही उसके जीवन की सार्थकता का मूलमंत्र है । वह अपने यौवन की उमंग में आगे बढ़ता जाता है । इस रूप में झरने और नाविक के जीवन में बहुत असमानता है ।

(iv) ‘बाधा के रोड़ों से लड़ने’ का अर्थ यह है कि झरने का मार्ग रोकने वाले अनेक पत्थर हैं। जैसे ही वह पर्वत के अंदर से रास्ता बनाता हुआ बाहर आता है, वैसे ही उसके रास्ते में अनेक रोड़े अर्थात् पत्थर आ जाते हैं । वह इन रोड़े रूपी बाधाओं के रोकने पर रुकता नहीं है । वह उनसे हार नहीं मानता। उसमें अपनी एक वेगवती इच्छाशक्ति होती है जिसके बल पर इन बाधा रूपी रोड़ों से लड़ता है और उन्हें नीचा दिखाकर अपना मार्ग प्रशस्त करता है । इस अर्थ में उसका जीवन अपनी पहली लड़ाई जीत जाता है और गतिशीलता में कोई भी व्यवधान नहीं आता ।

Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

तजौ मन हरि विमुखन को संग |
जिनके संग कुबुधि उपजत है, परत भजन में भंग ।
कहा होत पय-पान कराए, विष नहीं तजत भुजंग ।
काहिं कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंगा ।
खर को कहा अरगजा लेपन, मरकट भूषण – अंग ।
गज को कहा सरित अन्हवाए, बहुरि धरै वह ढंग ।
पाहन – पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग |
सूरदास कारी कामरि पै, चढ़त न दूजौ रंग ।
– सूर के पद
कवि -सूरदास

(i) किस प्रकार के व्यक्तियों का साथ छोड़ देना चाहिए और क्यों? [2]
(ii) ‘पाहन – पतित बान नहिं बेधत, रीतौ करत निषंग’- पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए और बताइए कि ऐसा कवि ने क्यों कहा है? [2]
(iii) कवि ने किन-किन उदाहरणों द्वारा, किस प्रकार यह स्पष्ट किया है कि प्रभु से विमुख लोगों का स्वभाव नहीं बदला जा सकता है? [3]
(iv) निम्न शब्दों के अर्थ लिखिए :
अरगजा, रीतौ, निषंग, कामरि, खर, स्वान । [3]
Answer :
(i) कवि ने हरि से विमुख होने वाले लोगों का साथ छोड़ने के लिए कहा है, क्योंकि वे ईश्वर में विश्वास नहीं रखते। ऐसे नास्तिक लोगों के साथ रहने से बुरी बुद्धि पैदा होती है अर्थात् मन में बुरे विचार पैदा होते हैं । इस प्रकार के लोगों की संगति में रहने पर ईश्वर के भजन में भी बाधा पहुँचती है।

(ii) इस पंक्ति में कवि कह रहे हैं कि पत्थर पर बाणों को मारते रहने से कोई लाभ नहीं क्योंकि तरकश खाली हो जाएगा परंतु पत्थर में छेद उत्पन्न नहीं हो सकेगा, अर्थात् नास्तिक व्यक्ति पत्थर के समान होते हैं । उनको समझाकर बदला नहीं जा सकता। वे आपकी बुद्धि को भी फेट देंगे पर उन्हें समझाने का कोई परिणाम नहीं निकलेगा ।

(iii) कवि ने उदाहरण देकर कहा है कि नास्तिक लोग साँप की तरह होते हैं, साँप को जितना भी दूध पिलाओ, वह विष को कभी नहीं छोड़ता । कौए को भले ही कपूर खिलाते रहो परंतु वह कोयल जैसी मधुर वाणी में नहीं बोल सकता। इसी प्रकार कुत्ते को गंगा – स्नान कराने का कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि वह गंदगी से प्रेम नहीं छोड़ पाता । इसी प्रकार गधे को चंदन – लेप, बंदर को आभूषण पहनाने और हाथी को नहलाने का कोई फल नहीं होता ।

(iv) अरगजा – चंदन, रीतौ – खाली, निषंग – तरकश, कामरि – कंबल, खर – गधा, स्वान – कुत्ता।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow:

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए-
चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देवें बना।
काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना ।।
जो कि हँस-हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना ।
‘है कठिन कुछ भी नहीं’ जिनके है जी में यह ठना ।।
कोस कितने ही चलें, पर वे कभी थकते नहीं ।
कौन-सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं ।
-कर्मवीर-
कवि – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
(i) ‘चिलचिलाती धूप को चाँदनी बना देने’ का क्या तात्पर्य है ? किस प्रकार के व्यक्ति यह कर सकने में समर्थ होते हैं [2]
(ii) ‘लोहे के चने चबाना’ और ‘गाँठ खोलना’ मुहावरों के अर्थ कविता के संदर्भ में बताइए । [2]
(iii) कविता के आधार पर बताइए कि कर्मवीरों की क्या विशेषताएँ होती हैं ? [3]
(iv) प्रस्तुत कविता किस सिद्धांत पर आधारित है ? आपको इस कविता से क्या प्रेरणा मिली, समझाकर लिखिए। [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत पंक्ति का तात्पर्य है कि कर्मवीर व्यक्ति झुलसाती धूप को भी चाँदनी में बदल सकने की क्षमता रखते हैं । कवि का आशय है कि कर्मवीर लोग तपती धूप में भी काम करने से नहीं डरते । कड़कती धूप को भी शीतल चाँदनी समझकर कर्मपथ पर बढ़ते रहते हैं ।

(ii) ‘लोहे के चने चबाना’ का अर्थ है कठिन कार्य करना । कवि ने कहा है कि कर्मवीर लोग कठिन से कठिन कार्य करने से भी पीछे नहीं हटते। उनके सामने कोई भी कार्य कठिन या असंभव नहीं । ऐसे लोग काम की कठिनाई को महत्त्व नहीं देते।

‘गाँठ खोलना’ का अर्थ है रहस्य या भेद समझना । कवि कह रहे हैं कि कर्मवीर व्यक्ति हर समस्या का हल निकाल सकते हैं । उनके लिए कोई कार्य कठिन नहीं होता ।

(iii) कर्मवीरों की विशेषता होती है कि वे बाधाओं को देखकर नहीं घबराते । अपना काम समय पर पूरा करते हैं। वे कठिनाइयों से नहीं घबराते, बेकार की बातों में समय नहीं गँवाते तथा आज का काम कल पर नहीं छोड़ते। जब वे किसी कार्य को हाथ में लेते हैं, तो उसे पूरा करके ही दम लेते हैं ।

(iv) प्रस्तुत कविता कर्मवाद के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें कवि ने यह समझाना चाहा है कि व्यक्ति, समाज तथा देश की उन्नति का मूल आधार कर्मवाद का मूल सिद्धांत है। जो लोग दृढ़ निश्चय, लगन, बुद्धि, साहस व उत्साह का सहारा लेकर अपने काम में लग जाते हैं, उनका मार्ग बड़ी से बड़ी बाधा भी नहीं रोक सकती । कोई विरोधी उनके सामने नहीं टिक सकता। सच्चे कर्मवीर देश तथा मानवता का कल्याण करते हैं । अतः भाग्यवाद का सहारा छोड़कर कर्मवाद को ही अपना सर्वोच्च मानना चाहिए ।