ICSE 2016 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Solving ICSE Class 10 Hindi Previous Year Question Papers ICSE Class 10 Hindi Question Paper 2016 is the best way to boost your preparation for the board exams.

ICSE Class 10 Hindi Question Paper 2016 Solved

Section – A (40 Marks)
(Attempt all questions)

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics : [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए:
(i) पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से फैशन एवं प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिसके कारण अनेक प्रकार की समस्याओं का जन्म हो रहा है तथा नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। अपने विचारों द्वारा स्पष्ट कीजिए ।
(ii) ” सादगी भी लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ सकती है” कथन को ध्यान में रखते हुए अपने देश के किसी ऐसे व्यक्तित्व के विषय में लिखिये जिन्होंने ‘सादा जीवन उच्च विचार’ को आधार मानकर अपना जीवन बिताया, आपके ऊपर उस व्यक्ति का प्रभाव किस प्रकार का रहा यह भी स्पष्ट कीजिए ।
(iii) योग के माध्यम से हम शरीर तथा मन दोनों को स्वस्थ कर सकते हैं, जीवन में योग की अनिवार्यता तथा उससे मिलने वाले लाभों का वर्णन करते हुए अपने विचार लिखिए।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित उक्ति हो :-
“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ”
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कहानी अथवा लेख लिखिए, जिसका सीधा संबंध चित्र से होना चाहिए ।
ICSE 2016 Hindi Question Paper Solved for Class 10 1
Answer :
(i) पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित युवा वर्ग की मानसिकता
पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से फैशन और प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है । इस कथन में लेशमात्र भी मिथ्या नहीं है । पाश्चात्य सभ्यता इतनी प्रभावशाली हो गई है कि लोगों की विवेकबुद्धि कुंठित हो गई है। क्या सही है, क्या गलत है, यह सोचना ही बंद कर दिया है । कभी-कभी तो यह फैशन इतना हास्यास्पद प्रतीत होता है कि लोगों की बुद्धि पर दया आती है। फैशन में भी तो एक संतुलन होना चाहिए। फैशन के नाम पर भारतीय संस्कृति को तिलांजलि देकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाना अपनी ही जड़ों पर कुठाराघात किया जाने के समान है |

नवीनता लाना या परिवर्तन लाना बुरी बात नहीं है, लेकिन उसमें शालीनता भी होनी चाहिए। फैशन के नाम पर नग्नता, अश्लीलता, मर्यादाहीनता आदि, सराहनीय नहीं है। इसमें समाज में विकृति उत्पन्न होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी देशों की नकल करके हम लोग फूहड़ और लज्जाहीन हो गये हैं । पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसात करके हम अपने रीति-रिवाजों और श्रेष्ठ परंपराओं को नष्ट करते जा रहे हैं । फलस्वरूप समाज में अपराध, अशिष्टता, अश्लीलता, पारिवारिक विघटन उत्पन्न हो रहे हैं । आज लोगों को वेलेन्टाइन डे, अप्रैल फूल, रोज डे, मदर्स डे, फादर्स डे आदि तो याद रहते हैं । परंतु माता-पिता, गुरु आदि के प्रति आदर भाव याद नहीं रहता है। पाश्चात्य सभ्यता का ही परिणाम है कि शादी के बाद बहुत शीघ्र संबंध विच्छेद हो जाते हैं ।

हमारे पूर्वजों ने एक लंबे और गहन अध्ययन के बाद मनुष्य के लिए एक सभ्य समाज की संरचना हेतु हर क्षेत्र में कुछ आदर्श, कुछ मूल्य, कुछ सीमाएँ निर्धारित की थीं। जिनके अनुपालन से भारतीय संस्कृति विश्व में पूजनीय बनी। परंतु आज उन्हीं आदर्शों की अवहेलना से हमारे नैतिक मूल्यों का निरंतर पतन हो रहा है। यह पाश्चात्य संस्कृति का ही प्रभाव है कि पति- पत्नी के संबंधों के बीच तीसरे की उपस्थिति न्यायोचित ठहराई जा रही है। शर्म की बात तो यह है कि भारतीय नारी जिसकी सुंदरता तथा शृंगार उसकी लज्जा हुआ करती थी’ आज वह पूर्णतया लज्जारहित हो गई है। युवक-युवतियों पर माता-पिता का कोई अंकुश नहीं रहा ।

‘गर्लफ्रेंड’, ‘बॉय फ्रेंड’ आधुनिक फैशन है। देर रात तक घर से बाहर रहना, क्लब में पार्टी, ड्रिंक व डांस करना यह सब पाश्चात्य संस्कृति का ही प्रभाव है । ‘प्रेम विवाह’ इसी संस्कृति की देन है । पाश्चात्य सभ्यता ने माँ को ‘मौम’ व पिता को ‘डैड’ कर दिया। गुरु-शिष्य तथा भाई- बहन आदि के अतिरिक्त समाज के अहम व महत्त्वपूर्ण संबंध भी इतने दूषित हो गये हैं जिन्हें सुनकर लोग शर्मसार हो जाते हैं ।

इतिहास साक्षी है कि जब कभी भी किसी देश, समाज, धर्म या समुदाय को हानि पहुँची तो उसका कारण उसकी सभ्यता व संस्कृति तथा उसके आदर्शों पर कुठाराघात है। मार्क्स ने कहा था कि इस पाश्चात्य संस्कृति का भारत पर हावी होने का कारण अर्थ अथवा पूँजी है। यह पूँजी ही आधुनिक परिवेश में समाज के लिए स्वादिष्ट विष परोस रही है जो संपूर्ण मानव जाति को पतन की ओर ले जा रहा है ।

ICSE 2016 Hindi Question Paper Solved for Class 10

(ii) ‘सादा जीवन उच्च विचार’
‘सादा जीवन उच्च विचार’ बड़ी सारगर्भित उक्ति है । भले ही आज के आकर्षण युक्त परिवेश में इस उक्ति का महत्त्व न हो परंतु युगों-युगों से यह कथन महत्त्वपूर्ण रहा है क्योंकि अनेक महापुरुषों ने इसके महत्त्व को द्विगुणित किया है। कौन नहीं जानता महान विभूति, लाल बहादुर शास्त्री को, जो गुदड़ी के लाल कहे जाते थे । वह सादगी में पले बढ़े तथा जीवन में संघर्षों से निरंतर लड़ते रहे । प्रतिदिन नदी पार करके पाठशाला जाना और उसी तरह वापस लौटना । उन्होंने अपनी सच्चाई, ईमानदारी व परिश्रम के बल पर हर कठिनाई को सहज बनाया तथा सदैव जीवन में स्वावलंबी बने रहे। जीवन कदाचित् सादा था, परंतु विचारों में अप्रत्याशित उच्चता थी । अपने इन्हीं गुणों के फलस्वरूप जनता ने उन्हें भारत के प्रधानमंत्री पद पर आसीन कर दिया ।

ऐसी ही एक महान विभूति ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जो सादगी की प्रतिमूर्ति थे । एक महान आयोजन में मुख्य अतिथि के सम्मान हेतु आमंत्रित थे । मार्ग में उन्होंने देखा एक भारी ‘बीम’ को कुछ अशक्त लोग उठाने के प्रयास कर रहे थे, परंतु भारी होने के कारण नहीं उठा पा रहे थे। वहीं उनका स्वामी जो सहारा देकर उठवा सकता था, किंतु अपने बड़प्पन के कारण ‘उठाओ’, ‘ धक्का दो’ आदि शब्द तो कह रहा था, परंतु उनकी सहायता नहीं कर रहा था । ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने जब देखा तो आगे बढ़कर जैसे ही हाथ से जोर लगाया काम हो गया । आयोजन में वह व्यक्ति जो आदेश दे रहा था, उसने उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में देखा तो शर्म से पानी-पानी हो गया। इसी तरह सादगी अपनी अमिट छाप छोड़ जाती है ।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सन 1950 में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने । उनके आवास की व्यवस्था ‘तत्कालीन वायसराय के भवन में की गई। वहाँ उन्हें बहुत से कमरे दिखाये गये । उन्होंने स्पष्ट कहा उन्हें अधिक कमरों की आवश्यकता नहीं। वह अपनी आवश्यकतानुसार ही कमरों में रहेंगे। अधिकारी उन्हें शयन कक्ष में ले गये । वहाँ का स्प्रिंगदार कीमती शाही पलंग देखकर उन्होंने उसे हटाने को कहा। अधिकारियों के यह कहे जाने पर कि आपका पद गरिमावाला है और वायसराय के समकक्ष है ।

अतः पद के अनुरूप आपको इसका उपयोग करना चाहिए । तब उन्होंने उत्तर दिया वह वायसराय के अनुरूप नहीं है । शाही पलंग उनके लिए काँटों की सेज होगी। उन्होंने कहा “मेरे रहन-सहन के कुछ उसूल हैं, कुछ आचार-विचार हैं, मैं उनके विरुद्ध नहीं जा सकता अन्यथा मेरे आदर्शों को आघात पहुँचेगा।” भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ का किसान परिश्रमी तो है, परंतु उसकी अवस्था बड़ी दीन-हीन है। ऐसे देशवासियों का प्रतिनिधि ऐशो-आराम की जिंदगी कैसे बिता सकता है ?

उनके इन शब्दों को सुनकर अधिकारी अचंभित हुए बिना न रह सके। उन्होंने समझ लिया कि यह सच्चे जनसेवक सादगी पसंद तथा सिद्धान्तवादी महापुरुष हैं। उनके हृदय में अपने नेता के प्रति हार्दिक श्रद्धा की भावना का प्रादुर्भाव हुआ ।

(iii) योग साधना का महत्त्व
हमारे जीवन में योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह अक्षरशः सत्य है कि योग के माध्यम से हम अपने मन व शरीर को पूर्णरूपेण स्वस्थ बना सकते हैं । यदि वास्तव में हम अपने जीवन को सुखी व समृद्ध बनाना चाहते हैं तथा दुःखों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो हमें नियमित रूप से योग करना चाहिए। यूँ तो जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं, लेकिन मन को स्वस्थ रखने के लिए हमें शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखना अति आवश्यक है ।

कर्म साधना के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है, लेकिन मन की स्वस्थता ही कर्म करने की प्रेरणा देती है । अत: नियमित योग के माध्यम से ही तन व मन दोनों स्वस्थ रह सकते हैं । नियमित योगासनों को करने से शरीर में शक्ति तो आती ही है साथ ही रूप में लावण्य आता है। खुली हवा में योग करना फेफड़ों में ऑक्सीजन की वृद्धि करता है । शरीर का अंग- प्रत्यंग क्रियाशील होता है तथा शरीर में लचीलापन आता है । योग के द्वारा अनेक रोगों से भी रक्षा होती है तथा यह रक्त को शुद्ध करता है। हृदय को शुद्ध रक्त प्राप्त होता है । शरीर का आलस्य दूर होता है तथा क्रियाशीलता बढ़ती है। योग करने का सबसे श्रेष्ठ समय प्रातःकाल होता है। सूर्य नमस्कार करने से भयंकर से भयंकर रोगों से निवृत्ति मिल जाती है। योग करने से खूब भूख लगती है तथा पाचन शक्ति दुरुस्त रहती है। आत्मविश्वास, एकाग्रता एवं मस्तिष्क में बल वृद्धि होती है । शरीर से पसीना निकलता है जिससे शरीर की गंदगी दूर होती है।

योग न करने से शरीर आलसी, रोगी व अनमना – सा रहता है। काम करने में मन नहीं लगता । भोजन में आसक्ति नहीं रहती । हमेशा प्रतीत होता है कि जैसे हम बीमार हैं। चिकित्सक के पास जाकर भी संतुष्टि नहीं होती । योग बिना पैसे का उपचार है। यह सब योग का ही चमत्कार है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के बल पर निराहार रहकर तीन-तीन हजार वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर तपस्याएँ कीं। यही कारण है आज भी ऋषि- मुनियों ने व्यायाम और योगासन पर बहुत बल दिया है। बाबा रामदेव का योग आज के युग का स्पष्ट उदाहरण है। उन्होंने योग के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। उन्होंने योग के माध्यम से लोगों
लाइलाज रोगों को भी दूर किया है। उन्होंने प्राणायाम और योग के अनेक आसन बताये हैं । इन योगासनों का ज्ञान बाबा रामदेव मौखिक और लिखित रूप में टेलीविजन के आस्था और संस्कार चैनलों पर नियमित देते हैं ।

योग का सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि योगी व्यक्ति को बहुत जल्दी बुढ़ापा नहीं आता । उसके शरीर का हर अंग नियमित व्यायाम व योग से क्रियाशील बना रहता है । आज की दुनिया में बी.पी., डाइबिटीज, आर्थराइटिस, थायरॉइड जैसे अनेक रोग लगे हुए हैं, परंतु इसमें संदेह नहीं है कि जिन्होंने बचपन से योग व व्यायाम को अपनी नियमित दिनचर्या बनाई होगी, उसे कोई बीमारी छू नहीं सकती।
हमारे देश के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी तो व्यायाम व योग के प्रबल समर्थक है । उन्होंने प्रत्येक के लिए योग की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसके महत्त्व को दर्शाने के लिए उन्होंने “21 जून योग दिवस” का भी आयोजन किया था । वह स्वयं योग करते हैं । कहने का अभिप्राय यह है कि योग करने वाले की कार्यक्षमता एवं मस्तिष्क क्षमता में अत्यधिक वृद्धि होती है । इसलिए मन, बुद्धि एवं शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग करना चाहिए ।

(iv) “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।” इस वाक्य का भाव है कि मजहब अर्थात् कोई धर्म परस्पर दुश्मनी करने की शिक्षा नहीं देता । हम अपने प्राचीन इतिहास को उठाकर देखें तो पता चलता है कि भिन्न-भिन्न धर्मों और संप्रदायों के धर्म-गुरुओं ने आपस में प्रेम, बंधुत्व और सद्भाव काही पाठ पढ़ाया है। मिल-जुलकर सभी समस्याओं का समाधान संभव है। किंतु धर्म न संप्रदायों का आश्रय लेकर उनसे जुड़ी मानसिक संकीर्णताओं में फंसकर लड़ना-झगड़ना केवल वैमनस्य और अराजकता को ही जन्म देता है।

जब तक हम एक-दूसरे की भावनाओं को नहीं समझेंगे, परस्पर एक-दूसरे का आदर नहीं करेंगे, एक-दूसरे के हित का चिंतन नहीं करेंगे तब तक आपसी सद्भाव का अभाव ही रहेगा। हमें अपने आपको, अपनी जबान को और अपनी नस्ल को झूठी शान-शौकत और श्रेष्ठता की चकाचौंध से बचाना होगा। हमारे मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों के उत्थान में हमारी संस्कृति और मेहनत के दर्शन होते हैं। इनमें हमारे पूर्वजों के परिश्रम व प्यार की मिसालें हैं हमें उनका आदर करना चाहिए । हम सब एक ही परमात्मा की संतानें हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई से भी बढ़कर एक धर्म है और वह है मानव धर्म । हमें उसकी अवहेलना नहीं करनी चाहिए। यदि इस भाव को हम हृदय में धारण करें तो बहुत सहज है कि हम एक-दूसरे से भाई – बहन जैसा प्यार कर सकेंगे, फिर बैर कहाँ होगा ?

हमारे धर्मों के पैगंबर और गुरुओं ने लोगों को समानता की शिक्षा दी। जैन गुरु महावीर स्वामी के समीपस्थ वातावरण में तो हिंसक जंगली पशु भी हिंसा त्यागकर प्रेम से रहते थे । बौद्ध धर्म के अनुयायी महात्मा बुद्ध का कहना था कि ” लोगों के दिलों में मोहब्बत के फूल खिलाना हजारों तीर्थों से बेहतर है । ” भगवान श्रीकृष्ण ने प्रेम के वशीभूत होकर अपने मित्र सुदामा के कंटक भरे चरणों को अपने अश्रुजल से ही धो डाला। महान् बलिदानी प्रभु ईसा मसीह मानव जाति की भलाई के लिए सूली पर चढ़ गये। ममतामयी माँ मदर टेरेसा ने बिना किसी धर्म व संप्रदाय का विचार किये हर पीड़ित, निराश्रित व दुःखी को हृदय से लगाया। हम यदि इतने बड़े कार्य न भी करें तो क्या मज़हब को बीच में न लाकर प्यार से नहीं रह सकते ? यह तो बहुत छोटी-सी बात है जो हर प्राणी को प्रसन्नता दे सकती है। इसी संदर्भ में मुझे एक कहानी याद आ गई ।

राम और रहीम दो मित्र थे। दोनों बड़ी घनिष्ठता थी । राम के घर में कोई उत्सव होता या कोई परेशानी होती तो रहीम जी जान से राम के उस कार्य में शरीक होता । रहीम के घर में ईद की सिंवइयों का भरपूर आनन्द राम का पूरा परिवार लेता था । एक बार हिन्दू मुसलमानों में झगड़ा छिड़ गया । राम का घर रहीम की बस्ती में था। सारे मुसलमानों ने राम के घर पर धावा बोल दिया। रहीम को इस बात का अंदेशा था । वह अपनी कटार लेकर राम के दरवाजे पर बैठ गया । उसने चेतावनी दी कि मेरा कत्ल करने के बाद ही कोई राम के घर में घुसेगा । लोग दो दिन तक सिर पीटते रहे। कोई परिणाम न निकला ।

वह केवल एक पंक्ति गुनगुनाता रहा “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान ।” अंत में लोगों को इस बात का ज्ञान हुआ कि परमात्मा ही ईश्वर है, वही अल्लाह है, वही यीसू मसीह और वही वाहे गुरु है और हम सभी उसी एक की संतानें हैं। आपस में भाई-बहन हैं। फिर एक-दूसरे के दुश्मन कैसे हो सकते हैं ? यह बात सबको समझ आ गई। सभी ने रहीम से माफी माँगी और राम को गले लगाया । सब आपस में मित्र बन गये । बात सद्भाव की है अगर मन में सभी प्राणियों के प्रति सद्भाव होगा तो बैर अपने आप समाप्त हो जायेगा ।

(v) चित्र प्रस्ताव
प्रस्तुत चित्र में दो 12-13 वर्ष की बालिकाएँ दर्शायी गई हैं। वह दोनों एक नल के पास बैठी हुई हैं। नल में बहुत तेज पानी आ रहा है जिसे देखकर वे दोनों अप्रत्याशित रूप से प्रसन्न हो रही हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे बहुत दिनों के बाद उन्हें नल में पानी की प्राप्ति हुई हो। उनकी हँसी ऐसी है जैसे बहुत समय के पश्चात् जब बादल बरसते हैं तो लोग खुशी से झूम उठते हैं । जल ही जीवन है । जल के बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है । रहीम कवि ने जल के महत्त्व को दर्शाते हुए लिखा है-
” रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून” ।।

प्राणिमात्र के जीवन का आधार जल है । जल के बिना जीवन की संभावना कदाचित् असंभव है। हमारे देश में इस समय जल संकट बहुत अधिक है । आपने अक्सर नलों पर प्रातः काल से ही बर्तनों की भीड़ देखी होगी। पानी प्राप्त करने के लिए लोगों को झगड़ते भी देखा होगा । हमारी सरकार प्रकृति प्रदत्त जल सबको प्राप्त कराने में सर्वथा अशक्त है । इस चित्र के माध्यम से इसी भाव की अभिव्यक्ति हो रही है ।

यह एक कस्बे का चित्र है जहाँ पर वहाँ के निवासियों ने बहुत दिनों से जल संस्थान अधिकारियों से कस्बे में जल की व्यवस्था के लिए अनेक प्रार्थना-पत्र दिये। बड़े समूह में एकत्रित होकर बार-बार जल संकट की शिकायत की। उन्होंने यह भी बताया कि कूएँ सूख गये हैं न नलकूप व्यर्थ हो गये हैं। यहाँ के निवासी प्यास से व्याकुल हैं तथा पशुओं के लिए भी पानी की व्यवस्था नहीं है। बार-बार प्रार्थना किए जाने पर शायद अधिकारियों को दया आ गई, और उन्होंने इस क्षेत्र में पाइप लाईन बिछवा दी। अब पाइप लाइन तो बिछ गई परंतु पाइप में पानी नहीं था । पुनः सभी क्षेत्रवासियों ने प्रदेश की सरकार से अपनी कठिनाई बताई । उसमें भी एक-दो महीने लग गये। कई बार तो जल संस्थान से पानी का टैंकर भेजकर लोगों की कठिनाई को दूर किया गया, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं था । पुनः कुछ लोग सीधे मुख्य

मंत्री के पास पहुँचे और अपनी दीन-दशा का वर्णन किया। मंत्री जी ने लोगों के कष्ट को समझा और परंतु अपने अधीनस्थ अधिकारियों को कड़े आदेश देकर तुरंत कार्यवाही करने के लिए कहा। परिणामस्वरूप वहाँ के निवासियों की मेहनत रंग लाई और आज नलों में पानी आने लगा जिसे देखकर यह दोनों बालिकाएँ अत्यंत प्रसन्न हैं तथा संपूर्ण कस्बे के निवासियों की समस्या का भी समाधान हो गया ।
यह कहानी बताती है कि सही दिशा में परिश्रम करने से सफलता अवश्य मिलती है।

ICSE 2016 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below: [7]

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :
(i) आपके टेलीविजन द्वारा विभिन्न चैनलों पर अंधविश्वास तथा तंत्र-मंत्र से संबंधित कार्यक्रम दिखाकर जनता को भ्रमित किया जा रहा है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री को इसकी जानकारी देते हुए ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने का अनुरोध कीजिए ।
(ii) आपकी चचेरी बहन जो गाँव में रहती है, उसकी दसवीं के बाद शिक्षा रोक दी गई है अतः उसकी आगे की शिक्षा जारी रखने का निवेदन करते हुए अपने चाचा जी को पत्र लिखिए जिसमें नारी शिक्षा की आवश्यकता और उसके लाभों की भी चर्चा कीजिए ।
Answer:
(i) प्रतिष्ठा में,
माननीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री,
भारत सरकार,
दिल्ली ।
विषय – टेलीविजन पर प्रसारित अंधविश्वास एवं तंत्र-मंत्र से संबंधित कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने हेतु ।
माननीय महोदय,

आज के इस वैज्ञानिक युग में टेलीविजन के चैनलों पर अनेक प्रकार के अंधविश्वासों एवं तंत्र-मंत्र मिश्रित कार्यक्रमों की भरमार है । आश्चर्य की बात तो यह है कि इनके प्रभाव से कमिश्नर, कलेक्टर, वकील जैसे प्रबुद्ध लोग भी अछूते नहीं रह सके हैं। सुख व दुःख मानव जीवन के दो अंग हैं। कभी सुख तो कभी दुःख आते ही रहते हैं । इसी प्रकार से मानव शरीर मानसिक व शारीरिक रोग से ग्रसित होता रहता है । उसका उपाय ओझा, ज्योतिषी या फिर झाड़-फूंक करने वाले तांत्रिक नहीं कर सकते हैं । उसका उपचार तो चिकित्सकों व वैद्यों के पास होता है, न कि अंधविश्वासी धन ऐंठने वाले या भ्रमित करने वाले पाखण्डी पण्डितों या तांत्रिकों के पास हैं ।

महोदय, कभी गणेशजी की पत्थर की मूर्ति को दूध पिला रहे हैं। कभी भूत-प्रेत का बहाना कर एक निर्दोष पुरुष या स्त्री को कोड़ों से मार रहे हैं। दूध उफन गया तो अपशकुन हो गया। बिल्ली रास्ता काट गई तो अशुभ है। लंबी बीमारी हो गई तो ग्रह शांति के लिए यज्ञ, दान आदि करना- ये सारे कृत्य भोले-भाले लोगों को पथभ्रष्ट करके धन अर्जित करने के साधन हैं ।

टेलीविजन का कोई भी चैनल खोलकर देखिये हर चैनल पर एक नया ज्योतिषी दिखाई देगा। जिसका कार्य ऐसे कृत्य कर भोली-भाली जनता से धन ऐंठना है। सच तो यह है कि मनुष्य पुरुषार्थ करना भूल गया है। यही पर्याप्त नहीं है, कई पुरोहित तो लड़कियों के इलाज के बहाने व्यभिचार करते हैं ।

महोदय मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि जनता की ईश्वर में आस्था बनी रहने देने के लिए और लोगों की सोच सकारात्मक बनाने के लिए अतिशीघ्र इन ढोंगी व पाखण्डियों के कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने का कष्ट करें ताकि व्यक्ति, समाज एवं देश का उद्धार हो सके। आशा है आप मेरे इस प्रस्ताव पर गंभीरता विचार करेंगे।
सधन्यवाद ।
प्रार्थी,
रोहित सहगल
इंदौर |
दिनांक : 25.02.20….

(ii) 40 / 28 गौतम नगर
दिल्ली ।
दिनांक : 15.04.20…
आदरणीय चाचाजी,
सादर चरण स्पर्श ।
कुशलपूर्वक रहकर आपकी सपरिवार कुशलता की कामना करता हूँ। कल ही मुझे निशा का पत्र मिला और ज्ञात हुआ कि आपने उसकी कक्षा दस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् उसे आगे अध्ययन करने की अनुमति नहीं दी है । यह जानकर बहुत कष्ट हुआ। चाचाजी आप एक अध्यापक हैं। लड़कियों की शिक्षा कितनी महत्त्वपूर्ण है, इस विषय में आपसे अधिक कौन जान सकता है ? शिक्षा लड़कियों का वह शस्त्र है जिसके सहारे वे अपने जीवन को मजबूत आधार दे सकती हैं। क्या आप जानते नहीं कि समाज में कितना नारी उत्पीड़न हो रहा हैं ? जीवन में कभी यदि कोई विषमता आ जाए तो शिक्षित नारी अपने जीवन की समस्याओं का समाधान करने योग्य तो होती है। आज के इस विकसित परिप्रेक्ष्य में भी आप मेरी बहन को केवल चूल्हे चाकी तक ही सिमटा देना चाहते हैं । आप नहीं चाहते कि वह भी अच्छी पढ़ाई करके अपने पैरों पर खड़ी हो जाये और खुशहाल जिंदगी जी सके।

चाचा जी मेरी आपसे सानुरोध प्रार्थना है कि आप निशा की आगे की पढ़ाई आरंभ कराइये तथा वह जो सपने हृदय में संजोये है, उन्हें पूरे करने में उसकी सहायता कीजिए ।
आशा है आप मेरे इस सुझाव का आदर करते हुए निशा की भावना को समझेंगे। चाचा जी को सादर प्रणाम । घर में सबको
यथा योग्य।
आपके उत्तर पत्र की प्रतीक्षा में ।
आपका भतीजा
करन

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :-

बहुत समय पहले एक गाँव में हरिहर नाम का एक दयालु और सीधा- सच्चा किसान रहता था । वह खेती-बाड़ी का काम करता था । वह पूरा दिन अपने खेत में जी-तोड़ मेहनत करता था और शाम का समय ईश्वर की प्रार्थना में बिताता था। जीवन में मात्र उसकी एक इच्छा थी । वह उडुपि के मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहता था । वह उडुपि दक्षिण कर्नाटक का प्रमुख तीर्थस्थान है । वह अपनी गरीबी के कारण तीर्थयात्रा की इच्छा पूरी नहीं कर पाता था । इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। समय के साथ-साथ हरिहर की आर्थिक स्थिति भी सुधरती गई। अब उसने तीर्थयात्रा की योजना बनाई । उसकी पत्नी ने उसके लिए पर्याप्त भोजन बाँध दिया।

हरिहर तीर्थयात्रियों के एक दल के साथ उडुपि की ओर चल दिया । मार्ग में उसे एक स्थान पर एक बूढ़ा आदमी मिला। उसकी दशा बहुत दी दयनीय थी । वह कई दिनों से भूखा-प्यासा था और पीड़ा के कारण कराह रहा था । जैसे ही हरिहर की नजर उस पर पड़ी, उसका हृदय करुणा से भर गया। उसने बूढ़े के पास जाकर पूछा, “बाबा, क्या तुम भी तीर्थयात्रा करने उडुपि जा रहे हो ?” बूढ़े आदमी ने उत्तर दिया, ‘मेरा एक बेटा बीमार है और दूसरे बेटे ने भी तीन दिनों से कुछ नहीं खाया। फिर मैं तीर्थ यात्रा कैसे करूँ ।”

हरिहर समझता था कि दीन-दुखियों की सेवा ही ईश्वर की सबसे बड़ी सेवा है इसलिए उसने उडुपि जाने से पहले उस बूढ़े के घर पहले जाने का निश्चय किया। उसके साथियों ने उसे बहुत समझाया “बहुत मुश्किल से तुमने धन एकत्र किया है। अगर यह नष्ट हो गया तो फिर तुम कभी तीर्थयात्रा नहीं कर पाओगे ।” हरिहर पर उनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह बूढ़े के घर जा पहुँचा । उसने सबसे पहले घर के सभी व्यक्तियों को भरपेट भोजन कराया। फिर वह बीमार बच्चे के लिए दवा ले आया। उसने बूढ़े को खेत में बोने के लिए बीज भी ला दिये। वह कुछ दिन वहाँ रुका। उसने बूढ़े आदमी के बेटे की सेवा की, जिससे वह कुछ दिनों में स्वस्थ हो गया लेकिन इन सारे कार्यों में उसके सारे पैसे खर्च हो गये ।

अब उसने अपनी तीर्थयात्रा बीच में ही छोड़कर वापस घर लौटने का निश्चय किया । उसे उडुपि न जा पाने का बिल्कुल भी दुःख न था । क्योंकि वह जानता था कि उसने अपना सारा धन दीन-दुखियों की सेवा में खर्च किया था । घर पहुँचकर उसने अपनी पत्नी को सारी बातें बता दीं । पत्नी भी इस पर प्रसन्न हुई क्योंकि वह भी धार्मिक स्वभाव की महिला थी । उस रात हरिहर ने सपने में भगवान श्रीकृष्ण को देखा, जो उससे कह रहे थे, ” हरिहर तुम मेरे सच्चे भक्त हो। तुमने उस बुढ़े आदमी की सहायता की और अपनी इच्छा का बलिदान कर दिया । वह बूढ़ा आदमी कोई और नहीं मैं ही था । तुम्हारी परीक्षा के लिए ही मैं उस बूढ़े आदमी का वेश धारण कर वहाँ आया था। तुम मेरे सच्चे सेवक हो ।” इस तरह हरिहर बगैर तीर्थयात्रा पर गए पुण्य का भागीदार बना ।

(i) हरिहर क्या काम करता था ? उसकी एकमात्र इच्छा क्या थी ? [2]
(ii) हरिहर को तीर्थयात्रा के मार्ग में कौन मिला ? उसकी क्या स्थिति थी ? [2]
(iii) हरिहर ने बूढ़े व्यक्ति की कैसे सहायता की ? [2]
(iv) हरिहर ने घर लौटने का निश्चय क्यों किया ? वहाँ लौटने पर रिहर ने क्या स्वप्न देखा ? [2]
(v) इस गद्यांश से आपको क्या शिक्षा मिलती है ? [2]
Answer :
(i) सीधे-सादे स्वभाव का व्यक्ति हरिहर एक कृषक था । वह पूरे दिन अपने खेत में जी-तोड़ मेहनत करता था । संध्या समय वह अपने प्रभु श्रीकृष्ण की आराधना में व्यतीत करता था । दक्षिण कर्नाटक में उडुपि नाम का एक प्रमुख तीर्थस्थान है। उसमें उसकी घनिष्ठ आस्था थी । उसके दर्शन करने की उसकी प्रबल तथा एकमात्र अभिलाषा थी ।

(ii) हरिहर ने कड़ी मेहनत करके कुछ धन एकत्रित किया और वह तीर्थयात्रियों के एक समूह के साथ उडुपि नामक तीर्थस्थान की
ओर चल दिया। अभी वह थोड़ी ही दूर चला, तभी मार्ग में उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला जिसकी दशा अत्यंत दयनीय थी। वह कई दिनों से भूख-प्यास से पीड़ित और दर्द से कराह रहा था । उसकी दयनीय अवस्था से हरिहर दया द्रवित हो गया । उस बूढ़े से बातचीत करके हरिहर को ज्ञात हुआ कि उसका एक पुत्र बीमार है, दूसरा तीन दिन से भूखा है हरिहर समझ रहा था कि शायद इस भीड़ में मिलने वाला वह बूढ़ा भी तीर्थयात्री है, परंतु जब उसे उसका सच पता चला तो उसका हृदय करुणा से भर गया।

(iii) हरिहर दीन-दु:खियों की सेवा को परमात्मा की सच्ची भक्ति समझता था। उसने उडुपि जाने का निश्चय त्याग दिया। उसके साथियों के बार-बार समझाने के उपरांत भी उसने दीन- दुःखयों की सेवा को ही अपना प्रथम कर्तव्य समझा । हरिहर की पत्नी ने तीर्थयात्रा पर चलते समय बहुत – सा भोजन रखा था। सर्वप्रथम हरिहर ने बूढ़े के घर जाकर उस भोजन से उसके घर के भूखे व्यक्तियों को भरपेट भोजन करवाकर उन्हें तृप्त किया। तत्पश्चात् वह बीमार बच्चे के लिए दवा लेकर आया। यही नहीं उसने बूढ़े के खेत में अनाज बोने के लिए बीज लाकर दिये । वह कुछ दिन वहाँ ठहरा। उसने उसके बीमार बच्चे की सेवा – सुश्रुषा की जिससे वह स्वस्थ हो गया।’

(iv) उस बूढ़े व्यक्ति के परिवार की सेवा न सहायता करते हुए उसके कई दिन व्यतीत हो गये साथ ही उडुपि नामक तीर्थस्थान के दर्शन हेतु जो उसने धन एकत्रित किया था, वह भी वहाँ समाप्त हो गया। उसने अपने इस कर्म को हरि इच्छा समझा और प्रसन्न मन से अपने घर के लिए लौट पड़ा। घर पहुँचकर उसने सारी घटना पत्नी को बताई क्योंकि पत्नी भी धार्मिक स्वभाव वाली व सेवाभावी थी। अतः उसने भी पति के इस कृत्य की सराहना की। उसी रात हरिहर ने स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किये जो कह रहे थे ” हरिहर तुम मेरे सच्चे भक्त हो, वह बूढ़ा कोई और नहीं, मैं ही था, मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुम परीक्षा में सफल हुए और तुम्हें तीर्थ का पुण्य भी प्राप्त हुआ । ”

(v) इस गद्यांश से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो सुख व संतुष्टि दीन-दुःखी की सेवा और पीड़ा दूर करने में है वह तीर्थ आदि के दर्शन करने में नहीं है । तीर्थ में स्थित परमात्मा हर मनुष्य के हृदय में स्थित है। मनुष्य की पीड़ा हरने से उसके अंदर विद्यमान परमात्मा प्रसन्न होता है । इसलिए पीड़ितों की सेवा परमात्मा की सच्ची सेवा है।

ICSE 2016 Hindi Question Paper Solved for Class 10

Question 4.
Answer the following questions according to the instructions given :

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए:-

(i) निम्न शब्दों के विशेषण बनाइए लोभ, इतिहास | [1]
(ii) निम्न शब्दों में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए-
बादल, स्वतंत्र । [1]
(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखिए-
उपकार, कोमल, नूतन, स्वामी । [1]
(iv) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक की सहायता से वाक्य बनाइए-
अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मारना, बाल-बाल बचना।
(v) भाववाचक संज्ञा बनाइए- [1]
अधिक, भक्त ।
(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तित कीजिए-
(a) महाराणा प्रताप के साहस की तुलना नहीं की जा सकती है। [1]
(रेखांकित शब्दों के स्थान पर एक शब्द का प्रयोग कीजिये)
(b) मेरे घर में जो नौकर काम करता है वह भाग गया है। [1] (सरल वाक्य बनाइये )
(c) राजा का सेवक बहुत बुद्धिमान था । (लिंग बदलकर वाक्य दोबारा बनाइये )
Answer :
(i) लोभ – लोभी
इतिहास – ऐतिहासिक

(ii) बादल – मेघ, वारिद
स्वतंत्र – स्वच्छन्द, स्वेच्छाचारी ।

(iii) उपकार – अपकार
कोमल – कठोर
नूतन – पुरातन
स्वामी – सेवक ।

(iv) अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मारना-
मैंने यह भेद उसे बताकर स्वयं ही अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली ।
बाल-बाल बचना वह कार के नीचे आने से बाल-बाल बच गया ।

(v) अधिक – अधिकता
भक्त – भक्ति ।

(vi) (a) महाराणा प्रताप का साहस अतुलनीय था ।
(b) मेरे घर में काम करने वाला नौकर भाग गया है।
(c) रानी की सेविका बहुत बुद्धिमती थी ।

Note: Section B is not given due to change in present syllabus