Solving ICSE Class 10 Hindi Previous Year Question Papers ICSE Class 10 Hindi Question Paper 2014 is the best way to boost your preparation for the board exams.

ICSE Class 10 Hindi Question Paper 2014 Solved

Section – A (40 Marks)
(Attempt all questions)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250. words on any one of the following topics :- [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए:-

(i) भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति का वर्णन करते हुए पाश्चात्य संस्कृति की कुछ अपनाने योग्य बातों पर प्रकाश डालिए ।
(ii) आज खेलों में फैला भ्रष्टाचार एक नया ही रूप ले रहा है, विषय
को स्पष्ट करते हुए, अपने प्रिय खेल का वर्णन कीजिए तथा जीवन में खेलों की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए ।
(iii) अपने जीवन में घटी उस घटना का वर्णन कीजिए जिसे याद करके, आप आज भी हँसे बिना नहीं रहते तथा इससे आपको क्या लाभ मिलता है ।
(iv) एक मौलिक कहानी लिखिए जिसका आधार हो—
“जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय “।
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
ICSE 2014 Hindi Question Paper Solved for Class 10 1
Answer :
(i) भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति
भारतीय संस्कृति एक महान संस्कृति है । भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लोग इसके उदात्त तत्त्वों और जीवन-मूल्यों की प्रशंसा करते हैं । यही ऐसा देश है जहाँ सत्य, अहिंसा, दानशीलता, परोपकार समन्वय, करुणा, त्याग, स्वदेश-प्रेम, प्रकृति – प्रेम और मानवतावाद की शिक्षा दी जाती है।

वेद, पुराण और इतिहास-ग्रंथ इस तथ्य के साक्षी हैं कि भारत देश की परम्पराएँ कितनी महान रही हैं । यहाँ सत्यवादी हरिश्चंद्र के जीवन का उदाहरण मिलता है और ऋषि दधीचि के अस्थि-दान की महिमा गाई जाती है। यही वह देश है जहाँ कर्ण जैसे दानवीर हुए हैं। रंतिदेव के उदाहरण को कौन भूल सकता है । यह इस संस्कृति का ही प्रभाव था कि विधर्मी होते हुए भी सम्राट हुमायूँ ने एक राजपूत हिंदू रानी की राखी का मूल्य चुकाया । इसी देश की धरती पर विश्वविजेता कहे जाने वाले सिकंदर के सेनापति सिल्यूकस की कन्या ने स्तुतिगान करते हुए यहीं पर रच-बस जाने की घोषणा की थी।

इतिहास साक्षी है कि इस भारतीय संस्कृति का आकर्षण विदेशियों को भी यहीं पर बस जाने का निमंत्रण देता है। दूसरी ओर पाश्चात्य संस्कृति में अनेक ऐसे जीवन-मूल्य हैं जो हम भारतीय लोगों को रास नहीं आते। अत्याधुनिक जीवन शैली, उन्मुक्तभोग, भौतिकवाद, स्वार्थी प्रवृत्ति आदि ऐसे ही कुछ पहलू हैं जो हमें पसंद नहीं। भारत के परिवारों की व्यवस्था, पति-परायण पत्नियाँ, एक पत्नी व्रत पति, व्रत, तीर्थ आदि के विपरीत पाश्चात्य संस्कृति में अराजकता, तलाक, अविश्वास, असंबद्धता, निष्ठुरता, स्वार्थ आदि तत्त्व पाए जाते हैं ।

दोषों के बावजूद पाश्चात्य संस्कृति के कुछ पहलू ऐसे भी हैं जो हम भारतीय लोगों को सीखने चाहिए । राष्ट्रीय चरित्र, देश का सम्मान, अनुशासन, नियमबद्धता, कर्तव्य पालन, कर्मनिष्ठा, समय का बोध, परिवेश – बोध, भ्रष्ट व अनैतिक प्रवृत्तियों का त्याग आदि ऐसे गुण हैं, जो विदेशी लोगों से सीखने होंगे। जो लोग विदेश होकर आते हैं, वे बताते हैं कि वहाँ कितनी सफाई, यातायात संबंधी जागरुकता, स्वास्थ्यकर आदतों का अपनाव, रख-रखाव में सहयोग आदि देखे जाते हैं। मेरे पिताजी आस्ट्रेलिया होकर आए हैं। उन्होंने बताया कि एक दिन मॉल में एक स्त्री अपने नन्हें बच्चे के साथ उनके आगे चल रही थी । बच्चे के हाथ से कैंडी नीचे फर्श पर गिर गई। इस बात का पता स्त्री को थोड़ी दूर जाकर चला। वह पीछे घूमी, कैंडी देखी और उसने न केवल उसे उठाकर कूड़ेदान में डाला अपितु नैपकिन से उस जगह को भी साफ़ किया । जापानियों का राष्ट्रीय चरित्र सर्वविदित है अतः हमें भी इस प्रकार की सकारात्मक पाश्चात्य संस्कृति की प्रवृत्तियाँ अपनानी चाहिए ताकि समाज और राष्ट्र का समुचित विकास हो सके।

ICSE 2014 Hindi Question Paper Solved for Class 10

(ii) खेलों में भ्रष्टाचार और खेलों का महत्त्व
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मानव के जीवन में खेलों का कितना महत्त्व होता है। खेल हमें शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक रूप में सुदृढ़ करते हैं। इससे न केवल हमारा शरीर स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट रहता है अपितु हमारे मन और चरित्र को भी दृढ़ता मिलती है। बचपन से लेकर मनुष्य खेलकूद में रुचि रखता आया है । ये खेलें न केवल हमारा मनोरंजन करती हैं अपितु हममें सहनशीलता, संतोष, धैर्य, साहस और अग्रसर होने के गुण भी सिखाती हैं ।

आज प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। आज से वर्ष पहले तक खेलकूद भ्रष्टाचार से सर्वथा मुक्त माना जाता था। आज का समय बहुत कुछ बदल चुका है। मैं क्रिकेट खेलता हूँ और इस खेल में मेरी अपार रुचि और समर्पण – भावना है। इधर कुछ वर्षों से लगातार समाचार आ रहे हैं कि अमुक देश के अमुक खिलाड़ी ने धन लेकर मैच को ‘फिक्स’ करने का अनैतिक कार्य किया। अमुक सट्टेबाज ने इतना रुपया या डॉलर देकर अमुक खिलाड़ी या खिलाड़ियों को खरीद लिया। यह दोनों ओर मारक अस्त्र की तरह वार करने वाले हथकंडे हैं । इससे खराब खेलने या अच्छा न खेलने की भावना पनपने लगती है। बल्लेबाज और गेंदबाज़ तो इस अनैतिक और भ्रष्ट संस्कृति में रंगते ही हैं, परन्तु हैरानी की बात है कि अम्पायर तक इससे नहीं बच पाए। हमने तो सुना है कि पिच तैयार करने, निर्णय देने आदि में भी ऐसे अनैतिक पूर्वाग्रह दिखाए जाने लगे हैं ।

मैं समझता हूँ कि इस पूरे विश्व में लोकप्रिय खेल-जगत को बचाया जाना चाहिए। मैं अपने प्रिय खेल क्रिकेट की बात करता हूँ, परन्तु अन्य खेलों में भी भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। नई पीढ़ी को इसे रोकना होगा । घूस देकर अपना चुनाव ( चयन) करवाना, टीम में स्थान पाना आदि इस प्रकार के भ्रष्ट आचरण से मुक्त होना चाहिए। यदि इसे तुरंत न रोका गया तो मानव को खिलाड़ी बनाने वाली ये प्रतिस्पर्धाएँ दर्शनीय न होकर निंदनीय हो जाएँगी। हमें प्रण लेना चाहिए कि इस प्रकार के भ्रष्ट तरीकों को न तो अपनाएँ और न ही इसकी अनदेखी करके चुप ही बैठें।

(iii) जीवन की हास्यपूर्ण घटना
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई ऐसी घटना अवश्य होती है जिसे स्मरण करके हम कई-कई वर्षों तक हँसते रहते हैं । मेरे जीवन में भी एक ऐसी ही घटना हुई है जो मेरे लिए आज भी हँसी का कारण है।

यह उन दिनों की बात है जब मैं धर्मशाला में पढ़ता था । धर्मशाला हिमाचल प्रदेश में स्थित ऐसा नगर है जहाँ कई तिब्बती परिवार निवास करते हैं। उन दिनों पिताजी की नौकरी वहीं थी और मुझे भी वहीं के सैनिक स्कूल में भर्ती करवाया गया।

धर्मशाला से जब कभी हमारा परिवार पंजाब आता तो हमारी दादीजी एक ही बात कहा करती थीं और वह यह, कि धर्मशाला में रहने वाला एक तिब्बती साधु तांत्रिक अँगूठी बनाता है जिससे घुटनों और जोड़ों के दर्द ठीक हो जाते हैं। हर बार हम भूल जाते और हर बार वे नाराज़ होकर ताने देने लगतीं। अंततः इस बार माताजी ने पिताजी से आग्रह किया कि पंजाब तभी जाएँगे, जब दादी जी के लिए वह अँगूठी बनवा लाएँगे ।

दशहरे की छुट्टियाँ आ रही थीं। सभी लोग अपने-अपने कार्यक्रम के अनुसार कहीं न कहीं भ्रमण के लिए निकल रहे थे । पिताजी ने पंजाब जाने का कार्यक्रम बनाया और आश्वस्त किया कि वे तांत्रिक से अँगूठी बनवाकर ले आएँगे । अगले ही दिन वे एक अँगूठी ले आए और माता जी की चिंता दूर हो गई । दादी जी अँगूठी पाकर बेहद प्रसन्न थीं। उनका विचार था कि सर्दियों के आने तक वह अँगूठी काम कर चुकी होगी और उसके प्रभाव से वे इस बार स्वस्थ रहेंगी। हम छुट्टियाँ बिताकर वापस धर्मशाला चले गए। दिसम्बर की छुट्टियाँ हुईं तो हम प्रत्येक वर्ष की तरह पुनः अपने पंजाब आए। इस बार दादी जी ने प्रसन्न होकर मेरा माथा चूमा और बताया कि उस चमत्कारिक अँगूठी के प्रभाव से वे इस बार घुटनों के दर्द से मुक्त रहीं । वे इतनी प्रशंसा कर रही थीं कि पूरे गाँव से कई बुजुर्गों की सिफारिशें आने लगीं कि उन्हें भी वैसी ही अँगूठी बनवाकर दी जाए।

आज दादी जी इस संसार में नहीं हैं। अब आकर पिताजी ने बताया कि वह अँगूठी कोई तांत्रिक अँगूठी नहीं थी बल्कि उसे वे फुटपाथ से खरीद कर लाए थे। इस बात पर हम आज भी हँसने से रह नहीं पाते कि एक साधारण-सी अँगूठी ने कैसे चमत्कार कर दिया कि दादी जी पुराने रोग से मुक्ति पा गईं। इस घटना से मुझे यह संदेश मिलता है कि मनुष्य के बहुत से रोग और उनकी चिकित्सा मनोवैज्ञानिक होती है । यदि हम विश्वास और आस्था को महत्त्व देते हैं, तो कुछ भी वाँछित फल अनुकूल सिद्ध किया जा सकता है।

(iv) जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय
प्रायः कहा जाता है कि जिसको प्रभु का रक्षाकवज हो, उसे कौन मार सकता है। इसी को चरितार्थ करती हुई मुझे एक भौतिक कहानी स्मरण आती है, जो मेरी माताजी ने मुझे कुछ वर्ष पूर्व सुनाई थी।

यह उन दिनों की बात है जब पंजाब की धरती पर आतंकवाद का साया था । माताजी सहारनपुर से लौट रही थीं । अगस्त का महीना था। भारी वर्षा के कारण ट्रेन देरी से पहुँची । लुधियाना रेलवे स्टेशन से बाहर आकर देखा तो पता चला कि हमारे गाँव की ओर आने वाली आखिरी बस भी जा चुकी थी । रात के दस बज चुके थे । अकेली औरत और साथी के नाम पर केवल घटाटोप अँधेरा और सन्नाटा।’

अंततः एक ऑटोरिक्शा दिखाई दिया। माताजी ने चलने के लिए पूछा तो वह तुरंत मान गया। किराया पूछा तो पचास रुपए बताया । माताजी को किराया भी उचित लगा और ऑटो चालक भी भला लग रहा था। वे बैग लेकर ऑटो में बैठीं तो सड़कों का सन्नाटा देखकर घबरा उठीं। जल्दी ही सूनी सड़क अँधेरी कच्ची सड़क में परिवर्तित हो गई। माताजी ने पूछा कि इधर कौन – सा रास्ता है तो उत्तर मिला – ” चुपचाप बैठी रह । शोर मचाया तो यह चाकू पूरा पेट में घुसेड़ दूँगा । ”

अब कुछ भी छिपा न रह गया था। स्पष्ट हो गया कि वे किसी लुटेरे के वश में हैं । अब भगवान ही रक्षा करे तो करे । कुछ ही मिनटों में एक बाग आ गया। ऑटो वाले ने आदेश दिया – ” अभी कूँगा तो चुपके से उधर टेकरी पर बैठ जाना।” कहते ही रिक्शा रुका और पलक झपकते ही माताजी का बैग और पर्स छीनकर ऑटो में सवार होकर नौ दो ग्यारह हो गया । न जाने उसे क्या सूझा कि वह पुन: लौट आया और बोला – “तेरे हाथों के कड़े लेना तो भूल ही गया । ” कहने के साथ ही वह झपटा। माताजी भाग खड़ी हुई। अँधेरा और भी गहरा था क्योंकि ऊपर घने वृक्ष थे । थककर गिर पड़ीं तो अचेत हो गईं। होश आया तो पता चला कि एक गहरे गड्ढे में पड़ी हैं । न रोते बना और न चिल्लाते ।

वे उस मौत के कुएँ जैसे गड्ढे में आधी रात तक पड़ी रहीं। हालत यह थी कि हाथ पीछे पीठे की ओर बँधे हुए थे । मुँह में कपड़ा ठूंस दिया गया था । वर्षा का पानी गड्ढे में भरने लगा था । मौत ही मौत दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ देर वर्षा न रुकी तो वे डूब जाएँगी। हाथों में जान नहीं थी और सिर भन्ना रहा था। तभी एक दूध वाला उधर से गुजरा। उसने देखा कि एक ऑटो खड़ा है और पास ही कोई पुरुष लेटा हुआ था । पास जाकर पता चला कि उसके होंठ नीले हो चुके हैं और वह ठंडा हो चुका है। शायद किसी विषैले साँप ने डँस लिया था। इतने में गड्ढे में से छप्प – छप्प की ध्वनि सुनकर वह उधर लपका। अंतिम क्षणों में वह आदमी रक्षक बनकर आया मानो भगवान
दूत हो। आज भी माताजी उस दर्दनाक घटना का वर्णन करते हुए कहती हैं कि जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।

(v) चित्र प्रस्ताव
दिया गया चित्र कुछ महिलाओं का है जो जल लेने के लिए कतार में लगी हुई हैं। नल से निकलने वाले जल की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं लगती। यही कारण है कि ये स्त्रियाँ उसे कपड़े में से छानकर भर रही हैं ताकि उसकी गंदगी का निस्तारण हो सके।

आज हमारे देश में जल की भारी कमी नजर आ रही है। नहाना- धोना, साफ़-सफाई, धुलाई आदि तो दूर की बात, पीने के लिए भी यथेष्ट जल उपलब्ध नहीं है । अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ के लोग प्रदूषित जल पीने के लिए विवश हैं। ऐसे जल से अनेक प्रकार के रोग लगते रहते हैं जो कई बार घातक सिद्ध होते हैं । आज चारों ओर जल-संरक्षण की दुहाई दी जा रही है। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि जल मानव तथा मानव-मित्र प्राणियों व जीवों का मूलभूत आधार है। प्रकृति द्वारा दी गई विभिन्न देनों में से जल एक अमूल्य देन है । इसलिए कहा जाता है – “जल ही जीवन है ।” सभी जीवों को जीवन देने के अतिरिक्त यह कई उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में भी प्रयुक्त होता है । यह घुलनशील द्रव्य है, जो अनेक पदार्थों को घोल सकता है। जल को विरलक के रूप में अपशिष्ट हटाने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है।

जल के बिना मनुष्य एक क्षण भी आगे की योजनाओं को क्रियान्वित नहीं कर सकता। यह जीवमंडल में विभिन्न तत्त्वों को संचरित करता है तथा चयापचय प्रक्रिया (मैटाबोलिज्म) के लिए माध्यम उपलब्ध कराता है, जो जीवन के लिए अनिवार्य है। यह जैव पदार्थों का मुख्य अवयव भी है। कहते हैं कि मनुष्य पाँच तत्त्वों (अवयवों) का पुतला है । जल भी उन पाँच तत्त्वों में गिनाया जाता है। प्राणिशास्त्र का मानना है कि जैव पदार्थों के शरीर में 50 से 90 प्रतिशत तक का भार जल का ही होता है । जैव पदार्थों की मूलभूत सामग्री जीवद्रव्य है जिसमें वसा, प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, नमक तथा जल के अन्य रसायनों का घोल होता है. जीवों में रक्त तथा पौधों में पौधरस मुख्यतः जल से ही संचरित होते हैं। यह आहार संचरण तथा अपशिष्ट के निष्कासन में भी सहायक होता है।

पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका हुआ यह मानव जीवन से जुड़ी विकासपरक प्रक्रियाओं में सहायक अभिकर्ता के रूप में पाया जाने वाला प्राकृतिक संसाधन है। इसके बिना कई प्रकार की गतिविधियाँ बाधित हो सकती हैं। हम घरों में कई रूपों में जल का प्रयोग करते हैं जैसे-पीने, धोने, नहाने, पकाने, सफाई आदि की गतिविधियों में । दूसरी ओर देखें तो मानव जिन खाद्य-पदार्थों तथा फ़सलों का उपयोग करता है, वे भी जल पर आधारित हैं । कृषि में जल सिंचाई का एक मुख्य साधन है। सभी स्थानों पर वर्षा पर्याप्त रूप में नहीं होती। सिंचाई फ़सलों को समय पर जल उपलब्ध कराने की विधि है ।

अतः हमारे सामने जल संरक्षण एक चुनौती के रूप में खड़ी होने वाली आवश्यकता है। न केवल पेय, अपितु अन्य प्रकार के जल का भी संरक्षण होना चाहिए। विकास की अंधी दौड़ ने मनुष्य को स्वार्थी तथा निर्मम बना दिया है। वह अपने आसपास के संसाधनों की पुनर्पूर्ति की ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं देता था । आज स्थिति बदल रही है। लोगों में जागृति आने लगी है। वे सोचने लगे हैं कि यदि हम जल को इसी प्रकार नष्ट करते रहेंगे तो एक दिन हमारे लिए पेय जल भी नहीं बचेगा। जल- प्रदूषण एक और बड़ी समस्या है। नगरों में जल को गंदा करने वाले मुख्य कारणों में से एक बड़ा कारण उद्योगों से निकलता विषैला रसायन है। इस प्रकार के जल को सेवन करने वाला मनुष्य या प्राणी प्रभावित होकर रहेगा। पौधे तक इसके दुष्प्रभाव से नहीं बच सकते।

आज अनेक प्रकार के प्राचार माध्यमों, समितियों, क्लबों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं ने जल के संरक्षण का अभियान चलाया है । लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे जल का उपयोग सोच समझकर करें। जल का संचय और उपयोग बहुत बद्धिमत्ता से होना चाहिए। कई घरों में जल बहता रहता है। पौधों को पानी देते समय सतर्कता नहीं बरती जाती। गलियों और गाड़ियों को धोने में पानी बर्बाद होता है। उपयोग में न आने वाले नलों को बंद रखा जाना चाहिए । यदि हम समझदार नागरिक बनेंगे तो ही आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण हो सकेगा । हमारी सरकारों को भी ऐसे उपक्रम करने होंगे कि उपर्युक्त चित्र जैसी दीन स्थिति पैदा न हो ।

ICSE 2014 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below- [7]

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :-
(i) आप किसी स्थान विशेष की यात्रा करना चाहते हैं । उस स्थान की जानकारी प्राप्त करने के लिए, उस क्षेत्र के पर्यटन विभाग के अधिकारी को पत्र लिखकर पूछताछ कीजिए।
(ii) आपका भाई अपना अधिकांश समय मोबाइल फोन के उपयोग में बिताता है। मोबाइल फोन के अधिक उपयोग करने से होने वाली हानियों का उल्लेख करते हुए, उसे पत्र लिखिए ।
Answer :
(i) श्रीमान पर्यटन अधिकारी,
उत्तराखंड पर्यटन प्राधिकरण,
नैनीताल ।

विषय : पर्यटन स्थलों की जानकारी प्राप्त करने हेतु श्रीमान जी,

मैं दिल्ली निवासी छात्र हूँ और पर्यटन में विशेष रुचि रखता हूँ । मैं अपने माता-पिता और बहन के साथ आगामी ग्रीष्मकालीन अवकाश में नैनीताल आना चाहता हूँ ।

मान्य महोदय, मेरे परिवार के सदस्यों और सगे संबंधियों में से कोई भी ऐसा नहीं है जो नैनीताल के विषय में पूरी जानकारी रखता हो। यात्रा पर निकलने से पूर्व हम सभी जानना आवश्यक समझते हैं कि वहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल कौन-से हैं । आपका पर्यटन विभाग इस दिशा में पर्याप्त सहयोग देता आया है । अतः आपसे प्रार्थना है कि हमें वहाँ के स्थानीय तथा निकटवर्ती दर्शनीय स्थलों की जानकारी और गन्तव्य तक यात्रा के निर्देश उपलब्ध कराए जाएँ ताकि हमें अपने भ्रमण को ठोस आकार देने में कोई कठिनाई न हो । संभव हो तो अनुमानित खर्च की जानकारी भी प्रदान करें। हम सदैव ऋणी रहेंगे।
सधन्यवाद ।
विनीत,
क०ख०ग०
……… एन्क्लेव,
……… स्मारक पथ,
नई दिल्ली
दिनांक : 21 मार्च, 20…

(ii) परीक्षा भवन,
………. नगर ।
15 मार्च, 2014
प्रिय अनुज कार्तिकेय,
सस्नेह नमस्ते,

आशा है कि तुम स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे। कल ही एक उत्सव में तुम्हारे विद्यालय के एक शिक्षक से भेंट हुई और तुम्हारे विषय में जानकारी प्राप्त हुई ।

प्रिय अनुज, मुझे यह सुनकर अतीव गर्व हुआ कि तुम अपने विद्यालय के सबसे अनुशासित और मेधावी छात्र हो । दूसरी ओर यह जानकर गहरा आघात लगा कि तुम्हारे कान पर सदैव मोबाइल फोन चिपका रहता है । मैं जानता हूँ कि यह यंत्र आज के युग की एक विलक्षण व उपयोगी सुविधा है, परंतु किसी भी यंत्र का अत्यधिक उपयोग हानिकारक होता है । तुम तो विज्ञान के छात्र हो और आधुनिक प्रौद्योगिकी से पूरी तरह सतर्क हो । तुम्हें बताने की आवश्यकता नहीं है कि इसका अत्यधिक प्रयोग शरीर, मन और मस्तिष्क के लिए घोर हानिकारक है। इसकी किरणें दुष्प्रभाव छोड़ती हैं। दूसरी यह तुम्हारे अध्ययन में बाधा भी डाल सकता है और मन तथा लगन को भटका सकता है T अतः मेरा सुझाव है कि तुम इसके उपयोग को नियंत्रित करो । शेष शुभ है । आशा है अन्यथा नहीं लोगे ।
तुम्हारा अग्रज,
क० ख०ग०

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :-

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिएँ : [10]

महान रसायनशास्त्री आचार्य नागार्जुन को अपनी प्रयोगशाला के लिये दो सहायकों की आवश्यकता थी । अनेक युवक उनके पास आये और निवेदन किया कि वे उन्हें अपने सहायक के रूप में नियुक्त कर लें । लेकिन परीक्षा लेने पर सभी प्रत्याशी अयोग्य साबित हुए। अंत में आचार्य निराश हो गए। उनकी निराशा का कारण यह था कि युवकों में रसायनशास्त्र के ज्ञाता तो बहुत थे और अपने विषय से परिचित भी, लेकिन एक रसायनशास्त्री के लिए जो एक पवित्र ध्येय होता है, उसका सभी में अभाव था । प्रत्याशियों में से किसी को अपने वेतन की चिंता थी, किसी को अपने परिवार की, तो किसी को अपना भविष्य उज्ज्वल बनाना था । पर आचार्य नागार्जुन को ऐसे सहायक की आवश्यकता नहीं थी। उनके मन और विचार में कुछ और ही था । निराश होकर उन्होंने सहायक की आवश्यकता होते हुए भी स्वयं ही सारा कार्य करने का निश्चय कर लिया ।

कुछ दिन बाद ही दो युवक आचार्य के पास आये। उन्होंने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हें अपना सहायक नियुक्त कर लें। आचार्य ने पहले तो उन्हें लौटा देना चाहा, लेकिन युवकों के अधिक आग्रह पर उन्होंने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। आचार्य ने दोनों युवकों को एक पदार्थ देकर दो दिन के भीतर ही उसका रसायन तैयार कर लाने को कहा। दोनों युवक पदार्थ लेकर अपने घर लौट गए।

दो दिन बाद एक युवक रसायन तैयार करके सुबह – सुबह ही उनके पास पहुँचा और रसायन का पात्र उन्हें देते हुए बोला “लीजिए आचार्य जी, रसायन तैयार है”। रसायन के पात्र की ओर बिना देखे ही आचार्य प्रश्न किया, ” तो रसायन तैयार कर लिया तुमने ? ”

रसायन का पात्र एक ओर रखते हुए युवक ने कहा, “जी हाँ ।” आचार्य ने दूसरा प्रश्न किया, “रसायन तैयार करते समय किसी भी प्रकार की कोई बाधा तो उपस्थित नहीं हुई ? ” युवक ने सकुचाते हुए उत्तर दिया, “बाधायें तो बहुत आईं थीं, लेकिन मैंने किसी भी बाधा की चिंता किये बिना अपना कार्य चालू ही रखा तथा रसायन तैयार कर लिया। यदि मैं बाधाओं में उलझ गया होता, तो रसायन तैयार हो ही नहीं सकता था । एक ओर तो पिता के पेट में भयंकर शूल था, दूसरी ओर मेरी माता ज्वर से पीड़ित थीं। ऊपर से मेरा छोटा भाई टांग तुड़वाकर पीड़ा से कराह रहा था । परन्तु ये बातें मुझे रसायन बनाने से विचलित नहीं कर सकीं।”

तभी दूसरा युवक खाली हाथ आकर वहाँ खड़ा हो गया। आचार्य जी ने उससे पूछा, “रसायन कहाँ है ?” युवक ने झिझकते हुए उत्तर दिया, “आचार्यजी, मैं क्षमा चाहता हूँ। मैं रसायन तैयार नहीं कर सका क्योंकि जाते समय मार्ग में एक वृद्ध व्यक्ति मिल गया था। वह एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गया था । मेरा सारा समय उसकी सेवा में ही व्यतीत हो गया । ”

आचार्य ने पहले युवक से कहा, “तुम जा सकते हो। मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं। रसायनशास्त्री यदि पीड़ा से कराहते हुए व्यक्ति की उपेक्षा करे, तो वह अपने शास्त्र में अपूर्ण है ।” दूसरे व्यक्ति को उन्होंने अपना सहायक नियुक्त कर लिया। भविष्य में वही युवक उनका दायाँ हाथ बना और उन्हें अति प्रिय लगने लगा ।
(i) आचार्य को कैसे सहायकों की आवश्यकता थी और क्यों ? [2]
(ii) आचार्य की निराशा का क्या कारण था ? निराश होकर उन्होंने क्या किया ?. [2]
(iii) आचार्य ने दोनों युवकों की परीक्षा लेने का क्या उपाय सोचा तथा क्यों ? [2]
(iv) दूसरा युवक रसायन क्यों तैयार नहीं कर सका ? इससे उसके चरित्र का कौन-सा गुण स्पष्ट होता है ?
(v) आचार्य ने अपना सहायक किसे और क्यों चुना ?
Answer :
(i) महान रसायनशास्त्री आचार्य नागार्जुन को अपनी प्रयोगशाला में सहायता के लिए दो पवित्र ध्येय रखने वाले सहायकों की आवश्यकता थी ।

(ii) आचार्य निराश हो गए क्योंकि आने वाले सभी प्रत्याशी रसायनशास्त्र के लिए पवित्र ध्येय लेकर चलने वाले नहीं थे । उन सभी को स्वार्थ और स्वचिंतन में डूबा देखकर आचार्य नागार्जुन को भारी निराशा हुई और उन्होंने सारा कार्य स्वयं करने की ठान ली ।

(iii) आचार्य ने आगंतुक दोनों युवकों की परीक्षा लेने के लिए उन दोनों को एक पदार्थ देकर दो दिन के अंदर उससे रसायन तैयार करके लाने को कहा ताकि उनके जीवन का ध्येय पहचाना जा सके।

(iv) दूसरा युवक रसायन इसलिए तैयार नहीं कर सका क्योंकि उसे मार्ग में एक ऐसा वृद्ध मिल गया था जो दुर्घटना में घायल हो गया था। वह उस घायल की सेवा में लगा रहा और निर्धारित सारा समय उसी में बीत गया। इससे उसके चरित्र के मानवतावादी पक्ष का पता चलता है।

(v) आचार्य ने दूसरे युवक को अपना सहायक चुना । यद्यपि वह आदेशानुसार रसायन तैयार नहीं कर पाया तथापि उसके जीवन का ध्येय उजागर हो चुका था। जो रसायनशास्त्री पीड़ित की सेवा को परम धर्म तथा कर्तव्य समझता हो, वही सच्चा व संपूर्ण कहला सकता है।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given:-

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए :-

(i) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए :-
रसायन, नुकसान । [1]
(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए:-
बाधा, पीड़ा। [1]
(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए:
अंत, पवित्र, निराशा, भविष्य ।
(iv) भाववाचक संज्ञा बनाइए :-
अतिथि, निपुण । [1]
(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए :-
टका-सा जवाब देना, सिक्का जमाना । [1]
(vi) कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन कीजिए :-
(a) अंत में आचार्य निराश हो गए। [1]
(आशा शब्द का प्रयोग कीजिए)
(b) वह मुझे अति प्रिय लगने लगा । [1]
( वाक्य को भविष्यत् काल में बदलिए)
(c) उसका कार्य प्रशंसा के योग्य था । [1]
(रेखांकित के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग करते हुए वाक्य पुन: लिखिए)
Answer :
(i) रसायनिक, नुकसानदेह ।
(ii) बाधा – विघ्न, रुकावट, पीड़ा – कष्ट, व्यथा ।
(iii) आदि, मलिन / कलुषित, आशा, भूत ।
(iv) आतिथ्य, निपुणता ।
(v) टका-सा जवाब देना : जब कृष्णदेव ने अपने भाई से प्रवेश शुल्क के लिए आर्थिक सहायता माँगी, तो उसने टका-सा जवाब दे दिया ।
सिक्का जमाना : स्वामी रामतीर्थ ने विदेशी धरती पर अपने ज्ञान का सिक्का जमा दिया था।
(vi) (a) अंत में आचार्य ने आशा छोड़ दी ।
(b) वह मुझे अति प्रिय लगने लगेगा।
(c) उसका कार्य प्रशंसनीय / प्रशंस्य था ।

Section – B (40 Marks)
(Attempt four questions from this Section.)

You must answer at least one question from each of the two books
you have studied and any two other questions.

गद्य-संकलन

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
“चाचाजी वहाँ भी गया था, पूरे दिन लाइन
में खड़ा रहने पर जब मेरी
बारी आई तो अफसर बोला – ” भाई, नाम तो लिख लेता हूँ पर जल्दी नौकरी पाने की कोई आशा मत करना” ।
– भीड़ में खोया आदमी-
लेखक – लीलाधर शर्मा ‘ पर्वतीय’
(i) वक्ता का परिचय देते हुए बताइए कि यहाँ चाचाजी का संबोधन किसके लिए किया गया है ? [2]
(ii) यहाँ किस कार्यालय की लाइन में खड़े होने की बात की जा रही है तथा क्यों ? [2]
(iii) वक्ता की बातों से लेखक क्या सोचने पर विवश हो जाता है तथा क्यों ? [3]
(iv) यह किस प्रकार का निबंध है तथा इस निबंध में देश की किस समस्या पर ध्यान आकर्षित किया गया है? इससे देश को क्या नुक्सान हो रहा है ?
Answer :
(i) प्रस्तुत संवाद का वक्ता श्यामलाकांत बाबू का बड़ा बेटा दीनानाथ है। यहाँ चाचाजी का संबोधन लेखक लीलाधर शर्मा पर्वतीय के लिए किया गया है।

(ii) यहाँ रोज़गार कार्यालय में नाम लिखवाने की बात हो रही है । वहाँ पर भारी भीड़ के कारण लम्बी लाइन लगी हुई थी। दीनानाथ दिन भर लाइन में खड़ा रहा।

(iii) वक्ता दीनानाथ की बातों से लेखक सोचने लगता है कि हमारे देश की दुर्दशा का मुख्य कारण जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि है । इसीलिए लोगों को बेरोज़गारी और कुपोषण या अल्पपोषण का शिकार होना पड़ता है ।

(iv) यह एक ऐसा निबंध है जिसमें जनसंख्या और पर्यावरण को केंद्र में रखा गया है। इसमें लेखक ने अपने मित्र श्यामलाकांत के बड़े भारी परिवार को विचार का विषय बनाया है। लेखक का विचार है कि जनसंख्या की वृद्धि का कुप्रभाव व्यक्ति, परिवार, पर्यावरण और समूची धरती पर पड़ता है।

ICSE 2014 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था, तब से वे इस स्कूल में शिक्षक का काम कर रहे हैं। वे तो स्थिर रहे हैं, स्थिर नहीं रह सकी ।
– मेरे मास्टर साहब-
लेखक – चंद्रगुप्त विद्यालंकार
(i) यहाँ किस के विषय में बात की जा रही है ? उसका लेखक के साथ क्या संबंध है ? [2]
(ii) मुख्याध्यापक के रूप में लेखक का विद्यालय में कैसा प्रभाव था? [2]
(iii) मुख्याध्यापक बनने के बाद भी लेखक अपने प्रिय मास्टर साहब के साथ किन-किन बातों का ध्यान रखते थे? लेखक की नियुक्ति का मास्टर साहब पर क्या प्रभाव पड़ा ? [3] (iv) ‘गुरु-शिष्य परम्परा’ को वर्तमान समय ने किस प्रकार प्रभावित किया है ? ‘गुरु-शिष्य परम्परा’ के आदर्श रूप को बनाये रखने के लिए क्या उपाय किये जाने चाहिए ?
Answer :
(i) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक चंद्रगुप्त विद्यालंकार अपने मास्टर साहब के विषय में बात कर रहे हैं । लेखक अब मुख्याध्यापक बनकर उसी स्कूल में आ गए हैं जहाँ उनके गुरु अब भी मास्टर के पद पर कार्यरत थे ।

(ii) मुख्याध्यापक के रूप में लेखक का पूरे विद्यालय में एक मौलिक चिंतक व प्रशासक का प्रभाव था । वे कठोर नियंत्रण व अनुशासन को महत्त्व देते हैं और हर हालत में काम चाहते हैं ।

(iii) लेखक जब मुख्याध्यापक बनकर आए तो अपने प्रिय मास्टर साहब के आलस्य का ध्यान रखते थे । लेखक की नियुक्ति पर मास्टर साहब प्रसन्न भी थे और खिन्न भी । खिन्नता का कारण उनका आलस्य था जो इन दिनों और भी बढ़ गया था । लड़के उनकी कक्षाओं में प्रायः शोर किया करते थे ।

(iv) प्रस्तुत कहानी में गुरु-शिष्य परम्परा का उज्ज्वल उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। लेखक अपने गुरु के उपकारों को नहीं भूलता और मुख्याध्यापक बन जाने के बाद भी अपने बचपन के गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हुआ उनका सम्मान करता है । आजकल भौतिकवाद ने इस परम्परा को विकृत कर डाला है । इसके आदर्श रूप को बनाए रखने के लिए कृतज्ञता, स्वार्थहीन चिंतन व ध्येयमुक्त कर्तव्य की आवश्यकता है ।

Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

– यह माँ का झमेला ही रहेगा – उन्होंने फिर अंग्रेज़ी में अपनी स्त्री से कहा- कोई ढंग की बात हो तो, भी कोई कहे । अगर कहीं कोई उल्टी- सीधी बात हो गयी, चीफ़ को बुरा लगा, तो सारा मज़ा जाता रहेगा।
– चीफ़ की दावत-
लेखक – भीष्म साहनी

(i) वक्ता तथा श्रोता कौन है, वक्ता माँ को झमेला क्यों कह रहा है? [2]
(ii) श्रोता किस बात को लेकर चिंतित है, क्या उसका चिंतित होना उचित है ? तर्क सहित उत्तर दीजिए । [2]
(iii) चीफ़ कौन है ? उसको घर में बुलाने का क्या उद्देश्य है ? उसके लिए क्या-क्या तैयारियाँ की जा रही हैं? [3]
(iv) प्रस्तुत कहानी के आधार पर सामाजिक जीवन की मूल्यहीनता व समाज में फैले भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए । [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत संवाद के वक्ता शामनाथ हैं । श्रोता उनकी पत्नी है। शामनाथ ने अपनी पदोन्नति के लिए अपने चीफ़ को दावत पर बुलाया है, परन्तु वह अपनी बूढ़ी माँ को बाधक समझता है क्योंकि वह पुरानी पीढ़ी की है और खर्राटे लेती है ।

(ii) शामनाथ को चिंता है कि उसकी माँ पुराने ज़माने की अनपढ़ स्त्री है। उसे बैठने-उठने के आधुनिक दिखावे की बिलकुल भी समझ नहीं है । वह उसके खर्राटों और जीवन-शैली से खिन्न है। वास्तव में उसकी यह चिंता निर्मूल थी क्योंकि माँ का ऋण कभी भी नहीं उतारा जा सकता जिसने अपने गहने तक उसकी पढ़ाई में लगा दिए थे।

(iii) चीफ़ अमेरिकी है। उसे दावत देकर शामनाथ अपनी पदोन्नति चाहता है। इस दावत पर वह आधुनिक दिखने की हर संभव कोशिश करता है जिसमें बढ़िया मदिरा भी शामिल थी ।

(iv) भीष्म साहनी ने प्रस्तुत कहानी में सामाजिक जीवन विशेषतः पारिवारिक संबंधों में आने वाले ठंडेपन व स्वार्थीपन को उजागर किया है। दूसरी ओर भ्रष्टाचार इस सीमा तक फैल चुका है कि घूस, उपहार और दावतें देकर अपनी पदोन्नति के मार्ग प्रशस्त किए जा रहे हैं । यह देश, समाज व व्यवस्था के लिए घातक प्रवृत्ति है ।

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
लेखक-प्रकाश नगायच

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
‘ठीक कहते हो कुमार ! समय की प्रतीक्षा करो, भगवान् महाकाल तुम्हारी सहायता करेंगे। ”
(i) यहाँ कुमार शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जा रहा है ? उसे समय की प्रतीक्षा क्यों करनी पड़ेगी ? [2]
(ii) महाकाल भगवान् सहायता करेंगे, यहाँ किसकी सहायता की बात की जा रही है ? इस सहायता की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? [2]
(iii) इस समय कुमार की विवशता का क्या कारण है ? क्या उनका भय उचित था ? [3]
(iv) रामगुप्त की काली करतूतों का वर्णन कीजिए । [3]
Answer :
(i) यहाँ कुमार शब्द का प्रयोग चंद्रगुप्त के लिए किया जा रहा है । उसे समय की प्रतीक्षा इसलिए करनी पड़ी क्योंकि रामगुप्त के साथ वर्तमान में किया जाने वाला संघर्ष गृहयुद्ध कहलाएगा।

(ii) राजपुरोहित चंद्रगुप्त को उचित समय की प्रतीक्षा करने के लिए कहते हैं ताकि रामगुप्त के अन्याय का समूल अंत किया जा सके। इस सहायता की आवश्यकता रामगुप्त के कुशासन और कायरता के कारण अनुभव हो रही थी ।

(iii) इस समय कुमार चंद्रगुप्त की विवशता का कारण पाटलिपुत्र में चल रहा कुशासन था। दूसरी ओर वे अयोध्या से बाहर रहना भी उचित नहीं समझते थे ।

(iv) रामगुप्त ने युवराज चंद्रगुप्त को बहाने से अयोध्या भेजकर राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया था। यही नहीं, उसकी मंगेतर ध्रुवस्वामिनी से बलपूर्वक विवाह भी कर लिया था । राज्य के विरुद्ध मालवा, गुजरात और सौराष्ट्र के शकों ने आक्रमण प्रारम्भ कर दिए थे । सारा देश रामगुप्त की कायरता के कारण संकट में था ।

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

‘भारतीय कन्याएँ जीवन में पति का वरण केवल एक बार करती हैं, सो आप आज से दो वर्ष पहले ही कर चुकी हैं… और फिर रामगुप्त की दुर्बलता किसी से छिपी नहीं ।”

(i) ‘भारतीय कन्याएँ’ से क्या तात्पर्य है? उनकी कौन-सी विशेषताओं का वर्णन किया गया है? [2]
(ii) किसने, किसका वरण किया था हुआ और क्यों ? यह कार्य किसकी आज्ञा से [2]
(iii) रामगुप्त कौन है ? यह किसका पति होने के योग्य नहीं है और क्यों? समझाइए। [3]
(iv) शकराज कौन था ? उसने रामगुप्त की सेना को किस प्रकार सरलता से घेर लिया ? समझाइए । [3]
Answer :
(i) ‘ भारतीय कन्याएँ’ से तात्पर्य भारत देश की बेटियों से है । भारतीय कन्याएँ अपनी महान संस्कृति के रंग में रंगी होती हैं जो अपने जीवन में केवल एक बार ही पति का चुनाव करती हैं और उसी से आजीवन निभाती हैं ।

(ii) महादेवी ध्रुवस्वामिनी ने चंद्रगुप्त को पति के रूप में चुन लिया था और यह कार्य मगधराज समुद्रगुप्त की आज्ञा से हुआ था। इसका कारण यह था कि चंद्रगुप्त ने वीरता दिखाते हुए ध्रुवस्वामिनी के पिता को परास्त किया था और ध्रुवस्वामिनी को युद्ध के बाद प्राप्त किया था ।

(iii) रामगुप्त मगधराज समुद्रगुप्त का बड़ा बेटा था जो सर्वथा अयोग्य, कार और स्वार्थी था । वह स्त्री को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता था और उसे वस्तु अथवा उपहार के रूप में देने से भी नहीं हिचकिचा रहा था ।

(iv) शकराज खारवेल काश्मीर का राजा था। रामगुप्त की कायरता और अदूरदृष्टि के कारण वह उसकी सेना को घाटी में तीन ओर से घेरने में सफल हो गया था। घाटी के दो ओर दुर्ग की सुदृढ़ दीवारों जैसी पहाड़ियाँ थीं और तीसरी ओर बरसाती नदी थी ।

ICSE 2014 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-
चंद्रगुप्त ने चौंककर पूछा और झल्लाहट – भरे स्वर में बोला – ” जब विनाश काल आता है, बुद्धि नष्ट हो जाती है । ”

(i) चंद्रगुप्त कौन है ? वह किससे तथा कब बात कर रहा है ? [2]
(ii) चंद्रगुप्त ऐसा क्यों कहता है कि विनाश काल में बुद्धि नष्ट हो जाती है। यहाँ किसकी बुद्धि नष्ट हो गयी है? [2]
(iii) ऐसा क्या हो रहा था कि विनाश तक की बात सोची जा रही थी? [3]
(iv) प्रस्तुत उपन्यास के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सिंहासन पर बैठने का अधिकार केवल योग्य और वीर पुरुष को ही होता है। [3]
Answer :
(i) चंद्रगुप्त मगधराज समुद्रगुप्त के पुत्र और रामगुप्त के छोटे भाई हैं । समुद्रगुप्त ने योग्यता के आधार पर चंद्रगुप्त को युवराज घोषित किया था परन्तु रामगुप्त ने उनके देहांत के बाद छल-बल से राजसिंहासन हथिया लिया था । वे इस समय देववर्मा से शकराज खारवेल के अभियान के विषय में बात कर रहे हैं ।

(ii) यहाँ चंद्रगुप्त अपने बड़े भाई रामगुप्त की बुद्धि नष्ट होने की बात कर रहे हैं क्योंकि वे शकराज से काश्मीर देकर संधि कर लेने का विचार कर चुके हैं ।

(iii) जिस साम्राज्य को मगधराज समुद्रगुप्त ने अपनी शक्ति के बल पर अखंड बनाया था, आज उनका उत्तराधिकारी रामगुप्त उसे खंड-खंड करने पर तुला हुआ था । वह शकराज के आगे घुटने टेक देने के लिए तैयार था ।

(iv) लेखक ने संदेश देना चाहा है कि वसुंधरा वीरभोग्या होती हैं । केवल वीर लोग अपने देश और देशवासियों के हितों की रक्षा कर सकते हैं। रामगुप्त की कायरता व अयोग्यता के विपरीत उनका छोटा भाई चंद्रगुप्त वीर, साहसी, दूरदर्शी और रणकुशल सिद्ध होता है और अपने पिता के स्वप्न को साकार करता है ।

एकांकी सुमन

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-

“यह तो अपनी-अपनी समझ की बात है । मैं तो कहूँगा दोनों ने अक्लमंदी की । लड़की वालों ने भी और लड़के वालों ने भी । इस महँगाई के ज़माने में सैकड़ों की बारात लेकर चलना अक्लमंदी की बात नहीं है । ”
– मेल मिलाप-
लेखक – देवराज दिनेश

(i) वक्ता कौन है ? वह कैसा व्यक्ति है ? [2]
(ii) वक्ता के कथन के उत्तर में श्रोता ने क्या कहा तथा क्यों ? [2]
(iii) यहाँ किस ‘अक्लमंदी’ की बात की जा रही है ? इसके माध्यम से हमें क्या सीख मिलती है ? [3]
(iv) ‘मेल-मिलाप’ ही स्वस्थ समाज की रीढ़ है ” – इस विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए। [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत कथन का वक्ता गाँववासी हीरा है । वह पेशे से पंडित है । वह समझदारी की बात करके रघुराज को अनिष्ट सोचने से रोकना चाहता है।

(ii) हीरा पंडित के कथन में रघुराज को सीख दी जा रही थी । यह सीख उसे पसंद नहीं आई। वह कहता है कि किशन सिंह की प्रशंसा के पीछे उसे मिली दक्षिणा होगी ।

(iii) इस कथन में वर-वधू पक्ष की अक्लमंदी की बात की जा रही है । बारात कमलाना और सादा शैली में विवाह करना आदर्श रीति है । इसमें दोनों पक्षों के धन का अपव्यय बचता है । इससे हमें यह सीख मिलती है कि विवाह के नाम पर अपव्यय से बचना चाहिए ।

(iv) प्रस्तुत एकांकी ‘मेल-मिलाप’ पर आधारित है और अपने शीर्षक को सार्थक कर रहा है । लेखक ने स्पष्ट किया है कि आपस में भाईचारा बने रहने से सबकी भलाई होती है । जो लोग भाई- भाई में वैर-भाव बढ़ाने का काम करते हैं, वे रघुराज की तरह खलनायक माने जाते हैं । परस्पर फूट से कभी किसी व्यक्ति, परिवार या राष्ट्र का विकास नहीं होता अपितु भारी हानि होती है । मेल-मिलाप ही समाज की उन्नति की कुँजी है ।

Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए-
‘महाराज सब बंदोबस्त आप ही देखते हैं । सारी फ़ौज को उतारकर खुद नाव पकड़ेंगे। इस उमर में और यह हिम्मत ! सुना है, अस्सी बरस के हो चुके । ”
– विजय की वेला
– लेखक – जगदीश चंद्र माथुर

(i) प्रस्तुत कथन के वक्ता तथा श्रोता का परिचय दीजिए । [2]
(ii) महाराज कौन थे ? युद्ध के बारे में उनके क्या विचार थे ? [2]
(iii) प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए । [3]
(iv) प्रस्तुत एकांकी की पृष्ठभूमि स्पष्ट करते हुए, इसकी मुख्य विशेषता बताइए । [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत कथन का वक्ता भीमा और श्रोता मल्लाहों का सरदार नाथू है।

(ii) महाराज 1857 की राज्य क्रांति के सेनानी और बिहार स्थित जगदीशपुर के महाराज कुँवर सिंह हैं। उनका विचार था कि युद्ध शक्ति तथा बुद्धि के बल पर लड़े जाते हैं ।

(iii) प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य देश की जनता में देश-प्रेम व राष्ट्र- चेतना का संचार करना है। एकांकीकार ने इस एकांकी में महाराज कुँवर सिंह की दिलेरी, पराक्रम, देश-प्रेम तथा सूझ-बूझ को दिखलाकर देशवासियों में देशभक्ति के भावों को उभारना चाहा है। 80 वर्ष के वृद्ध शरीर के स्वामी कुँवर सिंह अंग्रेज़ी शासन को भारत से समूल उखाड़ फेंकने का अद्भुत प्रयास करते हैं । उनका यह अभियान देशवीरों में नए साहस व स्फूर्ति का संचार करता है । ऐसे चरित्र के देशभक्त की कथा पढ़कर या सुनकर ही भुजाएँ फड़कने लगती हैं। देश के प्रति प्रेम-भावना के साथ- साथ अपने राष्ट्र के प्रति सम्मान का भाव भी जागृत होता है । एकांकी में यह संदेश भी दिया गया है कि अच्छे युद्धनायक के साथ-साथ स्थानीय प्रजा का राष्ट्र-प्रेम भी अनिवार्य है । पच्चीस हज़ार रुपये बाँटने की अंग्रेज़ जरनैलों की षड्यंत्र से पूर्ण नीति इसी प्रकार स्थानीय प्रजा विफल कर डालती है।

(iv) प्रस्तुत एकांकी की पृष्ठभूमि देश-प्रेम और राष्ट्रवाद है । लेखक का विचार है कि जिस देश में स्वराज्य नहीं होता, वहाँ के लोग गुलामी का अपमान पीकर जीते हैं। हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए असंख्य लोगों ने संघर्ष करते हुए प्राणों को न्योछावर किया। देश-प्रेम की यही भावना हमें आत्म-सम्मान से जीना सिखाती है।

Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
“वहाँ नहीं, आपको मेरे साथ चलना है। आपको जनता के पास चलना है। जनता बड़ी उत्तेजना में है विद्यार्थी पीछे रह गये, दूसरे समाजद्रोही तत्त्व आगे आ गए हैं और विजय ने गोली चलाने से इनकार कर दिया है ।”
(i) वक्ता तथा श्रोता का परिचय दीजिए ।  [2]
(ii) श्रोता कहाँ जा रहा था एवं क्यों ?  [2]
– सीमा रेखा-
लेखक – विष्णु प्रभाकर
(iii) सीमा रेखा एकांकी के शीर्षक का औचित्य स्पष्ट कीजिये। [3]
(iv) पारिवारिक सम्बन्धों की अपेक्षा कर्तव्य पालन अधिकं महत्त्वपूर्ण होता है – प्रस्तुत कथन को आधार बनाकर एक अनुच्छेद लिखिए । [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत कथन का वक्ता सुभाष है जो जननेता हैं और सेठ लक्ष्मीचंद्र के चौथे भाई हैं । श्रोता उनके बड़े भाई शरतचंद्र की पत्नी अन्नपूर्णा हैं।

(ii) श्रोता शरतचंद्र उपमंत्री हैं । वे लक्ष्मीचंद्र के दूसरे भाई हैं और मंत्रिमंडल की बैठक में जा रहे थे क्योंकि वहाँ पर गोलाबारी के विषय में चर्चा होने जा रही थी ।

(iii) प्रस्तुत एकांकी की शीर्षक ‘सीमा-रेखा’ सटीक तथा उपयुक्त है। इस शीर्षक का अर्थ है कि राष्ट्र में प्रत्येक नागरिक के सोचने की एक सीमा-रेखा सुनिश्चित होनी चाहिए। कर्तव्य का पालन करते हुए यदि मरना भी पड़े तो समाज के प्रत्येक नागरिक को ऐसा ही करना चाहिए। एकांकी के कथानक में अरविंद, सुभाषचंद्र और विजयचंद्र का बलिदान होने से केवल जनता या सरकार की ही क्षति नहीं हुई, अपितु संपूर्ण राष्ट्र की क्षति हुई है।

जनतंत्र में जनता और सरकार के बीच कोई विभाजक सीमा-रेखा नहीं होती । अतः वर्तमान राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन का चित्र प्रस्तुत करने के साथ-साथ जनता और राष्ट्र दोनों को अपने दायित्वों का बोध कराने वाले इस एकांकी को ‘सीमा रेखा’ कहना उपयुक्त है।

(iv) भारतीय संस्कृति एक महान संस्कृति है । इसमें जीवन मूल्यों के प्रति आस्था रखना सिखाया जाता है । इसी संस्कृति में हमें कर्तव्यपालन, सत्य, अहिंसा, देशसेवा, परोपकार आदि महान गुण सिखाए जाते हैं । प्रस्तुत एकांकी में भी यही कर्तव्यपालन का संदेश दिया गया है।

काव्य-चंद्रिका

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोइ ।
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होइ ।
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूँढै बन माँहि ।
ऐसे घटि – घटि राम हैं, दुनियाँ देखे नाहि ।।
तिनका कबहुँ न निन्दिए, जो पायन तर होय ।
कबहुँक उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय ।।
-नीति के दोहे-
कवि-कबीरदास

(i) कवि कैसी बोली बोलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, इससे क्या लाभ होता है ? [2]
(ii) कस्तूरी मृग के माध्यम से कवि मानव मन के किस अज्ञान का वर्णन कर रहे हैं ? स्पष्ट कीजिए । [2]
(iii) तिनके जैसी छोटी चीज़ का निरादर क्यों नहीं करना चाहिए ? ऐसा करने से क्या हानि होती है ? [3]
(iv) कबीरदास जी किस भक्ति-धारा के कवि थे ? उनके विषय में एक अनुच्छेद लिखिए । [3]
Answer:
(i) कवि कबीरदास एक महान संत कवि थे । उनका विचार है कि जीवन में व्यक्ति को मधुरभाषी होना चाहिए। मीठा बोलने वाला न केवल स्वयं संयत रहता है अपितु श्रोता को भी तृप्त करता है ।

(ii) कबीरदास विचार दे रहे हैं कि जिस प्रकार कस्तूरी तो मृग की नाभि में होती है परन्तु वह अज्ञानवश उसे वन में खोजता फिरता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन है । वह प्रभु को बाहर के जगत में खोजता है, जबकि वह तो उसके शरीर के अन्तर्मन में स्थित रहता है।

(iii) कबीरदास का कथन है कि जीवन में कभी भी किसी को क्षुद्र या हीन नहीं मानना चाहिए। हर व्यक्ति का महत्त्व होता है। कई बार तिनके जैसी क्षुद्र वस्तु भी मनुष्य की आँख में चली जाए तो भयानक कष्ट का कारण बन जाती है ।

(iv) कबीर भक्तिकाल की निर्गुणवादी शाखा के अंतर्गत आने वाली ज्ञानमार्गी काव्यधारा के कवि थे । इसे संत काव्य-धारा भी कहते हैं। इस मत के अनुसार ईश्वर निराकार ब्रह्म है। वह सर्वव्यापी, घटघटवासी, अक्षर, अजर, अमर, अजन्मा व स्वयंभू है । उसे कहीं बाहर जाकर या पाखंडपूर्ण व्यवहार अपनाकर नहीं खोजा जा सकता। उसे हम अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हैं। प्रभु का स्मरण अर्थात् नाम-स्मरण ही उसे प्राप्त करने का सार है ।

ICSE 2014 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

क्षुधार्थ रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी,
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी ।
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया,
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया।
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।
-मानवता
कवि- मैथिलीशरण गुप्त
(i) यह कविता कहाँ से ली गयी है ? इसके माध्यम से कवि ने किन जीवन-मूल्यों का वर्णन किया है ? [2]
(ii) ‘दधीचि ‘ कौन थे? उन्होंने मानवता का परिचय किस प्रकार दिया था ? [2]
(iii) “अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे ” – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए । [3]
(iv) ‘मानवता’ से आप क्या समझते हैं? इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिली ? [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत कविता मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध रचना भारत-भारती में से ली गई है। इसके माध्यम से कवि ने भारतीय संस्कृति के महान तत्त्वों का उल्लेख किया। इसमें दान, परोपकार, त्याग, करुणा आदि प्रमुख तत्त्व हैं ।

(ii) दधीचि भारतीय परम्परा के एक महान ऋषि थे। उन्होंने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी हड्डियाँ दान में दे दी थीं। इससे उनके मानवता के लिए बलिदान का संकेत मिलता है।

(iii) कवि का विचार है कि मानव नश्वर है। मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है । आत्मा निकलते ही यह शरीर मिट्टी में मिल जाता है। आत्मा अनादि अर्थात् अजर-अमर है । इसलिए आत्मा को अपने शरीर के बलिदान से कभी भी नहीं डरना चाहिए ।

(iv) प्रस्तुत कविता ‘मानवता’ के रचयिता ‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त’ हैं। इस कविता द्वारा हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें ईश्वर की दया एवं करुणा पर पूरी आस्था रखनी चाहिए। हमें अपना प्रत्येक कार्य अत्यंत धैर्य एवं आत्मविश्वास से करना चाहिए । हमें अपने गंतव्य की ओर दृढ़ता एवं आत्मबल से बढ़ते रहना चाहिए। मार्ग में आने वाली बाधाओं से व्याकुल होने की बजाए ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए। हमें अपनी धन-संपत्ति पर गर्व नहीं करना चाहिए। परोपकार की भावना से अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देना चाहिए ।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए-

तू तरुण देश से पूछ, अरे,
गूँजा यह कैसा ध्वंस-राग ?
अंबुधि- अंतस्तल बीच छिपी
यह सुलग रही है कौन आग ?
प्राची के प्रांगण – बीच देख,
जल रहा स्वर्ण-युग- अग्नि- ज्वाल ।
तू सिंहनाद कर जाग, तपी ।
मेरे नगपति! मेरे विशाल ।
– हिमालय-
कवि – रामधारी सिंह दिनकर

(i) ‘तरुण देश’ का सन्दर्भ स्पष्ट करते हुए लिखिए कि यहाँ किस ‘ ध्वंस राग’ की बात की जा रही है। [2]
(ii) ‘जल रहा स्वर्ण-युग – अग्नि- ज्वाल’ का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए । [2]
(iii) हिमालय का भारत की सभ्यता और संस्कृति से क्या सम्बन्ध है? हिमालय को सुरक्षित रखना आज के युग की प्राथमिकता क्यों है ? [3]
(iv) शब्दार्थ दीजिए-
सिंहनाद, अंबुधि, ध्वंस, प्राची, सुलगना, स्वर्ण । [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत काव्यांश में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने भारत पर आक्रमण करने वाले शासकों की विनाश – लीला की चर्चा की है । कवि का विचार है कि किसी भी देश की रक्षा के लिए वहाँ का युवावर्ग ही आगे आता है । अतः भारत के युवाओं को भी यही करने की आवश्यकता है।

(ii) कवि को इस बात का दुख है कि पूर्व दिशा में भारत ही पूर्व का आँगन माना जाता है। आज यह आँगन अर्थात् भारत घोर संकट में है । भारत का स्वर्ण-युग आग की लपटों में घिरा सुलग रहा है । यहाँ कि संपत्ति लूटी जा रही है।

(iii) हिमालय भारत की एक सांस्कृतिक तपोभूमि है। इसकी कंदराओं में अनेक ऋषियों-मुनियों और देवी-देवताओं ने जप-तप करके दिव्य एवं आध्यात्मिक शक्तियाँ और ज्ञान प्राप्त किया। यह आध्यात्मिक विकास का केंद्र और भारत का प्रहरी है। इसे सुरक्षित रखना हमारा परम कर्तव्य है ।

(iv) शेर की गरज, समुद्र, विनाश, पूर्व, धीरे-धीरे जलना, सोना ।