ICSE Hindi Question Paper Solved for Class 10

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ICSE Class 10 Hindi Question Paper 2015 Solved

Section – A
(Attempt all questions)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics :- [15]

निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :-

(i) ‘विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है।’ कथन के आधार पर बताइए कि मानव के जीवन में मित्रों का क्या महत्त्व है? वे किस प्रकार व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं? आप अपने मित्र का चुनाव करते समय उसमें किन गुणों का होना आवश्यक समझेंगे? अपने विचार स्पष्टतः लिखिए।
(ii) भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि को देवता के समान माना जाता है।’ वर्तमान परिस्थितियों में यह मान्यता कहाँ तक सत्य के रूप में दिखाई दे रही है? अतिथि कब बोझ बन जाता है और किस प्रकार ? विचारों द्वारा समझाइए।
(iii) स्वच्छता हम सभी के लिए लाभदायक है, यदि आपको स्वच्छ भारत अभियान में सहयोग देने के लिए कोई तीन कार्य करने के लिए कहा जाए तो आप किन कार्यों को करना पसंद करेंगे तथा क्यों? अपने विचारों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो- ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’।
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर वर्णन कीजिए अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र से होना चाहिए।
ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10 1
Answer :
(i) मनुष्य सामाजिक प्राणी है। जीवन के आरंभ से अंत तक वह एकाकी जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। बचपन में माता की गोद उसका साथ देती है और धीरे-धीरे परिवार के सदस्य उसके साथ होते हैं । किशोरावस्था में उसके अनेक मित्र उसके साथ होते हैं जीवन को सुखमय और प्रगतिशील बनाने में मित्र की भूमिका असंदिग्ध होती है।

जीवन में पग-पग पर मित्र की आवश्यकता पड़ती है । मित्र के अभाव में जीवन नीरस हो जाता है । मित्रता दो हृदयों को जोड़ती है, प्राणों के तार मिलाती है । प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में कोई ऐसा मनुष्य चाहिए, जिससे वह अपने सुख-दुख की बात दिल खोलकर कर सके तथा जो पग-पग पर उसका मार्गदर्शन करे । मित्र इस कर्तव्य को भली-भाँति निभाता है।

आदर्श मित्र व्यक्ति का शुभचिंतक तथा मार्गदर्शक होता है। जब व्यक्ति के पास धन, पद तथा वैभव होता है, तो अनेक व्यक्ति उससे मित्रता करने के इच्छुक रहते हैं; परंतु जैसे ही उसका धन समाप्त हो जाता है, कुछ लोग उससे किनारा कर लेते हैं । विपत्ति के समय साथ देने वाले ही सच्चे मनुष्य कहे जाते हैं। सच्चा मित्र अपने पहाड़ जैसे दुख को धूल के कण के समान समझता है और अपने मित्र के धूल के कण जैसे छोटे से दुख को पर्वत से भी बड़ा मानता है – ‘निज दुख गिरिसम रजि करिजाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना।’ सच्चा मित्र मिलना बड़े सौभाग्य की बात है । ‘विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि है ‘ । सच्ची मित्रता में उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख तथा अच्छी- से अच्छी माता का सा धैर्य एवं कोमलता होती है | सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति पड़ने पर ही होती है – ‘ धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपतकाल परखिए चारी ।’ सच्चा मित्र असत्य से सत्य की ओर, पाप से पुण्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, अधर्म से धर्म की ओर तथा बुराई से अच्छाई की ओर ले जाता है।

सच्ची मित्रता से बहुत लाभ हैं। किसी समस्या के आने पर सच्चा मित्र ही उसके समाधान का सही उपाय बताता है । मन में किसी प्रकार की दुविधा आने पर सच्चा मित्र ही मन की दुविधा की बेड़ियाँ काटकर सही मार्ग की ओर प्रशस्त करता है । मित्र के समान समाज में सुख और आनंद देने वाला दूसरा कोई नहीं है । मित्र को देखकर निराश मन के अंदर आशा की ज्योति जलने लगती है। मित्र एक मज़बूत ढाल के समान होता है, जो विपत्ति के समय हमारी रक्षा करता है इसलिए कहा है- ‘विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत’ सच्चा मित्र सच्चा शिक्षक भी होता है । संकट की अवस्था में जब बुद्धि भाव- शून्य हो जाती है, तो मित्र ही उसे सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त करता है।

मैत्री के लिए यह आवश्यक नहीं कि दो व्यक्तियों के स्वभाव, गुण, आदत एक जैसी हों । कर्ण और दुर्योधन, कृष्ण और सुदामा, अकबर और बीरबल की मित्रता इसके उदाहरण हैं। जो सामने मीठा बोले और पीठ पीछे बुराई करे, ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं बनाना चाहिए।

मित्र का चुनाव खूब सोच-समझकर करना चाहिए, क्योंकि सच्चा मित्र यदि हमारी सफलता की कुंजी है, तो कपटी मित्र पतन का कारण। सच्चा मित्र हमारे गुण-दोषों की परख करने वाला व्यक्ति ही नहीं होता, अपितु वह जीवन में उत्साह भर देने वाला निष्कपट व्यक्ति होता है।

(ii) भारतीय संस्कृति एक ऐसी संस्कृति है जो वैश्विक स्तर पर अपनी श्रेष्ठ साधनाओं और जीवन मूल्यों के लिए विख्यात है । इसमें अनेक प्रकार की मान्यताएँ व परंपराएँ पाई जाती हैं। एक मान्यता यह भी है कि ‘अतिथि देवो भव’ अर्थात् अतिथि को देवता के समान माना जाता है ।

अतिथि देवो भव की मान्यता आज भी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है । भले ही परिस्थितियाँ बदल रही हैं और भौतिकवाद के प्रसार के बाद आदमी स्वकेंद्रित होता जा रहा है तथापि हमारी मान्यताएँ अभी क्षीण नहीं हुई हैं। हमारे यहाँ ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जहाँ अतिथि के लिए अपना तन, मन, धन और संपूर्ण परिवार या राज-पाट तक अर्पित कर देने की भावना फलीभूत हुई है। अतिथि के सत्कार में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। उसके सब प्रकार के सुख का ध्यान रखा जाना चाहिए । यही धारणा हर ओर प्रसारित प्रचारित होती चली आ रही है। रामायण, महाभारत, पुराण आदि में से ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं।

आज परिस्थितियाँ बदल रही हैं। आज हम शिक्षा-दीक्षा और ज्ञान-विज्ञान की परिधि में आ चुके हैं । हमारा जीवन व्यस्तताओं से घिर चुका है। कामकाजी नारियों की संख्या में वृद्धि के कारण घरों में रख-रखाव और मेहमाननवाज़ी की समस्याएँ बढ़ने लगी हैं। जो लोग रोज़गार के लिए गाँवों से नगरों में आकर बसते हैं, उनका जीवन अत्यंत कठोर और कठिन हो जाता है। उन्हें आवास की भरपूर सुविधाएँ प्राप्त नहीं होतीं । वे प्रायः एक कमरे या दो कमरों के छोटे-छोटे किराए के घरों में रहते हैं। ऐसे में यदि कोई अतिथि आ जाए, तो बेहद कठिनाई हो जाती है।

अतिथि की भी कोटियाँ होती हैं। कुछ अतिथि तो ऐसे होते हैं जो निकट संबंधी होते हैं। ऐसे लोगों के साथ किसी भी प्रकार से ताल-मेल बैठाया जा सकता है। परंतु कुछ अतिथि ऐसे होते हैं जिन्हें ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की कोटि में रखा जा सकता है। ऐसे लोग अधिक असुविधा देते हैं । ऐसे लोगों को सहना कठिन हो जाता है।

अतिथि प्रायः बोझ बन जाता है। ऐसा तब होता है जब वह एक बार आकर जाने का नाम ही न ले। ऐसे लोग निर्लज्ज होते हैं । वे अपने विषय में ही सोचते हैं । उनके साथ मेहमान का व्यवहार करते जाना कठिन हो जाता है । जो लोग स्वयं को मेहमान समझकर घर के कामों में सहायता – सहयोग नहीं देते, वे लोग और भी बड़ा बोझ सिद्ध होते हैं । ऐसे लोगों के आने से घर का बजट भी बिगड़ जाता है। जो अतिथि व्यर्थ की इच्छाएँ पूरी करने का हठ करने लगते हैं, वे और भी कष्टकर हो जाते हैं वे आपका वाहन तक हथिया लेते हैं और आप अपाहिज से बन जाते हैं । ऐसे अतिथि के लिए कहा जाता है—’ अतिथि ! तुम कब जाओगे ?’

ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10

(iii) यह बात पूर्णतः सत्य है कि स्वच्छता हम सभी के लिए लाभदायक है । मनुष्य के जन्म से ही स्वच्छता का पहलू गंभीर रूप से साथ जुड़ जाता है । आजकल ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के माध्यम से साफ़-सफ़ाई की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया और दिलाया जा रहा है।

यदि मुझे ‘स्वच्छ भारत अभियान’ में सहयोग देने के लिए कहा जाएगा तो मैं तीन कार्य करना चाहूँगा । वे तीन कार्य हैं- स्वयं की शुचिता, परिवेश की शुचिता और देश की शुचिता ।

स्वयं की शुचिता का सीधा संबंध अपने शरीर की साफ़-सफ़ाई से है। यदि हम स्वयं को स्वच्छ नहीं रखते, तो हमारा स्वच्छता अभियान निष्फल है। हमारी संस्कृति में हमें प्रायः उठते ही स्वच्छता का सिद्धांत अपनाने के उपदेश दिए गए हैं। अनादिकाल से ही मनुष्य प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होता है। स्नान आदि से पूर्व अपने घर-द्वार व प्रांगण को स्वच्छ करता है। वह अपने वस्त्रों, बिस्तरों आदि की स्वच्छता का विचार करता है। स्त्रियाँ रसोई बनाने से पूर्व स्वच्छ हो जाती हैं। खान-पान से पूर्व ईश वंदना होती है। ईश वंदना से पूर्व स्नान आदि की क्रियाएँ अनिवार्य रूप से मानी और निभाई जाती हैं । स्वास्थ्य की दृष्टि से भी नहाना – धोना और स्वच्छ रहना उपयोगी होता है। इससे आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

दूसरा चरण परिवेश की शुचिता का है । हम जिस घर में रहते हैं, उससे जुड़ा परिवेश स्वच्छ होना चाहिए। घर के भीतर की सफ़ाई के साथ-साथ घर के आस-पास की स्वच्छता भी अनिवार्य है। कई लोग घर की सफ़ाई के बाद कूड़ा-कर्कट दूसरों के घरों के आगे या गलियों में इधर-उधर फेंक देते हैं। ऐसा करना परिवेश को गंदा करना है। हमें अपने घरों के साथ-साथ दूसरों के घरों का भी ध्यान रखना चाहिए । रसोई घर का कूड़ा वर्गीकरण के बाद कूड़ेदान में फेंकना चाहिए या नगरपालिका की व्यवस्था के अनुसार कर्मचारी को दिया जाना चाहिए।

तीसरा चरण देश की शुचिता का है। हम जहाँ-तहाँ थूकते रहते हैं। खाद्य पदार्थों के अवशेष (छिलके, आवरण आदि) इधर-उधर फेंक देते हैं। जहाँ-तहाँ मल-मूत्र त्याग के लिए उद्यत हो जाते हैं। इससे हमारा देश गंदा और अपवित्र होता है। बस, रेलगाड़ी, कार्यालय तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर स्वच्छता का ध्यान रखना मेरा तथा मेरे देश के प्रत्येक नागरिक का परम कर्तव्य है । दीवारों पर इच्छानुसार कुछ भी लिखने की आदत एक गंदे दिमाग की सूचक है। हमें इस गंदगी को भी साफ़ करना होगा। तभी स्वच्छ भारत का अभियान सफल हो पाएगा।

(iv) ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत।’ इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि यदि मन में दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास हो, तो कहीं भी विजय या सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस उक्ति पर आधारित कहानी इस प्रकार है-

राजा सुजान सिंह भुवनगढ़ का प्रतापी राजा था। वह जब तक जीवित रहा, तब तक पास के राज्य हनुमानगढ़ के किसी राजा की यह हिम्मत न हो सकी कि भुवनगढ़ की ओर आँख उठाकर देख सके। समय पाकर सुजान सिंह का देहांत हो गया। सबसे

बड़ा पुत्र होने के नाते जीवन सिंह को युवराज का पद प्राप्त था; अतः उसे ही राजा का उत्तराधिकारी मानकर राजसिंहासन सौंप दिया गया। जीवन सिंह अपने पिता के विपरीत स्वभाव का था । उसमें वीरता, साहस और विवेक की तो कोई कमी नहीं थी, परंतु वह राग- रंग में व्यस्त रहना अधिक पसंद करता था । उसे सैन्य – संचालन, शासन-प्रबंध तथा न्याय-व्यवस्था से कुछ लेना-देना न था । उसने इनसे संबंधित सभी अधिकार क्रमशः सेनापति, प्रधानमंत्री तथा महादंडाधिकारी को दे रखे थे।

जब हनुमानगढ़ के राजा सूरज सिंह के गुप्तचरों ने उसे बताया कि जीवन सिंह के शासन में क्या कुछ हो रहा है, तो वह अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसे लगा कि अब उसके अच्छे दिन आने वाले हैं। उसने अपने सेनापति को बुलाकर कहा- 44 अब समय आ गया है कि भुवनगढ़ को अपने अधिकार में किया जाए। सभी तैयारियाँ डटकर होनी चाहिए। ”

राजा सूरज सिंह ने दल-बल के साथ आक्रमण किया, परंतु उसकी सेना पुनः जीवन सिंह की सेना से डरकर नदी से इस ओर भाग आई । राजा को बड़ा क्रोध आया। उसकी ओर से यह चौथा आक्रमण था। इससे पूर्व भी वह सुजान सिंह से तीन बार हार चुका था । उसने दृढ़ स्वर में सेनापति से कहा – ” इसमें घबराने की बात नहीं है । मेरा विश्वास है कि हम अवश्य सफल होंगे। राजा ब्रूस की कहानी मुझे अच्छी तरह स्मरण है । ”

कहने को तो राजा सूरज सिंह ने यह सब कह दिया, परंतु वास्तव में वह बहुत चिंतित था । उसे यह तो समझ में आ रहा था कि सुजान सिंह के न रहने पर हार का क्या कारण है ।
राजपुरोहित ने कुछ पल सोचकर कहा – ” राजन् इसमें विचित्रता कुछ नहीं है। वास्तव में आपके सैनिक तथा आपकी सेना शत्रु पक्ष कहीं अधिक प्रबल है, परंतु एक अड़चन दूर करनी होगी।” ” वह क्या ?”

” वह यह कि आपकी सेना का मन बुझा हुआ है। उसके मन में अतीत के शत्रु का आतंक बसा हुआ है। उसे निकालकर उसमें आत्मविश्वास भरना होगा। यदि मन में विश्वास बढ़ा हुआ होगा, तो आपकी सेना विजित होकर लौटेगी क्योंकि मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

‘इसके लिए एक युक्ति है कि अगले आक्रमण से पूर्व आप एक यज्ञ करवाइए। अपनी सेना के विभिन्न दलों के अध्यक्षों व सेनापति को भी न्योता दीजिए। वहाँ यह घोषणा कीजिए कि एक ज्योतिषी ने कहा है कि यदि इस बार आक्रमण करते समय हमारे सेनापति अपने ध्वज के स्थान पर घास का पुतला लेकर आगे बढ़ेंगे, तो अवश्य हमारी विजय होगी। यह भी कहिए कि पुतला मंत्रों द्वारा तैयार किया जाएगा।”
“इससे क्या होगा ?”

” होगा यह कि आपकी सेना के मन में से शत्रु का पूर्व अनुभव व आतंक निकल जाएगा और आप जीत जाएँगे ।”
कहा जाता है कि इस युक्ति से राजा सूरज सिंह की विजय हुई। वह पुतला वास्तव में मन का विश्वास था, जो खो चुका था ।

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र का संबंध ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के साथ है। पिछले दिनों भारत सरकार ने महात्मा गांधी के उस सिद्धांत को व्यावहारिक रूप दिया जिसमें ‘स्वच्छ भारत’ की कल्पना की गई थी। देश के हर गाँव, नगर और हर गली व सड़क पर स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है। हम सभी देशवासियों को इसमें भाग लेना चाहिए।
(शेष उत्तर के लिए देखिए इसी प्रश्नपत्र के लेख संख्या (iii) का उत्तर)

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below- [7]

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए:

(i) आपकी कॉलोनी में कुछ असामाजिक तत्त्व (Antisocial elements) आकर बस गए हैं। उनकी गुंडागर्दी बढ़ने के कारण नागरिकों का जीवन कठिन हो गया है। अपने शहर के ‘पुलिस कमिश्नर’ को पत्र लिखकर उनकी शिकायत कीजिए तथा … सुव्यवस्था के लिए शीघ्र कदम उठाए जाने की प्रार्थना कीजिए ।
(ii) आपका छोटा भाई किसी दूसरे शहर में पढ़ने गया है, जहाँ वह खेलने के लिए समय नहीं निकाल पा रहा है। खेलों का महत्त्व समझाते हुए उसे पत्र लिखिए।
Answer :
(i) सेवा में
माननीय पुलिस कमिश्नर
……….. नगर ।
विषय : असामाजिक तत्त्वों की गुंडागर्दी संबंधी ।

मान्य महोदय,

मैं ‘न्यू शीतल नगर कॉलोनी …………… नगर का निवासी हूँ और आपका ध्यान असामाजिक तत्त्वों की बढ़ती हुई गुंडागर्दी की ओर दिलाना चाहता हूँ ।
महोदय, आजकल हमारी कॉलोनी में कुछ असामाजिक तत्त्वों की घुसपैठ हो रही है। इस प्रकार के लोगों की गतिविधियों से लोगों का जीवन कठिन हो गया है। इनमें से अधिकतर लोग नशेड़ी हैं, जो हर चौक-चौराहे पर खड़े खुले में धूम्रपान और नशीले पदार्थों का सेवन करते देखे जा सकते हैं। आसपास की दुकानों पर भी इन्हीं लोगों का उठना-बैठना बढ़ता जा रहा है। संध्या सात बजे और रात नौ बजे के बीच का समय और भी खतरनाक हो जाता है । इस अवधि में ये लोग नशे में धुत्त होकर गलियों में हुड़दंग करते हैं । तेज़ गति से वाहन चलाना और तरह-तरह के प्रेशर हार्न बजाकर कुछ विशेष संकेत देना आम बात है। लड़कियों का घर से बाहर निकलना कठिन हो रहा है। बच्चों से चीजें छीनने की घटनाएँ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। आए दिन चोरी व लूट की कोई न कोई घटना घट जाती है।

अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि इस निवासी क्षेत्र में पुलिस- व्यवस्था सक्रिय बनाई जाए और संध्या – काल में विशेष गश्त लगाई जाए ताकि लोगों का जीवन सहज हो सके। अत्यंत आभारी रहूँगा ।
भवदीय
क० ख०ग०
27/3, शीतल नगर कॉलोनी,
…………… नगर
दिनांक : 27 मार्च, 20…

ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10

(ii) परीक्षा भवन,
भिवानी |
20 मार्च, 20…
प्रिय अनुज महिपत,
स्नेहाशीष
कल ही डलहौजी से सुकेत के पिता जी लौटे और उनके माध्यम से तुम्हारा हालचाल ज्ञात हुआ। उन्होंने बताया कि तुम्हारा अध्ययन तो सर्वोत्तम है, परंतु तुम किसी भी प्रकार के खेलकूद में भाग नहीं लेते। सदैव स्वयं को छात्रावास के कमरे और अध्यापन कक्ष तक ही सीमित समझते हो ।

प्रिय भाई ! मुझे यह जानकर वास्तव में गहरा आघात लगा। तुम नहीं जानते कि खेलकूद में भाग लेना कितना आवश्यक है। स्वयं को पुस्तकों तक ही सीमित कर लेने की प्रवृत्ति अत्यंत घातक है। इससे तो तुम किताबी कीड़ा बनकर रह जाओगे। मेरा तुम्हें गंभीर व सच्चा सुझाव यही है कि तुम प्रातः काल जल्दी उठा करो और अन्य बच्चों के साथ क्रीड़ाक्षेत्र में चले जाया करो । सुकेत भी तो तुम्हारे ही छात्रावास में है, केवल कक्षा अलग है। तुम उसे साथी बना लो क्योंकि वह प्रतिदिन क्रीड़ाक्षेत्र में जाकर खेलकूद में भाग लेता है ।

मेरे भाई, तुम पहले छोटे-मोटे खेलकूद में भाग लेना आरंभ करो । लंबी सैर भी उपयोगी होती है। खेलकूद छात्रावस्था का अनिवार्य अंग माना गया है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है और भरपूर स्फूर्ति मिलती है। शरीर की मांसपेशियाँ सबल होती हैं। भोजन ठीक से पचने लगता है । तुम्हारे लिए तो और भी लाभदायक होगा, क्योंकि तुम प्रायः शिकायत करते हो कि तुम्हें भूख नहीं लगती और खाया-पीया जल्दी नहीं पचता । खेलकूद से भाईचारा, सहनशीलता, धैर्य, संतोष जैसे गुण पनपते हैं और प्रतियोगिता की भावना पल्लवित होती है। तुम्हास विद्यालय तो इतना उच्चकोटि का हैं कि उसमें खेलकूद की सारी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो लिखना । छुट्टियों में लेने आऊँगा। शुभकामना !
तुम्हारा अग्रज,
क०ख०ग०

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :-

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए:- [10]

कौशल देश के वृद्ध राजा के चार पुत्र थे। उन्हें यह चिंता सताने लगी थी कि राज्य का उत्तराधिकारी किसे बनाया जाए ? सोच-विचार के बाद अपने चारों पुत्रों को बुलाकर राजा ने कहा- ” तुम चारों में से जो सबसे बड़े धर्मात्मा को मेरे पास लेकर आएगा वही राज्य का स्वामी बनेगा ।” तत्पश्चात् चारों राजकुमार अपने- अपने घोड़ों पर सवार होकर चल पड़े।

कुछ दिनों बाद बड़ा पुत्र अपने साथ एक महाजन को लेकर आया और राजा से बोला- “ये महाजन लाखों रुपयों का दान कर चुके हैं, अनेक मंदिर व धर्मशालाएँ बनवा चुके हैं तथा साधु-संतों और ब्राह्मणों को भोजन कराने के उपरांत ही ये भोजन करते हैं । इनसे बड़ा धर्मात्मा कौन होगा ?
“हाँ, वास्तव में ये धर्मात्मा हैं ।” राजा ने कहा तथा सत्कारपूर्वक विदा किया ।

इसके बाद दूसरा पुत्र एक कृशकाय ब्राह्मण को लेकर आया और राजा से बोला- “ये ब्राह्मण देवता चारों धामों की यात्रा कर आए हैं, कोई तामसी वृत्ति इन्हें छू नहीं गई है। इनसे बढ़कर कोई धर्मात्मा नहीं है । ”

राजा ब्राह्मण के समक्ष नतमस्तक हुए और दान-दक्षिणा देकर बोले- ” इसमें कोई संदेह नहीं कि ये एक श्रेष्ठ धर्मात्मा हैं । ”
तभी तीसरा पुत्र एक साधु को लेकर पहुँचा और बोला- “ये साधु महाराज सप्ताह में केवल एक बार दूध पीकर रहते हैं । भयंकर सर्दी में जल में खड़े रहते हैं और गर्मी में पंचाग्नि तापते हैं। ये सबसे बड़े धर्मात्मा हैं । ”

राजा ने साधु को प्रणाम किया और कहा – ” निश्चय ही ये एक उत्तम साधु हैं।” साधु महाराज राजा को आशीर्वाद देकर विदा हुए।
अंत में सबसे छोटा पुत्र एक निर्धन किसान के साथ आया । किसान दूर से ही भय के मारे हाथ जोड़ता चला आ रहा था। तीनों भाई छोटे भाई की मूर्खता पर ठहाका लगाकर हँस पड़े। छोटा पुत्र बोला – ” एक कुत्ते के शरीर पर लगे घाव को यह आदमी धो रहा था। पता नहीं कि यह धर्मात्मा है या नहीं। अब आप ही इससे पूछ लीजिए । ”

राजा ने पूछा – ” तुम क्या धर्म-कर्म करते हो ?” किसान डरते-डरते बोला- “मैं अनपढ़ हूँ, धर्म किसे कहते हैं, यह मैं नहीं जानता। कोई बीमार होता है तो सेवा कर देता हूँ। कोई माँगता है तो मुट्ठी भर अन्न अवश्य दे देता हूँ ।”
राजा ने कहा- ” यह किसान ही सबसे बड़ा धर्मात्मा है ।” राजा की बात सुनकर तीनों बड़े लड़के एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। राजा ने पुन: कहा – ” तीर्थयात्रा करना, भगवत आराधना में लीन रहना, दान- पुण्य करना और जप-तप करना भी धर्म है किंतु बिना किसी स्वार्थ के किसी दीन-दुःखी और कष्ट में पड़े हुए प्राणी की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। जो परोपकार करता है, वही सबसे बड़ा धर्मात्मा है । ”

(i) राजा को क्या चिंता थी ? उसने अपने पुत्रों को बुलाकर क्या कहा? [2]
(ii) बड़े पुत्र की दृष्टि में सबसे बड़ा धर्मात्मा कौन था और उसका क्या कारण था ? [2]
(iii) साधु किसके साथ आया था ? उसका परिचय किस प्रकार दिया गया ? [2]
(iv) किसान को राजा के सामने कौन लाया था और क्यों ? राजा ने किसान को ही सबसे बड़ा धर्मात्मा क्यों कहा ? [2]
(v) प्रस्तुत गद्यांश से क्या शिक्षा मिलती है ? [2]
Answer :
(i) राजा को अपने उत्तराधिकारी की चिंता थी । उसने अपने पुत्रों को बुलाकर सबसे बड़े धर्मात्मा को खोजकर लाने का आदेश दिया।

(ii) बड़े पुत्र की दृष्टि में वह महाजन सबसे बड़ा धर्मात्मा था जो लाखों रुपये दान दे चुका था और मंदिर – धर्मशालाएँ बनवाने के साथ-साथ’ साधु-संतों व ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद भोजन करता था ।

(iii) साधु – राजा के तीसरे पुत्र के साथ आया था। उसका परिचय यह था कि वह सप्ताह में केवल एक बार दूध पीता था, भयंकर सरदी में जल में खड़ा रहता था और गरमी में पंचाग्नि तापता था ।

(iv) किसान को राजा का सबसे छोटा पुत्र लाया था । किसान को लाने का कारण यह था कि वह एक घायल कुत्ते के शरीर के घाव को धो रहा था । अतः उसे वही सबसे बड़ा धर्मात्मा प्रतीत हुआ। राजा ने किसान को सबसे बड़ा धर्मात्मा स्वीकार किया क्योंकि वह बिना किसी स्वार्थ के एक दीन-दुखी और कष्ट में पड़े प्राणी की सेवा कर रहा था। ऐसा उपकार करने वाला ही धर्मात्मा कहलाता है।

(v) प्रस्तुत गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि निस्वार्थ भाव से दीन-दलित एवं दुखी प्राणियों की सेवा, सहायता व उन पर उपकार करना चाहिए ।

ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 4.
Answer the following according to the instructions given:-
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए:

(i) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए :-
पूजा, धर्म । [1]
(ii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द के दो-दो पर्यायवाची
शब्द लिखिए:-
राजा, जलाशय । [1]
(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए :- [1]
निर्माण, क्रोध, देहाती, मूर्खता ।
(iv) भाववाचक संज्ञा बनाइए :- [1]
साधु, तपस्वी । [1]
(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए :- [1]
कान का कच्चा, श्रीगणेश करना ।
(vi) कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन कीजिए :-
(a) कश्मीर में अनेक दर्शनीय पर्यटक स्थल देखने योग्य हैं।
(वाक्य को शुद्ध कीजिए) [1]
(b) मैं कलम से लिखूँगा ।
( वाक्य को भूतकाल में बदलिए) [1]
(c) आप परिवार के साथ हमारे घर आइएगा।
(रेखांकित के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिए) [1]
Answer :
(i) पूजा – पुजारी ।
धर्म – धार्मिक |

(ii) राजा – नृप, नरेश
जलाशय – तड़ाग, तालाब

(iii) निर्माण – ध्वंस, क्रोध – शांति
देहाती – शहरी, मूर्खता – बुद्धिमत्ता

(iv) साधु-साधुता
तपस्वी – तप

(v) (क) कान का कच्चा अधिकारी पूरी व्यवस्था को भ्रष्ट कर डालता है ।
(ख) भारत ने पाकिस्तान को हराकर विश्व कप प्रतियोगिता का श्रीगणेश कर दिया ।

(vi) (a) कश्मीर में अनेक दर्शनीय पर्यटक स्थल हैं।
(b) मैंने कलम से लिखा ।
(c) आप सपरिवार हमारे घर आइएगा ।

Section-B (40 Marks)
(Attempt four questions from this Section)

You must answer at least one question from each of the two books
you have studied and any two other questions.

गद्य – संकलन

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-

“ यों तो मैं कहीं आऊँ जाऊँ सो ही इन्हें नहीं सुहाता, और फिर कल किशोरी के यहाँ बुलावा नहीं आया । अरे मैं तो कहूँ कि घरवालों का कैसा बुलावा ? वे लोग तो मुझे अपनी माँ से कम नहीं समझते, नहीं तो कौन भला यों भट्टी और भंडार घर सौंप दे ? ”
– अकेली-
लेखिका – मन्नू भंडारी

(i) किसे, किसका कहीं भी आना-जाना पसंद नहीं है तथा क्यों ? [2]
(ii) सोमा बुआ किशोरीलाल के घर किस आयोजन पर बिना निमंत्रण के ही चली गयी थीं? वहाँ उन्होंने किस प्रकार की अव्यवस्था देखी ? [2]
(iii) बुलावा न आने पर भी सोमा बुआ ने किशोरीलाल के यहाँ क्या किया तथा वहाँ जाने का क्या तर्क दिया ? आप इस तर्क से कहाँ तक सहमत हैं ? अपने विचार दीजिए । [3]
(iv) ‘अकेलापन जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।’ इस कहानी की घटनाओं के आधार पर स्पष्ट कीजिए । [3]
Answer :
(i) सोमा बुआ के संन्यासी पति को उसका कहीं भी आना-जाना पसंद नहीं था । इसका कारण यह था कि वह प्रायः बिना बुलाए लोगों के घरों में चली जाती थी। पति संन्यासी था और वर्ष में केवल एक मास के लिए घर आता था । सोमा बुआ को ग्यारह मास अकेली रहकर काटने कठिन हो जाते थे ।

(ii) सोमा बुआ किशोरीलाल के घर उसके बेटे के मुंडन पर बिना निमंत्रण चली गई थी। वहाँ उसने देखा कि समोसे कच्चे ही उतार लिए गए थे और बहुत अधिक बन गए थे। गुलाब जामुन संख्या में बहुत कम थे, अत: पूरे नहीं आ सकते थे। स्त्रियाँ बन्ना बन्नी का गीत गा रही थीं, जो इस आयोजन के अनुरूप नहीं था ।

(iii) सोमा बुआ ने किशोरीलाल के घर से बुलावा न आने पर भी भट्ठी और भंडार घर का कार्य संभाला और गुलाब जामुनों की संख्या कम देखकर नए गुलाब जामुन बनाए। सोमा का तर्क था कि वे लोग उसे अपना समझते हैं । यह तर्क अकेली औरत की मानसिकता के लिए तो उचित है परंतु लोक व्यवहार की दृष्टि से एकदम अनुचित है। हमें बिन बुलाए कहीं भी नहीं जाना चाहिए।

(iv) अकेलापन सचमुच जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। इसी अकेलेपन को काटने के लिए सोमा बुआ सामाजिकता और लोक-व्यवहार का सहारा लेती है। वह लोगों के दुख-सुख के समय में कठिन परिश्रम व सहयोग करती है ताकि उसका जीवन व्यस्त हो सके। वह सामाजिकता में जीना चाहती है।

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-

‘आज देहाती लोग भी कहते हैं कि हमारे बच्चों को तालीम मिलनी चाहिए। तालीम किसलिए मिलनी चाहिए? इसलिए नहीं कि लड़का ज्ञानी बनेगा, धर्म-ग्रंथ पढ़ सकेगा और जीवन में हर काम विचारपूर्वक करेगा। पर इसलिए कि लड़के को नौकरी मिलेगी और हम जैसे दिन भर खटते हैं, वैसे उसे खटना न पड़ेगा।”
– श्रम की प्रतिष्ठा-
लेखक- आचार्य विनोबा भावे

(i) काम के प्रति देहाती लोगों की मनोवृत्ति कैसी हो गई है और क्यों ? [2]
(ii) दिमागी काम करने वाले लोग मजदूरों के प्रति क्या विचार रखते हैं ? [2]
(iii) लेखक ने मजदूरों की तुलना किससे की है तथा क्यों? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) प्रस्तुत निबंध का उद्देश्य लिखिए। [3]
Answer:
(i) देहाती अर्थात् ग्रामीण लोगों की मनोवृत्ति बदल रही है। वे अपने परंपरागत काम में अपने बच्चों को नहीं डालना चाहते। वे उन्हें शिक्षित करके उच्च पदों पर आसीन देखना चाहते हैं और परिश्रम वाले कामों से बचना चाहते हैं ।

(ii) दिमागी काम करने वाले लोग मज़दूरों को घटिया श्रेणी का समझते हैं। वे कम पैसों में अधिकतम मजदूरी करवाना चाहते हैं ।

(iii) लेखक ने मज़दूरों की तुलना शेषनाग से की है क्योंकि जिस प्रकार यह पृथ्वी शेषनाग के मस्तक पर टिकी है, उसी प्रकार सबका भरण-पोषण एवं देखभाल अन्न उगाने वाले किसानों तथा अनेक प्रकार से हमारी सहायता करने वाले मज़दूरों पर टिकी है। यदि मज़दूर पग-पग पर हमारी सेवा न करें, पैदावार उगाकर हमारी भूख न मिटाएँ, तो समाज का ढाँचा बिखर जाएगा। इस प्रकार श्रमिक भी शेषनाग के समान अपने उत्तरदायित्व का वहन करते हैं।

(iv) लेखक विनोबा भावे हमें संदेश देना चाहते हैं कि जो लोग उच्च पदों पर हैं, उन्हें भी थोड़ा-बहुत शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए। उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण का उदाहरण इसी क्रम में दिया है । केवल कर्म करने से कोई कर्मयोगी नहीं हो जाता। यदि कर्म करने वाले के जीवन में कर्म के प्रति पाप है और उसमें कर्म को पूजा समझने की वृत्ति नहीं है, तो वह कर्मयोगी नहीं हो सकता । श्रम की प्रतिष्ठा अवश्य माननी चाहिए।

Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

“मैं नहीं जानती कि वह शहंशाह था या साधारण मुगल, पर एक दिन इसी झोंपड़ी के नीचे वह रहा था। मैंने सुना था, वह मेरा घर बनाने की आज्ञा दे गया था। मैं आजीवन अपनी झोंपड़ी खुदवाने के डर से भयभीत रही थी । ”
-ममता-
लेखक – जयशंकर प्रसाद

(i) वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए । [2]
(ii) कौन, किसका घर बनवाने की आज्ञा दे गया था तथा क्यों ? [2]
(iii) झोंपड़ी के स्थान पर वहाँ क्या बनाया गया और उस पर क्या लिखा गया ? अपने शब्दों में लिखिए। बताइए कि वास्तव में वह स्थान किसके नाम का महत्त्व रखता है ? [3]
(iv) इस कहानी के माध्यम से लेखक ने हमें क्या संदेश देना चाहा है? [3]
Answer :
(i) इस कथन की वक्ता ममता है । वह एक ब्राह्मण कुमारी और विधवा स्त्री है। वह रोहतास दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की बेटी है । विधवा होने के बाद वह अत्यंत गंभीर, शांत और अनासक्ति का जीवन बिता रही थी । जब शेरशाह के आक्रमण में चूड़ामणि मारा गया तो वह बच निकलने में सफल हो जाती है । वह एक खंडहर में कुटिया बनाकर रहती है और पास-पड़ोस के सुख-दुख में भाग लेकर अपना जीवन काटती है। वह ईश्वर की उपासना करती है। उसके मन में ममता, उदारता व परोपकार की भावना है।

(ii) हुमायूँ ममता के लिए घर बनवाने की आज्ञा दे गया था। जब चौसा के युद्ध में शेरशाह से संघर्ष करते-करते हुमायूँ पराजित होकर अपने साथियों से बिछुड़ जाता है तो वह बहुत थक चुका होता है । उसका घोड़ा गिर पड़ता है। वह इतना थक चुका था कि आगे जाने में असमर्थ था । उसने उस रात ममता की झोंपड़ी में विश्राम किया था । उस उपकार के बदले उसने मिरज़ा को ये आदेश दिया था।

(iii) हुमायूँ के पुत्र एवं उत्तराधिकारी अकबर ने जो अष्टकोण मंदिर बनवाया था, उसमें ममता के नाम की कोई भी चर्चा नहीं थी । कारण ही वह स्थान अपना महत्त्व रखता था परंतु उसी का नाम नहीं लिखा गया। उस मंदिर पर जो शिलालेख लगवाया गया, उस पर लिखा था कि सातों देशों के नरेश हुमायूँ ने एक दिन वहाँ विश्राम किया था। उसके पुत्र अकबर ने उसकी स्मृति में वह गगनचुंबी मंदिर बनवाया ।

ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10

(iv) प्रस्तुत कहानी से लेखक ने दो संदेश दिए हैं। मुख्य संदेश यह है कि अपने राज्य या देश से कभी द्रोह नहीं करना चाहिए। ममता इसीलिए अपने पिता को रिश्वत में लिया गया सोना लौटाने के लिए कहती है। दूसरा संदेश भारतीय संस्कृति से जुड़ता है कि ‘अतिथि देवता समान होता है।’ ममता विधर्मी व युद्ध-पिपासु होने पर भी घर आए हुमायूँ को शरण देती है। वह उस पर दया न करते हुए भी अपना कर्तव्य निभाकर आश्रय देती है ।

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य
लेखक-प्रकाश नगायच

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

“मैं ही नहीं, मगध की सारी प्रजा जानती है कि जो कुछ भी रामगुप्त और उसके मंत्रियों ने किया है, गुप्त वंश की परंपरा और स्वर्गीय सम्राट् समुद्रगुप्त की इच्छा और आज्ञाओं के विरुद्ध ही नहीं धर्म के विरुद्ध भी है।”

(i) उक्त कथन का वक्ता और श्रोता कौन है ? इससे पूर्व वक्ता श्रोता की किससे तुलना कर रहे थे और क्यों? [2]
(ii) धर्म किसे कहते हैं ? रामगुप्त के द्वारा किए गए कार्य को धर्म के विरुद्ध क्यों कहा गया है ? [2]
(iii) समुद्रगुप्त का परिचय देते हुए बताइए कि यहाँ उनकी चर्चा क्यों की जा रही है ? [3]
(iv) उपन्यास ‘चंद्रगुप्त विक्रमादित्य’ युद्ध प्रधान उपन्यास है। उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer:
(i) यह कथन मगध के राजपुरोहित विष्णु शर्मा ने युवराज चंद्रगुप्त से कहा है ।
इस कथन से पूर्व विष्णु शर्मा युवराज चंद्रगुप्त की तुलना उनके पिता सम्राट् समुद्रगुप्त से कर रहे थे। युवराज चंद्रगुप्त अपने स्वरूप तथा गुणों की दृष्टि से अपने पिता जैसे ही थे। वे अपने पिता की तरह ही वीर, साहसी एवं योग्य थे। जिस प्रकार पिता समुद्रगुप्त ने अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त करके समस्त भारत को एक किया था उसी प्रकार की क्षमता तथा गुण युवराज चंद्रगुप्त में भी दिखाई दे रहे थे ।
इस तुलना का कारण चंद्रगुप्त के स्थान पर रामगुप्त का बलपूर्वक राजसिंहासन पर अधिकार कर लेना था ।

(ii) नैतिक मूल्यों के मार्ग पर चलते हुए आचरण व कर्तव्य अपनाने को धर्म कहा जाता है। रामगुप्त ने एक साथ कई ऐसे कार्य किए, जो धर्म के विरुद्ध थे। पिता समुद्रगुप्त की बीमारी की सूचना युवराज को देना अनिवार्य था। रामगुप्त ने ऐसा न करके बलपूर्वक राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। चंद्रगुप्त को राजनीतिक अधिकार से वंचित करने के साथ ही वह उसकी मंगेतर ध्रुवस्वामिनी से भी बलपूर्वक विवाह कर लेता है जिसे चंद्रगुप्त मद्र देश से लाया था। इस प्रकार का कायर व अयोग्य व्यक्ति न तो राजा बनने के योग्य होता है और न पति बनने के । इसीलिए उसके कार्य को धर्म के विरुद्ध कहा गया है।

(iii) समुद्रगुप्त मगध के चक्रवर्ती सम्राट् थे । वे एक महान् यशस्वी, कुशल, साहसी व पराक्रमी शासक थे । उन्होंने भारत के छोटे- छोटे राज्यों को जीतकर एक करने का मौलिक कार्य किया था । उन्होंने पश्चिम में तक्षशिला से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी की ओर फैले विभिन्न राज्यों पर अधिकार कर लिया था । वे वीरता, विवेक व दूरदर्शिता की सजीव मूर्ति थे । इसीलिए वे अपने बड़े पुत्र रामगुप्त की अयोग्यता तथा छोटे पुत्र चंद्रगुप्त की अपार योग्यता को पहचान जाते हैं और विवेकपूर्वक चंद्रगुप्त को ही युवराज नियुक्त करते हैं।

(iv) प्रस्तुत उपन्यास के लेखक’ श्री प्रकाश नगायच’ जी हैं। यह युद्धों पर आधारित उपन्यास है। इसमें उपन्यासकार ने उपन्यास के प्रारंभ. में ही इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाल दिया है। इसके कथानक का मूल आधार विशाखदत्त का नाटक ‘देवी चंद्रगुप्तम्’ है। यद्यपि इस नाटक के कुछ अंश हीं उपलब्ध हैं तथापि इसकी ऐतिहासिकता प्रामाणिक है। प्राप्त अंशों में ही कथानक की मूल घटनाओं अर्थात् युद्धों का उल्लेख मिल जाता है। रामगुप्त के संबंध में ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं जिनसे ऐतिहासिक संदर्भों की पुष्टि होती है। चंद्रगुप्त द्वारा अपने अयोग्य अग्रज रामगुप्त का वध करके राज्य प्राप्त करना और उसकी विधवा ध्रुवस्वामिनी से विवाह करना भी ऐतिहासिक तथ्य है । इन कार्यों को करने के लिए शकराज तथा रुद्रसिंह से युद्ध करने पड़े थे ।

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-
‘अगर हमने शकराज की माँगें पूरी न कीं तो सवेरा होते ही शकों की सेना हमें असहाय भेड़-बकरियों की तरह काट डालेगी। ”

(i) प्रस्तुत संवाद के वक्ता और श्रोता कौन हैं ? संक्षिप्त परिचय दीजिए । [2]
(ii) शकराज की शर्तें क्या थीं? वे शर्तें अपमानजनक क्यों थीं ? [2]
(iii) शकराज की शर्तों को पूरा करने में क्या कठिनाइयाँ हैं ? समझाकर लिखिए । [3]
(iv) उपर्युक्त संवाद की प्रतिक्रिया में श्रोता ने क्या विचार प्रस्तुत किए? आप इस विचार से कहाँ तक सहमत हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए । [3]
Answer :
(i) प्रस्तुत संवाद का वक्ता मगध का सम्राट् रामगुप्त है। श्रोता उसका सेनापति शिखरस्वामी है। रामगुप्त स्वर्गीय सम्राट् समुद्रगुप्त का बेटा था और वह कायर, अयोग्य तथा विलासी था । इसीलिए उसे मगध का युवराज न बनाकर उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त को युवराज घोषित कर दिया गया था । परंतु वह छलपूर्वक चंद्रगुप्त की मंगेतर ध्रुवस्वामिनी से बलपूर्वक विवाह कर लेता है और राजसिंहासन पर अधिकार पा लेता है ।

(ii) शकराज खारवेल ने संधि की शर्तों में कहा था कि उसे केवल कश्मीर नहीं बल्कि पंजाब तक का प्रदेश दिया जाए और दोनों राज्यों की सीमा सतलुज नदी को माना जाए। उसकी दूसरी शर्त यह थी कि महादेवी ध्रुवस्वामिनी और मगध के सामंतों की पत्नियों को उसके अंत:पुर में भेज दिया जाए। ये शर्तें घोर अपमानजनक थीं। जिस साम्राज्य की स्थापना दिवंगत सम्राट् समुद्रगुप्त ने जान पर खेलकर की थी, उसको बिना संघर्ष व श्रम के निकलने देना अपमान का कारण था । मगध सम्राट् रामगुप्त की पत्नी को शत्रु के अंतःपुर में भेजना तो अत्यंत अपमानजनक था । इससे न केवल संपूर्ण नारी जाति को अपितु शासन नीतियों को भी कलंकित व लज्जित होना पड़ेगा। अतः शकराज की सभी शर्तें अपमानजनक तथा किसी भी वीर क्षत्रिय शासक के लिए अस्वीकार्य थीं ।

(iii) शकराज की शर्तों को पूरा करने में न केवल ध्रुवस्वामिनी का अपितु संपूर्ण नारी जाति का अपमान था। चंद्रगुप्त जैसा स्वाभिमानी भारतवासी इस अपमान को कभी भी सहन नहीं कर सकता था ।

(iv) शिखर स्वामी का यही विचार था कि शकराज खारवेल की शर्तें मान ली जाएँ। वह शास्त्रों का तर्क देते हुए कहता है- ” शास्त्रों का कथन है कि एक के लिए अनेक का विनाश कराना अधर्म है । हम अकेली महादेवी के कारण मगध की इस विशाल सेना का नाश नहीं करा सकते ” ।

Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-
” लेकिन यह विजय अधूरी है, सम्राट ! युवराज चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी का सबसे बड़ा बैरी अभी भी जीवित है । ”

(i) उपर्युक्त कथन किसने, किससे, कब और कहाँ कहा है ? [2]
(ii) वक्ता किस विजय की बात कर रहा है ? यह विजय कैसे पाई गई थी ? संक्षेप में लिखिए। [2]
(iii) ‘सबसे बड़ा बैरी’ कौन है? वह सबसे बड़ा बैरी क्यों है ? कारण सहित उत्तर दीजिए। [3]
(iv) ‘सबसे बड़ा बैरी’ कब और किस तरह मारा जाता है ? समझाकर लिखिए । [3]
Answer:
(i) उपर्युक्त कथन देववर्मा ने मगध सम्राट रामगुप्त से शकराज खारवेल की छावनी में चंद्रगुप्त के शिविर में उस समय कहा जब चंद्रगुप्त ने अपनी अद्भुत व अचूक योजना के द्वारा शकराज का अंत कर डाला । सम्राट रामगुप्त इस विजय को चंद्रगुप्त के जीवन की महान् विजय घोषित कर रहे थे परंतु देववर्मा इससे सहमत नहीं था । इसीलिए वह उक्त कथन कहता है।

(ii) वक्ता देववर्मा शकराज खारवेल पर प्राप्त की गई विजय की बात कर रहा है। सम्राट के रूप में रामगुप्त को मगध के राजसिंहासन पर पाकर शकराज का साहस बढ़ चुका था । वह जानता था कि रामगुप्त एक अकर्मण्य, कायर व नपुंसक शासक है और वह पिता समुद्रगुप्त की तरह राज्य की रक्षा नहीं कर पाएगा। उचित अवसर देखकर उसने मगध पर आक्रमण कर डाला। रामगुप्त सब ओर से घिर गया तो उसने चंद्रगुप्त से सहायता माँगी। चंद्रगुप्त ने आते ही शकराज को पराजित करने के लिए अचूक योजना तैयार की। योजना के अनुसार शकराज की छावनी में संधि की शर्तों के अनुरूप ध्रुवस्वामिनी के वेश में स्वयं चंद्रगुप्त और सामंत-पत्नियों के वेश में एक हज़ार शूरवीर सैनिक भेजे गए। इस प्रकार शकराज को चंद्रगुप्त तथा ध्रुवस्वामिनी मिलकर मार डालते हैं और चंद्रगुप्त का शंखनाद सुनते ही सैनिक पालकियों से निकलकर हमला कर देते हैं और विजयी होते हैं ।

(iii) यहाँ ‘सबसे बड़ा बैरी’ सम्राट रामगुप्त को बताया जा रहा है । इसका कारण यह है कि रामगुप्त ने शिखर स्वामी के साथ षड्यंत्र करके चंद्रगुप्त की अनुपस्थिति में न केवल मगध के राजसिंहासन पर अधिकार किया बल्कि चंद्रगुप्त की मंगेतर ध्रुवस्वामिनी से बलपूर्वक विवाह भी कर लिया था । सेनापति ने महामंत्री सोमनाथ का वध करके सेनापति के साथ महामंत्री का पद भी हथिया लिया । उसने सम्राट समुद्रगुप्त की बीमारी की सूचना युवराज चंद्रगुप्त को नहीं दी। रामगुप्त की इसी कायरता व अन्याय के कारण देववर्मा उसे सबसे बड़ा बैरी मानता है ।

(iv) जब देववर्मा अपने संबोधन में चंद्रगुप्त को ‘युवराज’ और ध्रुवस्वामिनी को ‘देवी’ कहता है तो रामगुप्त अत्यंत क्रोध में आ जाता है । उसे ‘युवराज’ तथा ‘देवी’ संबोधन से देववर्मा का भाव समझ में आ जाता है। वह देववर्मा को बंदी बनाने का आदेश देता है जिसे चंद्रगुप्त विफल कर देता है। उधर ध्रुवस्वामिनी रामगुप्त की पत्नी होने से इंकार कर देती है क्योंकि वह विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध हुआ था और उसे वह विवाह नहीं अपितु अन्याय मानती है। रामगुप्त क्रुद्ध होकर ध्रुवस्वामिनी पर तलवार लेकर टूट पड़ता है। देववर्मा बीच में आकर वार को टालता है। अचानक रामगुप्त चंद्रगुप्त पर तलवार चलाकर उसे घायल कर देता है। इससे देववर्मा का क्रोध चरम पर पहुँच जाता है और वह रामगुप्त को पूरी शक्ति के साथ कंधे से लेकर छाती तक चीर कर उसका अंत कर देता है ।

एकांकी सुमन

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

“महाराज राम के बल से कौन निर्भीक और निडर नहीं है ? उनके प्रताप के सामने तुम्हारा प्रताप क्या है ? क्या जुगनुओं का प्रकाश कभी सूर्य के प्रकाश की समानता कर सकता है । और उस प्रकाश से क्या कभी कमलिनी खिल सकती है ? ऐसे व्यक्ति का प्रताप… ‘
– राजरानी सीता-
लेखक-डॉ० रामकुमार वर्मा

(i) प्रस्तुत कथन का वक्ता कौन है ? उसने ये वाक्य किससे और कब कंहा ? [2]
(ii) वक्ता ने ‘जुगनुओं का प्रकाश’ एवं सूर्य के प्रकाश की तुलना किससे और क्यों की है ? संक्षेप में लिखिए । [2]
(iii) वक्ता, श्रोता के किस अपमानजनक कार्य के लिए उसे लज्जित
करता है? अपमानजनक कार्य में श्रोता की मुख्य रूप से किसने और किस प्रकार सहायता की थी ? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) वक्ता का परिचय देते हुए उनके चरित्र की मुख्य दो विशेषताएँ लिखिए। [3]
Answer:
(i) यह वाक्य सीता जी ने लंकापति रावण से कहा है । यहाँ वक्ता के रूप में सीता जी अपने पति भगवान राम के प्रताप का वर्णन कर रही हैं। उनके विचार में श्रीराम सूर्य के समान ओजस्वी तथा तेजस्वी दिव्य पुरुष हैं। संदर्भ यह था कि रावण दसवाँ महोत्सव मनाकर अपनी पत्नी मंदोदरी के साथ अशोक वाटिका में आकर अपने गुणों, भक्ति तथा तेज़ का बखान करने लगता है ताकि सीता जी प्रभावित होकर उसकी पत्नी बनना स्वीकार कर लें परंतु सीता जी उसे एक जुगनू तथा श्रीराम को सूर्य बताकर यह संकेत देती हैं कि श्रीराम के प्रताप के सामने रावण अत्यंत तुच्छ है। श्रीराम के सामने रावण उतना ही निस्तेज होगा जितना सूर्य के तेज़ के सामने जुगनू होता है। इस प्रकार वे अपने पति की स्तुति तथा पर-पुरुष की निंदा करते हुए उसे यह संकेत देती हैं कि वे उसे स्वप्न में भी स्वीकार नहीं करेंगी।

(ii) जुगनू एक प्रकार का उड़ने वाला कीट होता है जो रात्रि में अपने पंख फैलाता है तो प्रकाश टिमटिमाता दिखाई पड़ता है। यहाँ वक्ता के रूप में सीता जी लंकापति रावण को स्पष्ट करना चाहती हैं कि उसकी सत्ता उनके पति श्रीराम के सामने उसी प्रकार की है जिस प्रकार सूर्य के सामने जुगनू की होती है। उनके प्रभु राम सूर्य के समान तेजस्वी, ओजस्वी, प्रतापी व प्रचंड हैं। रावण अपने गुणों का बार-बार बखान करके उन्हें प्रभावित करना चाहता है तो वे अपने प्रभु राम के गुणों का वर्णन इस प्रकार के उदाहरण से करती हैं । श्रीराम के दिव्य व तेजस्वी स्वरूप के सामने रावण एक क्षुद्र प्राणी से बढ़कर कुछ भी नहीं है ।

(iii) वक्ता अर्थात् सीता रावण को उसके सीता हरण जैसे कार्य के लिए लज्जित कर रही हैं। इस अपमानजनक कार्य के लिए रावण को उसकी बहन शूर्पणखा ने उकसाया था। उसने मरीच की सहायता से सीता हरण किया था ।

(iv) वक्ता (सीता जी) राजा जनक की पुत्री व श्रीराम की पत्नी हैं। वे एक सुशील, एकनिष्ठ व पतिव्रता भारतीय नारी हैं। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण अपने पति के श्रीचरणों का ही ध्यान करते हुए व्यतीत होता है । वे पति की ऐसी अनुचरी है कि चौदह वर्ष के वनवास की आज्ञा मिलते ही निर्णय ले लेती हैं कि वे भी पति के साथ वन में रहेंगी। उन्हें राजसी ठाठ-बाठ का तनिक भी मोह नहीं था । जन्म से ही राजसी परिवेश में पलने वाली नारी का ऐसा आचरण आदर्श है । वे दुर्दिन में भी विचलित नहीं होतीं । लंकापति रावण उन्हें छल से हर कर ले गया तो वे श्रीराम को ही समर्पित रहती हुई विपत्ति के दिन काटती जाती हैं। रावण का पराक्रम, छल, बल, लोभ व वैभव उनको भ्रमित नहीं कर पाता । वे सोने के तिनके के स्थान पर घास के तिनके को महत्त्व देती हैं। उनका पतिव्रत धर्म इतना आदर्श व पवित्र था कि उसी की शक्ति के बल पर उनकी रावण की कैद से सम्मानपूर्वक वापसी होती है।

ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए-

“नहीं, वह ठोकर इसलिए खाता है कि आँखों वाला पास खड़ा व्यक्ति उसे सहारा नहीं देता, उसे सहारा देने से कतराता है। हम भी जब अंधे हो जाते हैं तो चाहते हैं आस-पास से रस की दो बूँदें हमें मिल जाएँ। सच नीरू, ये रस की बूँदें प्यार की बूँदें हैं जो जीवन के सारे अंधेरे को अंदर तक पोंछ डालती हैं और हमारी जिंदगी तब उजालों में नहा सकती है। ”
-भटकन-
लेखिका – शैल रस्तोगी

(i) प्रस्तुत कथन का वक्ता कौन है ? तथा श्रोता का संक्षिप्त परिचय दीजिए । [2]
(ii) अंधा ठोकर क्यों खाता है ? इस वाक्य के माध्यम से वक्ता क्या कहना चाहता है ? [2]
(iii) रस की बूँदों का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए । वक्ता रस की बूँदें क्यों चाहता है ? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) ‘हमारी जिंदगी तब उजालों में नहा सकती है।’ कथन के आधार पर वक्ता के भाव स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer :
(i) उपर्युक्त पंक्तियाँ एकांकी के पात्र मनुज द्वारा कही गई हैं, जो दिवाकर का पुत्र है । मनुज अपनी बहन नीरू से दिल्ली के उस लड़के के संबंध में बात कर रहा है जिसके पापा उसे पढ़ने के लिए कहते थे तथा अपना रवैया सुधारने को कहते थे । लड़के ने पिता की इस बात से नाराज़ होकर अपने पिता को शूट कर दिया था । मनुज के अनुसार उस लड़के के बहकने का एक कारण आवश्यकता से अधिक आदेश दिया जाना था जिसके कारण उसका विवेक अंधा हो गया था।

श्रोता मनुज की बहन नीरू है। नीरू के अनुसार आदमी खुद भटकना नहीं चाहता। उसे भटकने के लिए मज़बूर करता है उसका परिवेश, उसकी परिस्थितियाँ मनुष्य इन सबसे बच नहीं पाता। परिवेश एवं परिस्थितियाँ घर से बाहर भागने को मज़बूर करती हैं । हमारा मन घर की बंद दीवारों से समझौता नहीं कर पाता और घर से बाहर सहारे की कोई भी छत ऊपर नहीं होती, इसलिए हम भटकते हैं।

(ii) ‘अंधे हो जाने’ से मनुज का आशय विवेक का कुंठित हो जाना है । जब किसी पर इतने आदेश थोप दिए जाते हैं, पग-पग पर हस्तक्षेप किया जाता है, तो व्यक्ति अपने को दबा-दबा महसूस करता है तथा उसका अंतर्मन रिवोल्ट करने लगता है तथा भटक जाता है और उसका विवेक अंधा हो जाता है।

(iii) ‘रस की बूँदों’ का प्रयोग वक्ता मनुज के स्नेहपूर्ण व्यवहार से है । मनुज के अनुसार जब युवकों से अधिक टोकाटाकी की जाती है तथा बात-बात में हस्तक्षेप किया जाता है, तो युवक प्रतिक्रिया स्वरूप अनुशासनहीन हो जाते हैं। भटक जाते हैं और इस भटकन का कोई अंत नहीं होता। ऐसी स्थिति में युवक माता-पिता के स्नेह से भरे व्यवहार तथा दो शब्दों के भूखे होते हैं, जिससे उनके अशांत एवं भटके हुए मन को कुछ राहत मिल सके।

(iv) ‘हमारी जिंदगी तब उजालों में नहा सकती है’ – कथन का अर्थ जीवन की सार्थकता से है। विवेक मानता है कि जीवन में यौवन को भटकन से रोकने में सहायता करने वाले बहुत कम लोग होते हैं । यदि ऐसे लोग मिलते रहें तो जीवन सार्थक एवं सफल हो सकता है।

Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :-

“हाँ, पूछते थे, मैंने कह दिया कि बच्चा है, पर माँ की मौत के बाद उसकी हालत ठीक नहीं रहती, परमात्मा ही मालिक है । ”
– लक्ष्मी का स्वागत- लेखक
– उपेंद्रनाथ ‘अश्क’

(i) उक्त वार्तालाप किनके बीच कब हो रहा है ? संक्षेप में लिखिए । [2]
(ii) श्रोता कौन है ? उसके अनुसार बीमार बच्चे की माँ की मृत्यु किस प्रकार हुई ? [2]
(iii) ऐसी विषम परिस्थितियों में वक्ता द्वारा अपने पुत्र रोशन का शगुन लेना कहाँ तक उचित है ? अपने विचार व्यक्त कीजिए । [3]
(iv) एकांकी का उदाहरण देते हुए उद्देश्य लिखिए । [3]
Answer :
(i) उक्त वार्तालाप रोशन की माँ और पिता के बीच हो रहा है। जब रोशन के दूसरे विवाह की तैयारी हो रही थी तो उसका बेटा अरुण बहुत गंभीर रूप से बीमार था। इसका उसके पिता पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता। वह सियालकोट वाले रिश्ते को ठुकराना नहीं चाहता क्योंकि वहाँ से ‘लक्ष्मी’ अर्थात् दहेज की भारी आशा थी ।

(ii) श्रोता रोशन की माँ है। बीमार बच्चा अरुण है । उसकी माँ की मृत्यु बीमारी के कारण हुई थी। उसका नाम सरला था ।

(iii) ऐसी विषम परिस्थितियों में रोशन के पिता द्वारा उसके लिए शगुन लेना कतई उचित नहीं है । जब घर में पुत्र मृत्यु से जूझ रहा हो तो उसके पिता के लिए नए विवाह की चर्चा भी अनुचित होती है। यह कठोरता और स्वार्थ का सूचक है ।

(iv) प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य लोगों के मन-मस्तिष्क पर छाये लोभ के पर्दे को दिखाना है । इस आर्थिक लालच में लोग सभी संबंधों व पारिवारिक संदर्भों को ताक में रख देते हैं। यह लालच लोगों के भीतर इस तरह घर कर चुका है कि वे समय-कुसमय की भी परवाह नहीं करते। एक ओर उनका पोता अरुण जीवन-मरण के बीच संघर्ष कर रहा है, तो दूसरी ओर वे बेटे की दूसरी शादी के लिए सियालकोट के धनी व्यापारी की लड़की का शगुन लेने के लिए लार टपका रहे हैं। रोशन के समझाने पर भी वे अपने हठ और धन के लोभ को नहीं छोड़ते । वे हर कीमत व हर हाल में घर आई लक्ष्मी अर्थात् धन का स्वागत करना चाहते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत एकांकी में आधुनिक मशीनी युग में लोगों की बढ़ती हृदयहीनता का चित्रण करते हुए भौतिकतावाद के बढ़ते चरणों का संकेत दिया है जिसमें हमारे सामाजिक मूल्यों का महत्त्व घटता जा रहा है और स्वार्थ भावना बढ़ती जा रही है ।

काव्य-चंद्रिका

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए:-

बगिया हरी-हरी, वसुंधरा भरी-भरी
फिर क्यों रहे मनुष्य की दशा मरी-मरी
फैले कुटी कुटी महल – महल, तरी तरी
घर में बिरादरी, समाज में बराबरी
ऐसा न हो कि कोटि-कोटि ही दुखी रहें-
तुम वेदना हरो, उदार वेदना हरो,
तुम वेदना हरो ।
बढ़ती चले कतार देश की पुकार कर
‘धुन छेड़ दो नई, समष्टि के सितार पर
पीछे किया करो सिंगार द्वार-द्वार पर
पहले जले दिया शहीद के मजार पर
वे देश पर चढ़ा गए शरीर फूल सा-
तुम वंदना करो, कृतज्ञ वंदना करो,
तुम वंदना करो ।
-नवीन कल्पना करो-
कवि – गोपाल सिंह नेपाली

(i) बगिया हरी-हरी तथा वसुंधरा भरी-भरी का मनुष्य की दशा से क्या संबंध हैं ? [2]
(ii) कवि को किस दुख की चिंता है ? कवि अपने इस दुख को दूर करने के लिए किससे क्या कह रहा है ? [2]
(iii) अपने द्वार को सजाने से पहले कवि क्या करने को कह रहा है ? हमें किन लोगों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए तथा क्यों ? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) प्रस्तुत कविता का मूलभाव लिखिए।
Answer :
(i) कवि भारत की प्राकृतिक संपदा का महत्त्व बता रहा है कि भारत के बाग-बगीचे हरे-भरे हैं । सारी धरती फसलों से लहलहाती है। धरती के भीतर खनिज पदार्थों का अपार भंडार भरा पड़ा है । इतनी संपन्नता होने पर भी भारतीय लोगों की दशा मरियल जैसी क्यों हो। यह खुशहाली तथा इसका प्रभाव कुटिया से लेकर महलों तक पहुँचना चाहिए। हर गरीब व अमीर को इस संपदा का लाभ मिले।

(ii) कवि को इस बात की चिंता है कि कहीं ऐसा न हो कि स्वतंत्रता का लाभ आम आदमी तक न पहुँच पाए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि देश का एक वर्ग तो खुशहाल हो जाए और शेष करोड़ों लोग अभावों का जीवन जीने के लिए विवश हो जाएँ । सामाजिक व आर्थिक विषमता का दुख ही कवि की चिंता का विषय है ।

(iii) अपने घर के द्वार सजाने से पहले देश के शहीदों की समाधियों पर दीपक जलाना चाहिए। इन शहीदों के बलिदान से ही हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई है । अतः ऐसे साहसी, वीर व त्यागी महापुरुषों का पूरा-पूरा सम्मान होना चाहिए। हमें अपने द्वार अपनी इच्छा से सजाने का अधिकार भी इन्हीं शहीदों के बलिदान के बाद प्राप्त हुआ है।

(iv) प्रस्तुत कविता का मूल भाव भारत की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए यहाँ के आर्थिक व सामाजिक विकास को बनाए रखना है। कवि लोगों में नवीन कल्पना जगाना चाहता है जिसमें कर्तव्य- भावना बनी रहे। कवि ने आपसी सद्भाव, प्रेम व भाईचारे का संदेश देना चाहा है। उनके अनुसार धर्म भले ही भिन्न हो परंतु हम सब का परम धर्म देश व उसका कल्याण है। नवयुवकों के अंदर ऐसा जोश होना चाहिए जिससे वे देश पर आने वाले हर खतरे का डटकर मुकाबला कर सकें। स्वतंत्रता की लड़ाई तो हमने जीत ली है परंतु आपसी विषमता के अभिशाप को अभी दूर करना शेष है। समाज की सर्वांगीण उन्नति के साथ-साथ चरित्र-निर्माण की भी आवश्यकता है । अतः राष्ट्र के समग्र विकास के लिए सभी को तन-मन-धन से एकजुट होना आवश्यक है । सामर्थ्य व संपन्नता बनाए रखने के लिए अपने भीतर का साहस तथा आत्मविश्वास जगाना होगा।

ICSE 2015 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :-

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए :
आगे चले बहुरि रघुराया । रिष्यमूक पर्बत निअराया । ।
तरह सचिव सहित सुग्रीवा । आवत देखि अतुल बल सींवा ।।
अति सभी कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।।
धरि बटु रूप देखु तैं जाई । कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई ||
पठए बालि होहिं मनु मैला । भागौं तुरत तजौं यह सैला ।।
बिप्र रूप धरि कंपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ ।।
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा । छत्री रूप फिरहु बन बीरा ।।
कठिन भूमि कोमल पद गामी । कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी ।।
मृदुल मनोहर सुंदर गाता । सहत दुसह बन आतप बाता ।।
की तुम्ह तीनि देव मँह कोऊ । नर नारायन की तुम्ह दोऊ ।।
-राम-सुग्रीव मैत्री –
कवि- तुलसीदास

(i) सुग्रीव किस पर्वत पर, किसके साथ तथा क्यों रहता था ? [2]
(ii) सुग्रीव क्या देखकरं भयभीत हो गए थे ? उन्होंने हनुमान जी से क्या कहा ? [2]
(iii) बलि कौन था ? वह ऋष्यमूक पर्वत पर क्यों नहीं जाता था ? उससे सुग्रीव क्यों भयभीत था ? [3]
(iv) सुग्रीव ने हनुमान से क्या कहा ? हनुमान ने सुग्रीव की आज्ञा का पालन किस प्रकार किया तथा उन्होंने आगंतुक से क्या प्रश्न पूछे? [3]
Answer :
(i) ऋष्यमूक पर्वत पर किष्किंधा नरेश बालि का भाई सुग्रीव अपने मंत्री हनुमान के साथ रह रहा था। एक बार बालि एक मायावी राक्षस का पीछा करते-करते एक गुफा के भीतर चला गया। सुग्रीव बाल ने कहा कि यदि वह राक्षस को मारकर पंद्रह दिन तक बाहर नहीं आता तो समझ लेना कि वह मारा गया है। सुग्रीव ने एक महीने तक प्रतीक्षा की। फिर गुफा से खून की धारा बाहर आती देख उसने समझ लिया कि बालि मारा गया है। राक्षस के भय से उसने एक बड़ी शिला द्वार पर रख दी और राज सिंहासन संभाल लिया। जब बालि लौटा तो राजा बने सुग्रीव को देखकर क्रुद्ध हुआ और उसने मार-पीट कर उसे भगा दिया तथा उसकी पत्नी भी छीन ली। तभी से वह बालि के डर से ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगा था ।

(ii) सुग्रीव ने जब देखा कि अतुल बल व पौरुष के स्वामी के रूप में दो अपरिचित ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़ रहे हैं तो वह डर गया। वह अपने भाई बालि से सदैव भयभीत रहता था । उसे संदेह हुआ कि अवश्य ही बालि ने उसे मारने के लिए कोई नयी चाल चली है। इसलिए वह अपने मंत्री हनुमान से कहता है कि वह जाकर उन दोनों के विषय में जानकारी प्राप्त करे। यदि वे दोनों बालि द्वारा भेजे गए योद्धा हों, तो वह तुरंत उस पर्वत को छोड़कर भाग जाएमा ।

(iii) बालि और सुग्रीव दोनों भाई थे। बालि को यह भ्रम हो गया था कि सुग्रीव उसे मारना चाहता है क्योंकि वह गुफा के मुँह पर भारी शिला रख आया था । उसे लगा कि सुग्रीव स्वयं राजा बनने की इच्छा के कारण ऐसा करने आया था ताकि राक्षस के प्रहार से बालि बचकर बाहर न आ सके। जब बालि राक्षस को परास्त करके लौटा तो उसने सुग्रीव को अपनी जगह पर राजसिंहासन . पर पाया । वह अतुल बलशाली व पराक्रमी था । उसने सुग्रीव को खूब मारा। इसीलिए वह भयभीत होकर भागा और इस पर्वत पर आकर उस जगह रहने लगा जहाँ शाप के कारण बालि का जाना वर्जित था ।

(iv) हनुमान से सुग्रीव ने दो पराक्रमी व अपरिचित वीरों का भेद जानने for a बदलकर जाने को कहा । आज्ञा के अनुसार हनुमान ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और श्रीराम व लक्ष्मण के पास गए। उन दोनों के सामने माथा झुकाकर भयभीत स्वर में उनका परिचय प्राप्त करने लगे।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए-

मेरा मन तो हरा हो गया इन्हें निरख कर,
दोनों का यह रूचिर रूप नयनों से चखकर।
और अधिक के हेतु समुत्सुक हूँ मैं मन में,
ये दोनों जड़ वटपि यहाँ इस विरल विजन में।

भेंट रहे हैं एक दूसरे को खिल-खिल कर
निज-निज सीमा लांघ सहोदर-से हिल-मिलकर।
इसकी शाखा लिये कनक कुसुमों की डाली,
उसके कर में मधुर फलों की भेंट निराली।
पुलकांदोलित पत्र परस्पर की छाया में
छाया भी अविभिन्न परस्पर की माया है।
-सम्मिलित
कवि-सियारामशरण गुप्त

(i) ‘मेरा मन तो हरा हो गया’ से कवि का क्या तात्पर्य है ? कवि का मन हरा क्यों हो गया था? [2]
(ii) कौन भेंट रहे हैं ? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। [2]
(iii) ‘छाया भी अविभिन्न परस्पर की माया है।’ पंक्ति का भावार्थ ___ लिखिए। कवि ने उक्त पंक्ति के द्वारा क्या संकेत दिया है ?[3]
(iv) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए- [3]
रुचिर, समुत्सुक, विटपि, सहोदर, पुलकांदोलित, परस्पर।
Answer:
(i) ‘मन हरा हो गया’-से कवि का तात्पर्य मन के प्रसन्न एवं आनंदित हो जाने से है। जब कवि ने दो सुंदर अमलतास के वृक्षों और उसके फूलों को देखा तो वह अत्यंत आनंदित हो उठा।

(ii) अमलतास के दोनों पेड़ एक दूसरे से भेंट कर रहे थे अर्थात् मिलकर प्रसन्न हो रहे थे। एक पेड़ की शाखाओं पर सुंदर फूल तथा दूसरे पर फल लगे हुए थे। वे एक दूसरे के पत्तों की छाया में खुशी से रोमांचित हो रहे थे। उन दोनों पेड़ों की छाया भी एक थी।

(iii) इस पंक्ति का अर्थ है कि उन दोनों पेड़ों की छाया भी अविभिन्न थी। इसका भाव यह है कि दोनों पेड़ इस प्रकार सम्मिलित आभा दे रहे थे कि उनकी छाया एक प्रतीत होती थी। इससे उनके सम्मिलित तथा एकमेक होने के भाव की पुष्टि होती है। इस प्रकार वे दोनों अखंड, अविभाज्य व आनंदप्रद हैं।

(iv) शब्दार्थ : रुचिर-मनोरम, समुत्सुक-उत्कंठित, विटपि-पेड़, सहोदर-सगे भाई, पुलकांदोलित-प्रसन्न होकर झूमते हुए, परस्पर-आपस में/एक-दूसरे में।